सेमल के वृक्ष को सेमर तो कईं लोग होली का पेड़ भी कहते हैं. इसकी टहनी से होली का डांडा रोपा जाता है. संस्कृत में सेमल वृक्ष का नाम ‘शाल्मली’ है. इसका वैज्ञानिक नाम ‘बामवेक्स सेइबा’ है जबकि सामान्य रूप से इसे अंग्रेज़ी में ‘कॉटन ट्री’ के नाम से भी पुकारा जाता है.
सेमल पर जब फूल आते है तो पत्ते सभी झड़ जाते हैं.
“पत्ता नहीं एक, फूल हज़ार
क्या खूब छाई है, सेमल पर बहार”
सेमल के तने पर मोटे तीखे काँटे होते हैं, जिस कारण संस्कृत में इसे ‘कंटक द्रुम’ नाम भी मिला है. इसके तने पर जो काँटे उगते हैं, वे पेड़ के बड़ा होने पर कम होते जाते हैं.
सेमल वृक्ष उन पेड़-पौधों में से एक है, जिनका उपयोग मनुष्य काफ़ी लम्बे समय से विभिन्न प्रकार के लाभ अर्जित करने के लिए करता रहा है. पाँच पंखुड़ियों वाले सेमल के लाल फूल आकार में सामान्य फूलों से कहीं ज़्यादा बड़े होते हैं.
फल के पकने पर जो बीज निकलते हैं, उन बीजों से रूई निकलती है, जो मुलायम व सफ़ेद रंग की होती है. पर सेमल की लकड़ी इमारती काम के लिए प्रयोग नहीं होती. सेमल का पेड़ काफ़ी बड़ा होता है.
मार्च अप्रैल के माह में इस पर फूल निकलते हैं. इनका उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है. फूल निकलने के बाद इस पर जो फल लगता है, वह केले के आकार का होता है. इसका उपयोग कच्चा व सूखाकर सब्जी के रूप में किया जाता है. इसके फूलों की बाज़ार में भारी माँग है.
सेमल वृक्ष के फल, फूल, पत्तियाँ और छाल आदि का विभिन्न प्रकार के रोगों में प्रयोग किया जाता है.
प्रदर रोग – सेमल के फलों को घी और सेंधा नमक के साथ साग के रूप में बनाकर खाने से स्त्रियों का प्रदर रोग ठीक हो जाता है.
जख्म – इस वृक्ष की छाल को पीस कर लेप करने से जख्म जल्दी भर जाता है.
रक्तपित्त – सेमल के एक से दो ग्राम फूलों का चूर्ण शहद के साथ दिन में दो बार रोगी को देने से रक्तपित्त का रोग ठीक हो जाता है.
अतिसार – सेमल वृक्ष के पत्तों के डंठल का ठंडा काढ़ा दिन में तीन बार 50 से 100 मिलीलीटर की मात्रा में रोगी को देने से अतिसार (दस्त) बंद हो जाते हैं.
आग से जलने पर – इस वृक्ष की रूई को जला कर उसकी राख को शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से आराम मिलता है.
नपुंसकता – दस ग्राम सेमल के फल का चूर्ण, दस ग्राम चीनी और 100 मिलीलीटर पानी के साथ घोट कर सुबह-शाम लेने से बाजीकरण होता है और नपुंसकता भी दूर हो जाती है.
पेचिश – यदि पेचिश आदि की शिकायत हो तो सेमल के फूल का ऊपरी बक्कल रात में पानी में भिगों दें। सुबह उस पानी में मिश्री मिलाकर पीने से पेचिश का रोग दूर हो जाता है.
प्रदर रोग – सेमल के फूलों की सब्जी देशी घी में भूनकर सेवन करने से प्रदर रोग में लाभ मिलता है.
गिल्टी या ट्यूमर – सेमल के पत्तों को पीसकर लगाने या बाँधने से गाँठों की सूजन कम हो जाती है.
रक्तप्रदर – इस वृक्ष की गोंद एक से तीन ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से रक्तप्रदर में बहुत अधिक लाभ मिलता है.
नपुंसकता – सेमल वृक्ष की छाल के 20 मिलीलीटर रस में मिश्री मिलाकर पीने से शरीर में वीर्य बढ़ता है. इसका चिकित्सीय उपयोग वैद्य की सलाह में ही करें.