जलेबी : जिसका इतिहास भी है गोल घुमावदार!

क्या आपने कभी गौर किया है कि जब कोई मिठाई गोल होती है तो ज़्यादा मीठी लगती है!! अरे आपने कभी गौर नहीं किया? तो आज कर के देखिएगा, पहले आप चौकोर बर्फी खाइए, फिर गोल बूंदी का लड्डू खाइए और फिर सबसे आखिर में खाकर देखिएगा सिर्फ गोल ही नहीं अपनी घुमावदार कमर के साथ चाशनी की नदी में नहाती प्यारी जलेबी को.
और मुझे पूरा यकीन है कि इन तीनों में से सबसे ज़्यादा मीठी और लज्ज़तदार आपको जलेबी ही लगेगी, और यह इतनी टेस्टी लगती है कि इसको खाने के साथ ही जीभ की स्वाद कलिकाएँ इतनी तेज़ी से काम करने लगती है कि आप तय नहीं कर पाते कि यह जलेबी को खाने पर मुंह में आया पानी है या उसकी चाशनी…

भाई, जलेबी रानी तो इतनी प्रसिद्ध है कि हमारे बॉलीवुड वालों ने उस पर गाना तक बना डाला. याद है ना मल्लिका शेरावत पर फिल्माया वो गाना जलेबी बाई. अब आप खुद ही सोचिये कहाँ मल्लिका-ए-हुस्न मल्लिका पर फिल्माया जलेबी बाई गाना और कहाँ सफ़ेद झक्क प्रियंका सी बर्फी…

यह तो हुई मज़ाक की बात, लेकिन दिल से निकली एकदम सच्ची बात. आपने कभी गौर किया है जलेबी एक ऐसी मिठाई है जो आपको भारत के हर प्रदेश में मिल जाएगी, चाहे उसकी मोटाई पतलाई कम ज़्यादा हो जाएगी, उसका रंग अलग हो जाएगा लेकिन मिलेगी हर प्रदेश में.

जबलपुर में जहाँ पारंपरिक लेकिन थोड़ी सी गहरे रंग की मोटी ताज़ी खोवा जलेबी पसंद की जाती है, तो इंदौर में आपको दिन में पोहे की साथी बनी हुई कुशल गृहणी सी प्यारी जलेबी मिलेगी, लेकिन रात में आप सराफा में घूमने जाएंगे तो मोटी ताज़ी सुनहरी मावे की जलेबी मिलेगी, वह इतनी बड़ी होती है कि एक आदमी एक से ज़्यादा खा ही नहीं सकता, बशर्ते आप वाकई भुक्खड़ ना हो…

ऐसा नहीं कि जलेबी सिर्फ स्ट्रीट फ़ूड के रूप में मिलती हो, इसका हमारे त्यौहारों में भी विशेष स्थान है. गुजरात में मकर संक्रांति जिसे वहां उतराण कहते हैं, पर जलेबी की ऐसी बहार रहती है कि आपको वहां छत पर खड़े लोगों के एक हाथ में पतंग की डोर तो दूसरे हाथ में स्लिम ट्रिम पीले रंग की जलेबी मिलेगी… इस जलेबी ने तो वहां की पारंपरिक मिठाई “घरी” को भी पीछे छोड़ दिया है.

आज तक कोई जान नहीं पाया है कि ये प्यारी सी जलेबी रानी आखिर आई किस देश से है. लेकिन अगले जन्म मोहे ‘जलेबिया’ ही कीजो तर्ज़ पर वह भारत की ज़मीन पर ऐसी रच बस गयी कि किसी को विश्वास ही नहीं होता कि यह अरब से आई हुई भी हो सकती है.

आपको बता दें कि जलेबी का अरबी, फारसी नाम “जलाबिया” ही है, जिससे यह जलेबी बना है.

इस पेंचदार और करारी दिखने वाली जलेबी के लिए कहावत चाहे यह बनी हो कि ‘जलेबी की तरह सीधी है’, लेकिन बेचारी का इतिहास उसी की तरह गोल गोल है. क्योंकि 500 साल की यह बुढ़िया आज तक ऐसी चिरयौवना बनी हुई है कि हर जगह के लोग उसे अपने यहाँ का बताने को लालायित रहते हैं.

इसलिए इसकी धूम भारतीय उपमहाद्वीप से शुरू होकर पश्चिमी देश स्पेन तक जाती है। इस बीच यह बांग्लादेश, पाकिस्तान, ईरान के साथ तमाम अरब मुल्कों में भी घूम फिर आई है.

“किताब-अल-तबीक़” नाम की एक मध्यकालीन पुस्तक में इस शब्द का उल्लेख मिलता है। इस पुस्तक में “जलाबिया” नामक एक मिठाई का वर्णन मिलता है जिसका उद्भव पश्चिम एशिया में बताया गया है। यह किताब वर्तमान में ईरान में “जुलाबिया” के नाम से मिलती है। इस पुस्तक में “जुलुबिया” को बनाने की कई विधियों का उल्लेख मिलता है।

अच्छा ऐसा नहीं कि सिर्फ भारत और पाकिस्तान, अरब में ही यह पाई जाती हो, जलेबी के स्वाद के कारण कई अन्य देश भी उसके चक्कर में आ गए. आपको यकीन नहीं आएगा लेबनान में एक पेस्ट्री मिलती है, उसका नाम ही उन्होंने जलेबी के तर्ज़ पर “जेलाबिया” रख लिया है लेकिन बस उसका आकार घुमावदार न होकर लंबा होता है।

इसी प्रकार से ईरान में “जुलुबिया” तथा ट्यूनीशिया में “जलाबिया” नाम से जलेबी मिलती है। इसके अलावा अफगानिस्तान के लोग भी इसको बहुत पसंद करते हैं। आपको पता है अफगानिस्तान में जलेबी को मछली के साथ खाया जाता है। है न एकदम अजीब सा कॉम्बिनेशन? लेकिन ठीक है भाई अपनी अपनी पसंद, जब आप उसे पोहे के साथ खा सकते हैं, दूध के साथ खा सकते हैं, रबड़ी के साथ खा सकते हैं, और तो और कुछ लोगों को तो दही के साथ भी खाते देखा है तो बेचारी मछली ने क्या बिगाड़ा है, जलेबी है ही इतनी प्यारी कि किसी का भी उस पर दिल आ जाए. और हो सकता है शायद इसीलिए जलेबी को अंग्रेज़ी में स्वीटमीट (Sweetmeat) कहते हों.

और आप जलेबी के आगे अपना दिल हार जाएं उसके पहले बता दूं कि इतिहास कहता है जलेबी पर्शियन जुबान वाले तुर्की आक्रमणकारियों के द्वारा भारत में आई थी। इस प्रकार से देखा जाए तो भारत में जलेबी की उम्र 500 वर्ष है. तो हुई ना 500 साल की चिरयौवना!! लेकिन इसका सबसे पहले जन्म कहाँ हुआ और कहाँ कहाँ उसने पुनर्जन्म लिया आज तक कोई नहीं जान पाया, शायद इसलिए ही इसे भगवान की मिठाई कहा गया क्योंकि आखिर हम भगवान को चाहे जिस नाम से पुकार लें, आखिर सबका मालिक तो एक ही है ना. जी हाँ तो जैनों की पुस्तक कर्णप कथा में जलेबी को भगवान की मिठाई माना गया है।

लेकिन हमको नाम और इतिहास से क्या मतलब जी, हम चटोरों को तो स्वाद चाहिए. अरे जब भगवान इसके स्वाद से नहीं बच पाए तो हम तो बस इंसान है. तो आप जान लीजिये कि कुछ जगह यह जलेबी मैदे से बनती है, तो कुछ जगह उड़द से भी बनती है और उड़द से बनने वाली उसकी एक और मौसेरी बहन है जिसे इमरती कहा जाता है. लेकिन यह इमरती हर जगह नहीं मिलती, और जहाँ भी मिलती है एक जैसी केसरिया रंग की ही मिलती है, जिसको खाते से ही आप को लगेगा आपके मुंह से निकला हर शब्द केसरिया हो गया है.

खैर हम यहाँ जलेबी की ही बात करते हैं क्योंकि जो बात जलेबी में है वो इमरती में कहाँ. तो जलेबी के भारतीय होने पर ज़ोर देने वाले इसे ‘जल-वल्लिका’ कहते हैं। रस से परिपूर्ण होने की वजह से इसे यह नाम मिला और फिर इसका रूप जलेबी हो गया. फारसी और अरबी में इसकी शक्ल बदल कर हो गई जलाबिया उत्तर पश्चिमी भारत और पाकिस्तान में जहां इसे जलेबी कहा जाता है वहीं महाराष्ट्र में इसे जिलबी कहा जाता है और बंगाल में इसका उच्चारण जिलपी करते हैं। ज़ाहिर है बांग्लादेश में भी यही नाम चलता होगा.

जलेबी इतनी प्यारी है कि हर कोई उसे अपना सिद्ध करने के लिए इतिहास से कुरद कुरद कर प्रमाण लाता रहता है. इसलिए 17 वीं शताब्दी की किताब “भोजनकुटुहला” और संस्कृत भाषा की किताब “गुण्यगुणबोधिनी” में भी जलेबी बनाने की विधि का वर्णन मिलता है.

फिर भी कुछ लोगों का मानना है कि जलेबी मूल रूप से अरबी शब्द है और इस मिठाई का असली नाम है जलाबिया. यूं जलेबी को विशुद्ध भारतीय मिठाई मानने वाले भी हैं. जैसे शरदचंद्र पेंढारकर में जलेबी का प्राचीन भारतीय नाम कुंडलिका बताते हैं. वे रघुनाथकृत ‘भोज कुतूहल’ नामक ग्रंथ का हवाला भी देते हैं जिसमें इस व्यंजन के बनाने की विधि का उल्लेख है.

हे ईश्वर जलेबी के नाम और इतिहास के गोल गोल चक्कर लगाकर मेरा दिमाग भी जलेबी की तरह गोल घूम गया है. अब तो इस जलेबी को खाकर ही दिमाग सीधा हो सकता है.

हाँ तो भारत में मैदे, उड़द की दाल के अलावा चावल के आटे और पनीर की भी जलेबियां बनाई जाती हैं. हम भारतीय लोग होते भी बहुत प्रयोगात्मक हैं. हम तो चाईनीज़ रेसिपी में भी पंजाबी तड़का लगाकर खाते हैं. तो साउथ इंडियन दिश को भी राजस्थानी बना देते हैं.

खैर बच्चों से लेकर बुज़ुर्ग हर वर्ग के लोग जिसे खाना पसंद करते हैं ऐसी जलेबी की जुगलबंदी तो किसी से भी की जा सकती है. एक बहुत मज़ेदार बात बताती हूँ एक बार मुंबई के एक होटल ने 18 किलो के वज़न वाली जलेबी बनाकर विश्व रिकार्ड भी बना दिया है.

आपको पता है खानपान के लिए प्रसिद्ध इंदौर शहर में 300 ग्राम वज़नी जलेबी के मिश्रण में कद्दूकस किया पनीर डालकर पनीर जलेबी तैयार की जाती है, अब इतनी बड़ी जलेबी को जलेबी कहना थोड़ा अजीब लगता है, कहाँ वो पतली छरहरी चाशनी के इश्क़ में डूबी जलेबी, और कहाँ 300 ग्राम की चालीस पार औरतों सी थुलथुले पेट वाली मोटी जलेबी, तो इसलिए वो लोग वहां उसे जलेबी ना कहकर ‘जलेबा’ कहते हैं.

अब जब प्रयोग की बात निकली ही है तो आपको बता दें कि बंगाल में ‘चनार जिल्पी’ नामक यह मिठाई स्वाद में बंगाली गुलाब जामुन ‘पंटुआ’ के जैसी होती है और इसे दूध और मावे को मिलाकर जलेबी के मिश्रण में डालकर मावा जलेबी तैयार की जाती है.

जैसा देश वैसा भेष के नियम के तहत मध्यपूर्व में खाई जाने वाली जलेबी हमारी जलेबी से पतली, कुरकुरी और कम मीठी होती है. श्रीलंका की ‘पानी वलालु’ मिठाई जलेबी का ही एक प्रकार है जो उड़द और चावल के आटे से बनाया जाता है. नेपाल में मिलने वाली “जेरी’ भी जलेबी का ही एक रूप है.

अच्छा कुछ और भी दिलचस्प बातें सुनने में आती हैं इस जलेबी के बारे में… सच्ची इतनी फेमस मेरे ख्याल से कोई मिठाई न होगी जिसके इश्क़ के किस्से गली गली में गाये जाते हो… माना जाता है कि पश्चिम एशिया में छोटी इलायची और सूखी चीनी के साथ इस जलेबी को बनाया जाता था. बताया ये भी जाता है कि ईरान में रमजान के दिन गरीबों या ज़रूरत मंदों को यही जलेबियां बांटी जाती थी. अच्छा पारसी लोग भी इससे अछूते नहीं रहे हैं, वे लोग इसे जौलबिया कहते थे.

कहते हैं नादिर शाह को जलेबी बहुत पसंद थी, वह इस पकवान को ईरान से भारत लेकर आया था और फिर इसे यहां का प्रमुख मिष्ठान्न बनने में अधिक समय नहीं लगा. यूरोप के कई देशों में र्ईरानी भोजनालयों में इसको ईरानी चाय के साथ भी परोसा जाता रहा, और इसे वहां पर जुलाबा के नाम से जाना गया.

‘जिलपी’,’जिबली’,’जेल्पी’,’इमरती’,’जहांगीरी’ और ‘पाक’ नाम से पुकारे जाने वाली इस जलेबी का नाम और इसका स्वाद हर समुदाय और देश के साथ बदलता गया. जहाँ इसे कुछ जगह में चावल और उड़द दाल के आटे के साथ बनाया जाता है वहीं कुछ देशों में जलेबी को सिर्फ बेसन और आटे से भी बनाया जाता है.

ऐसा नहीं है कि यह जलेबी सिर्फ अपने स्वाद और रूप से ही आपको मोहित करती है, बल्कि इसके कुछ शारीरिक फायदे भी है. तो स्वाद के साथ हम आपको इस मिठाई के स्वास्थ्य सम्बन्धी फायदे भी बता रहे हैं जो आप नहीं जानते होंगे.

जलेबी जिस बात के लिए सबसे अधिक स्वास्थ्यवर्धक मानी जाती है वो है माइग्रेन की समस्या जिसमें सुबह के समय दूध के साथ जलेबियों का सेवन किया जाता है. कहते हैं इससे माइग्रेन की समस्या में आराम मिलता है.

माइग्रेन के अलावा पीलिया की समस्या होने पर भी जलेबी का सेवन बहुत ही फायदेमंद है. कहा जाता है पीलिया दूर करने के लिए रोज़ाना सुबह के समय खाली पेट दो जलेबी का सेवन करना चाहिए.

और सबसे बड़ी बात, आजकल हर वर्ग के लोग तनाव की गंभीर समस्या से घिरे रहते हैं. कहते हैं ये जलेबी इतनी प्यारी है कि इसके सेवन से आपके जीवन का अवसाद भी कम हो जाता है. हो सकता है मीठे बोल की तरह इसका मीठा स्वाद आपके जीवन में मिठास घोल देता हो और आपके मन को हल्का कर दिमाग को शांत कर देता हो.

जो भी हो सर्वगुण संपन्न जलेबी से मैंने लोगों को सेहत बनाते हुए भी देखा है. यदि आप दुबले पतले और कमज़ोर शरीर को सेहतमंद बनाना चाहते है तो रोजाना देसी घी में बनी हुई जलेबी का सेवन कीजिए इससे कुछ ही दिनों में आप गुजरात की छरहरी जलेबी से जबलपुर की खोवे की जलेबी जैसे मोटे ताज़े होजाएंगे.

लेकिन किन्तु परन्तु यदि आप डायबिटीज़ यानी मधुमेह के रोगी हैं तो कृपया इससे दूर ही रहें. क्योंकि मीठा आपके लिए वर्जित है. वैसे भी जीवन के सारे स्वाद लेने का हक़ उसी को है जो जीवन की क़द्र करना जानता हो. क्योंकि यह जीवन भी एक रसभरी चाशनी में डूबी हुई जलेबी ही है, गोल गोल भूल भुलैया जैसी… तो आपके आधुनिक अनियमित जीवन शैली के कारण जीवन की चाशनी सूख जाए उसके पहले इस जीवन रूपी जलेबी का आनंद ले लीजिये.

सुंदर नारी का सब्ज़ी का थैला भी तो सुंदर होना चाहिए ना💞 5 खण्ड
संपर्क – जीवन शैफाली Whatsapp 9109283508

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