उनके लिए कबीर का बस इतना ही है उपयोग

कबीर के नाम पर सेक्युलर भक्ति तो याद होगी न!

महापुरुषों के नाम पर डोफा बनाने के कितने ही ‘एन जी ओ टोटके’ हैं।

इस छद्म बौद्धिक बदमाशी में फरेब के तंतु इतने महीन होते हैं कि सामान्य “You know, Kabeer was a great poet!” के जीके (सामान्य ज्ञान) वाक्य रटने वाले आत्ममुग्ध जन इसकी जकड़न कभी नहीं समझ पाते।

एक कोई फ़िरंगन तंदूरे पर “करना होवै सो कर लो रे साधु…..!” भजन गाती है, पॉप स्टाइल में।

इस भजन में स्थूल उपासना पद्धतियों का खंडन किया गया है और जप, तप, नेम, व्रत और पूजा को मिथ्या घोषित किया गया है।

परन्तु गायक और आयोजकों को शायद ही मालूम हो कि यह वाणी कबीर की नहीं है, यह तो प्रसिद्ध योगी बन्नानाथ जी का भजन है जो रात्रि के प्रथम प्रहर में ही गाया जाता है और इसमें कोई भी ऐसी बड़ी रहस्यमयी बात नहीं कही गयी है।

बन्नानाथ जी, प्रसिद्ध योगाचार्य जीयाराम के शिष्य थे और राग आसावरी की उनकी बड़ी प्रसिद्ध वाणियां लोक में प्रचलित है, हरेक चौपाल पर गाई जाती है।

बन्नानाथ भी हमारे और जीयाराम भी हमारे।

उनकी बात समझने के लिए कई जन्मों का योगाभ्यास और परमहंस का वैराग्य चाहिए।

तानपूरा ही कबीर समझने का साधन होता तो ट्रेन की बोगियों में आलाप लेते भिखारी भी कबीर नहीं बन जाते!

मगर, ये वाली कबीर थ्योरी डिज़ाइनर टूरिज़्म थी। सत्तर के दशक में सोवियत संघ में हाइजीन का प्रचार करते अमेरिकन जैसी।

भजन संध्या के पड़ाव में सूफियाना भजन गाये जाते थे!

इंग्लिश माहौल में डिजिटल कबीर थ्योरी में सूफी भजन गाये जाते हैं, कहाँ तो उनका ज्ञान मार्ग, और कहाँ सूफियों की होमोसेक्सुअल शायरी… और लोग पहचान भी नहीं पाते।

धन्य हैं भारत वासी।

तुमको डफोल बनाना कितना सरल है?

कोई रामलाल हरियाणा में कबीर के नाम पर महिलाओं का अड्डा चलाता रहा और अपनी धोवन को प्रसाद में पिलाता रहा।

वर्षों तक आर्यसमाज को गाली देकर, कथित सतलोक के नाम पर, गधों के ग्वाले की शैली में, राम, कृष्ण और अकाल पुरुष को कबीर का शिष्य बताता रहा और पब्लिक हाँ-जी हाँ-जी करती रही!

जब देश की भजन मंडलियों में रात भर “मो से नैना मिलाइके…” को भी भजन माना जाता है तो कोई आश्चर्य नहीं कि प्रत्येक कबीर विमर्श के पड़ाव में “अली दा पहला नम्बर….!” को सर्वोच्च आध्यात्मिक वाणी मान कर झूमा जाता है।

अरे भई ये अली कौन है?

कबीर ने इंग्लिश वर्ड “नम्बर” का भी प्रयोग किया है, यह तो वाणी की डिक्टेटरशिप की हद हो गई न।

कभी “दमादम मस्त कलंदर…” वरुणावतार झूलेलाल के लिए गाया जाता था, अब अली के पहले नंबर के लिए कबीर के नाम पर लंगों द्वारा गाया जाता है।

कबीर से याद आया, सीकर में कथित तीन बच्चों के बाप कबीर खान को जयपुर वालों ने शर्माइन उपलब्ध करवा दी।

सब नकली। बारात भी और दुल्हा भी।

असली है तो आधा किलो सोना और आठ लाख रुपए के साथ तीन महीने की रंगरेलियां।

उनके लिए कबीर का इतना ही उपयोग है।

एनजीओ गैंग वाले इस बार तंदूरा लेकर निकले।

हिंदुत्व पर प्रहार करने वाले हथियारों में कबीर का इस्तेमाल सात दशक से हो रहा है।

इस औसत कवि को बनारस और हजारीप्रसाद की टीका का फायदा मिला, वरना यहाँ तो हरेक जिले में कोई न कोई कवि अवश्य हुआ है।

मगहर वाले बाबा से सूफियाना ज्ञान गायन और अली का पहला नम्बर होकर… सब छीनी… मोसे नैना मिलाकर की यह भटकती जवानी की यात्रा, “you know…” हिंदी के श्रेष्ठ कवि के लिए आयोजित हो रही है… जिसमें बड़े बड़े सेलिब्रिटी छाए हुए है। जिन्हें यह तक पता नहीं कि अमीर खुसरो और ग़ालिब के दरमियान कितना फ़ासला था और हिंदी और उर्दू दो जुदा जुदा ज़बान है, जिनमें कबीर को कहाँ फिट करना है।

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