इंदौर-मुंबई हाईवे पर स्थित शहर से करीब 45 किमी दूर एक ऐसा स्थान है जहां पर माना जाता है कि भगवान परशुराम का जन्म हुआ था।
यहां पर जमदग्नेश्वर महादेव का मंदिर और प्राचीन परशुराम मंदिर बना है।
मान्यता है कि जानापाव में जन्म के बाद भगवान परशुराम शिक्षा ग्रहण करने कैलाश पर्वत चले गए थे।
जहां भगवान शंकर ने उन्हें शस्त्र-शास्त्र का ज्ञान दिया था।
यहां पर श्रीपंचाग्नि अखाड़ा की गद्दी है। वे श्री परशुराम का नया मंदिर बनवा रहे हैं। यह दिव्य मंदिर राजस्थान के गुलाबी पत्थरों से बन रहा है।
यहां कामधेनु गौशाला भी है जहां 108 देशी गायें है।
इस जगह की प्राकृतिक खूबसूरती लोगों को यूं ही अपनी ओर आकर्षित करती है। मालवा क्षेत्र का यह दूसरा सबसे ऊंचा स्पॉट माना जाता है। यह स्थान बारिश के मौसम में प्राकृतिक दृश्यों से भर जाता है।
जानपाव पहुंचने के दो रास्ते हैं। एक रास्ता पहाड़ों के बीच से होकर जाता है, जबकि दूसरा पक्का मार्ग है।
यहां झूले फिसलपट्टी आदि भी बने हैं। दिन भर यहां ट्रेकिंग पिकनिक का आनंद लिया जा सकता है। केवल ध्यान योगादि भी किया जा सकता है।
जानापाव पहाड़ी के श्री ब्रम्हकुण्ड से साढ़े सात नदियां निकली हैं। इनमें कुछ यमुना व कुछ नर्मदा में मिलती हैं।
यहां से चंबल, गंभीर, अंगरेड़ व सुमरिया नदियां व साढ़े तीन नदियां बिरम, चोरल, कारम व नेकेड़ेश्वरी निकलती हैं।
ये नदियां करीब 740 किमी बहकर अंत में यमुनाजी में तथा साढ़े तीन नदिया नर्मदा में समाती हैं।
इस पहाड़ी पर आयुर्वेद में इस्तेमाल की जाने वाली कई महत्वपूर्ण औषधियां पाई जाती हैं। मान्यता है कि परशुराम की मां रेणुका यहां पर इन औषधियों को उगाया करती थी।