हमारी कृषि मुख्यतः बारिश पर ही निर्भर रही है ऐसे में आद्रा जो बारिश लाने वाला नक्षत्र है हमारे कृषिप्रधान देश में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है |
सूर्य जब आर्द्रा नक्षत्र पर होता है, तब आदिस्त्री पृथ्वी ऋतुमती होती है और नव सृजन के लिए तैयार होती है | ऐसे में बिहारी परम्परा में कृषिकार्य की शुरुआत का लोक उत्सव- ‘अदरा’ दलपूड़ी, खीर, तरकारी, आम, जामुन और अमड़ा जैसे सहज प्राप्य फलों को खा कर मनाया जाता है |
दलपूड़ी तो जैसे बिहारी कर्मकांड का प्राण भोजन है | और इसके साथ खीर की जोड़ी !!
अदरा हो, चौठचन्द हो, बेटे के बारात निकलने की रात हो, बेटी-पतोहू के आगमन का दिन हो, चाहे कुलदेवता/देवी की घड़ी पूजा हो हमारी परम्परा नहीं टूटती |
करना भी क्या है ! बस नये चावल की खीर एक चूल्हे पर चढ़ा कर दूसरे चूल्हे पर चना दाल को लाल मिर्च, जीरे, हींग में नमक-हल्दी डाल कर छौंक दिया | इसे सिलबट्टे पर पीस कर या कूकर में गला कर गरम् मसाले वाली पीठी तैयार करनी होगी |
यह पीसना-घोंटना कठिन लगे तो चना दाल के बदले धुली मसूर की दाल को कड़ाही में हींग, जीरा और लाल मिर्च में छौंक लो | झटपट गल कर सही टेक्सचर में आ जायेगा | थोड़ी धनिया पत्ती छिड़को और पीठी तैयार |
जब तक खीर गाढ़ी हो रही हो आटे में जरा नमक और मोयन डाल कर सान लिया | इधर खीर ठंढी होने को रखी और आलू-परवल की झोरदार तरकारी बना ली या केवल आलू का दम बना लिया | मन हो तो उबले आलूओं की तरकारी ही बना लो | सरल लगेगा |
इसके बाद छोटी-छोटी लोइयों में दाल की पीठी भर कर हल्के हाथों से गोले बना लिए | उँगलियों और हथेलियों के बीच गोलों को रखकर, दूसरे हाथ से जरा सहारा देकर थोड़ा थपथपा लिया जाए तो पूड़ियों के फटने की संभावना कम हो जाती है | फिर हल्के दबाव से दलपूड़ियाँ बेल कर धीमी आँच पर तल लो |
कल छोटी बिटिया भी साथ बैठी लोई काट रही थी | हथेलियों पर घूमती लोई और बढ़ती पूड़ी उसे जादू सी आकर्षक लग रही थी | मेरे हाथों को हर कोण से झाँक-झाँक कर देखती और अचरज से भर जा रही थी |
उत्साहित होकर बार-बार पूछ रही थी “माँ तुम गोले पर एक बराबर प्रेशर कैसे दे लेती हो ?” मैंने अभ्यास का महत्व बताया तो उसने भी हुलस कर प्रयास किया और अपनी बेली गई पूड़ियों को देख-देख आनंद से उछलती रही |
मैंने तो पहली थाली मालदा आम की फाँकों और जामुन के साथ परोसा और अपने मंदिर में पंडितजी को भेज दिया |
फिर सबलोगों ने भोजन किया | आप चाहो तो रात भी खाओ और बासी स्वादिष्ट दलपूड़ी सुबह भी खाओ | ताजे से ज्यादा बासी दलपूड़ी खाने में आनंद आता है | बना के देखिये !
– कल्याणी मंगला गौरी

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