बेल कोए बेल नहीं बल्कि एक ऐसा रूंख (पेड़) था जिसके हर हिस्से का इस्तेमाल सेहत बनाने और सौंदर्य निखारने के लिए किया जाता था। आयुर्वेद में इसके कई फायदों का उल्लेख मिलता है। इसका फल बेहद कठोर होता था लेकिन अंदर का हिस्सा मुलायम, गूदेदार और बीजों से युक्त होता था।
बेल के फल का जीवनकाल काफी लंबा होता था। पेड़ से टूटने के कई दिनों बाद भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता था। बेल का इस्तेमाल कई तरह की दवाइयों को बनाने में तो किया जाता था साथ ही ये कई स्वादिष्ट व्यंजनों में भी प्रमुखता से इस्तेमाल होता था। बेल में प्रोटीन, बीटा-कैरोटीन, थायमिन, राइबोफ्लेविन और विटामिन सी भरपूर मात्रा में पाया जाता था।
बेल का रस पीने के ये तरीके व फायदे होते थे
- दिल से जुड़ी बीमारियों से बचाव में सहायक
बेल का रस तैयार कर लेते थे और उसमें कुछ कुछ बूंदें देशी गाय के बिलोणी घी की मिला लिया करते थे। इस पेय को हर रोज एक निश्चित मात्रा में ले लेते थे। इसके नियमित सेवन से दिल से जुड़ी बीमारियों से बचाव होता था। ये ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में सहायक होता था।
- गैस, कब्ज़ की समस्या में राहत
नियमित रूप से बेल का रस पीने से गैस, कब्ज और अपच की समस्या में आराम मिलता था।
- कोलेस्ट्रॉल स्तर को नियंत्रित रखने में मददगार
बेल का रस कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखने में मददगार होता था।
- दस्त और डायरिया की समस्या में भी फायदेमंद
आयुर्वेद में बेल के रस को दस्त और डायरिया में बहुत फायदेमंद माना गया था। इसे गुड़ या देशी खांड के साथ मिलाकर पीते थे। - ठंडक देने का काम करता था
बेल के रस को शहद के साथ मिलाकर पीने से पित्त (एसिडिटी) में राहत मिलती थी। मुंह के छालों में भी इसका सेवन फायदेमंद रहता था। गर्मी के लिहाज से ये एक बेहतरीन पेय था। एक ओर जहां ये लू से सुरक्षित रखने में मददगार होता था वहीं शरीर को अंदर से ठंडक देने का काम करता था। - जच्चा के लिए भी था फायदेमंद
ये जच्चा के स्वास्थ्य को बेहतर करने में तो सहायक था ही साथ उनका दूध को भी बढ़ाता था। - कैंसर
नियमित रूप से बेल का रस पीने से स्तन कैंसर होने की आशंका काफी कम हो जाती थी। - खून साफ करने में सहायक
बेल के रस में कुछ मात्रा गुनगुने पानी की मिला लेते थे तथा इसमें थोड़ी सी मात्रा में छोटी मक्खी का शहद डाल लेते थे। इस पेय के नियमित सेवन से खून साफ हो जाता था तथा चेहरे पर गुंमड़ी नहीं होती थी।
उपरोक्त बातें तो बस पकी हुई बेलगिरी की ही हैं। कच्ची बेलगिरी का गुद्दा भवन निर्माण के समय चूने में भी मिलाया जाता था। ईब ना बेल के पेड़ रहे और ना ये बात बताणिएँ। अगर आपको बेल के फायदे स्कूल कालेजों में पढ़ाए जांदे तो पैप्सी व कोक आदि कैसे बिकते??
आप अगर बीमार नहीं पड़दे तै अंग्रेजी दवाई कैसे बिकदी??
इसलिए वन विभाग ने कभी भी कहीं भी ये और इस प्रकार के अन्य पेड़ कभी कहीं लगवाए ही नहीं। हाँ इन को चुन चुन कर काटा जरूर गया। खैर …
साथियों बेलगिरी का यही मौसम है। अगर सौभाग्य से किसी को कोई मेरै बरगा अणपढ़ माणस कितै बेल का रस बेचदा मिल जाए तो डोंट मिस द चांस प्लीज….
हमने हर पेड़ पौधै का ज्ञान था…
ज्यबै तै मेरा भारत महान था…
गोबर म्हं लथपथ, अणपढ़ जाट
डॉ. शिवदर्शन मलिक
वैदिक भवन रोहतक (आर्याणा)
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