वर्ष 2007 की बात है। उस समय मैं दिल्ली में ‘विचार मीमांसा’ का ब्यूरो प्रमुख था। उसी दौरान सम्पादक महोदय के निर्देश पर एक पंचतारा नाईट क्लब में जाना हुआ था।
वहां मेरे मेजबान बिहार के एक नौजवान नेता जी थे। मुझे उनसे कुछ सूचनाएं लेनी थीं। काम की बात खत्म होते होते नेता जी जमकर बीयर पी चुके थे। उनपर सुरूर हावी होने लगा था।
बैंड पार्टी कोई अंग्रेज़ी धुन बजा रही थी। लेकिन यह तय था कि समझ में किसी के कुछ नहीं आ रहा था। बस फ्लोर पर कुछ लोग आराम से थिरक रहे थे।
मेरे मेजबान नेता जी को अचानक जोश आया था और वो मुझसे बोल उठे थे कि… साला पता नहीं कौन सा मरघटी गाना बजा रहा है… इतना कहते हुए वो उठे थे और बैंड पार्टी की तरफ बढ़ गए थे तथा कुछ कहकर लौट आये थे और बोले थे कि अब आएगा मज़ा।
नेता जी ने गलत नहीं कहा था। कुछ ही मिनटों बाद उस बैंड ने अपना ट्रैक बदला और 1964 में बनी फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ का गीत… चलत मुसाफिर मोह लिया रे पिंजरे वाली मुनिया… बजाने लगा।
यकीन मानिए कि कुछ ही क्षणों में माहौल बदल गया। डांस फ्लोर पर भीड़ दुगुनी हो गयी। हॉल में मौजूद हर व्यक्ति पर उस गीत का जादू सिर चढ़कर बोलने लगा। अपनी सीट पर बैठा व्यक्ति भी झूम रहा था।
यह है हमारी लोकधुनों लोकगीतों लोकसंगीत की ताकत जो कुछ ही क्षणों में पश्चिमी सभ्यता के कृत्रिम आवरण में अंग्रेज़ी अभिजात्यता के नशे में डूबी भीड़ को भी उन्मुक्तता के साथ झूमने के लिए विवश कर देती है। लेकिन दुर्भाग्य से आज हमारा लोकसंगीत अपनी उपेक्षा के सर्वाधिक दुःखद दौर से गुजर रहा है।
लोकसंगीत लोकवाद्यों की शक्ति का ही एक और उदाहरण देता हूं।
राज कपूर की एक सुपरहिट फिल्म के गीत की रिकॉर्डिंग सवेरे 9 बजे शुरू हुई और लगभग डेढ़ सौ साजिंदों तथा कोरस गाने वाले 50 के करीब लड़के लड़कियों की टीम के साथ कई घण्टों की रिहर्सल के बाद रात 12 बजे के करीब रिकॉर्डिंग पूरी कर के लता मंगेशकर घर चली गईं।
रात 12 बजे उस फाइनल रिकॉर्डिंग को सुनने के बाद राज कपूर संगीतकार शंकर जयकिशन से बोले कि नहीं गाने में रिद्म नहीं है। गाना जम नहीं रहा है।
यह सुनकर शंकर जयकिशन समेत पूरी रिकॉर्डिंग यूनिट पशोपेश में पड़ गयी कि रिद्म कैसे आ सकता है गाने में। इसी बीच शंकर जयकिशन के साजिंदों की टीम में बांसुरी बजाने वाले ने कहा कि मेरे घर के पास एक गांव से आदमी आया है ढोलकी बहुत अच्छी बजाता है।
यह सुनकर राज कपूर ने उसे अपनी कार देकर कहा कि उस ढोलकी वाले को अभी लेकर आओ। आधे घण्टे में वो ढोलकी वाला आ गया। राज कपूर और शंकर जयकिशन ने उससे ढोलक बजाने को कहा। ढोलक मिलाकर उसने जो थाप दी तो उसे सुनते ही तीनों झूम उठे।
राज कपूर ने उसी समय रात को लता मंगेशकर को फोन कर के फिर रिकॉर्डिंग स्टूडियो बुलाया। ढोलक वाले के साथ घण्टे भर की रिहर्सल के बाद रात को लगभग 3 बजे गाने की रिकॉर्डिंग फिर शुरू हुई जो लगभग तीन घण्टे में सवेरे 6 बजे पूरी हुई।
जो गाना तैयार हुआ वो आज 69 वर्ष बाद भी झूमने को मजबूर कर देता है। खासकर गाने में जो ढोलकी बजी है उसे सुनिये तो ढोलकी का जादू स्वयं अनुभव करेंगे। अफगानिस्तान ईरान पाकिस्तान सहित दुनिया के कई देशों में आज भी यह गाना उतना ही लोकप्रिय है जितना हिंदुस्तान में।
वो गाना था 1951 में रिलीज हुई राज कपूर की सुपरहिट फिल्म ‘आवारा’ का मशहूर गीत… “घर आया मेरा परदेसी…”
आज भी उस गीत को सुनने के साथ ही आप आनंद के सागर में डूबने उतराने लगते हैं। ध्यान से सुनिये तो अनुभव करेंगे कि यदि उस गीत में से ढोलक ना बजी होती तो कितना नीरस हो जाता वह गीत।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यवहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति मेकिंग इंडिया (makingindiaonline.in) उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार मेकिंग इंडिया के नहीं हैं, तथा मेकिंग इंडिया उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।