हमारे देश में हर विषय पर बहुत ही नामी गिरामी Institute हैं. एक दो के बारे में मैं अपने अनुभव साझा करना चाहता हूँ.
पहला Center for Environment Education (CEE) अहमदाबाद विश्व स्तरीय संस्था है. जी हां ये संस्था अपने भारत वर्ष की अकेली ऐसी संस्था है जिसका काम सिर्फ ओर सिर्फ पर्यावरण की देखभाल करना है.
इस बारे में लोगों को जागरूक करना है तथा इस कार्य के लिए अंतर्राष्ट्रीय संगठनों (UNO, GEF) आदि से इसे मनमाना पैसा मिलता है. जहां तक मेरी जानकारी है कार्बन क्रेडिट आदि का हिसाब भी अपने देश मे यही रखता है.
इस संस्था में मुझे सन् 2005 में जाने का निमंत्रण मिला था. जाहिर है विषय था बढ़ता प्रदूषण और उसकी रोकथाम. वहां संसार के अलग अलग देशों के करीब चार हजार पर्यावरणविद जमा थे. उन में से ज्यादातर अपने भारतीय थे.
पर्यावरण पर भाषण देने जमा हुए ये विद्वान अहमदाबाद कैसे पहुंचे, मेरी रुचि बस यही जानने में थी. विदेशी विद्वानों की तो मजबूरी थी हवाई यात्रा लेकिन भारतीय विद्वान भी सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाले यान वायु यान में सवार हो कर प्रदूषण पर ज्ञान बांटने आए थे.
मैंने जब ये सवाल भरी सभा में दाग दिया तो आयोजकों ने बहुत ही मासूम सा उत्तर दिया. उत्तर आप भी जानते हो “समयाभाव”.
दूसरा भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान लखनऊ, पिछले साल यहां भी जाने का अवसर मिला. दो दिन अच्छे व्याख्यान दिए व सुने. मैं जानबूझ कर एक वरिष्ठ वैज्ञानिक से पूछ बैठा कि साहब आप दशकों से गन्ने पर अनुसंधान कर रहे हैं, ये बताओ किसान पत्तियों का क्या करे??
साहब बोले हमारा काम गन्ने की नस्ल सुधार है न कि उसकी पत्तियों के बारे में सोचना, कोई जलाता है तो जलाए. वाह वाह मैं उत्तर सुन कर गदगद् हो गया.
वहां जब सभा खत्म हुई तो हम सब को उस संस्थान का बना गुड़ भेंट किया गया. घर आकर जब वो गुड़ मैने खोलकर देखा व चखा …. यकिन मानिए…क्या कहूं आप खुद समझदार हैं.
कुएं में ही भांग मिली है, ये कुआं आंट कर नया कुआं खोदना किसी के बस का है नहीं, समस्या गंभीर है. दवाई भी कड़वी ही होगी.
– डॉ. शिव दर्शन मलिक