दोस्तों को invite करके उनके लिए हांडी चढ़ाना, फिर उनके साथ बैठ के गप्पें मारना, हा हा ही ही… मौज मस्ती… बनाना ख़िलाना खाना…
या फिर सीधे किसी ढाबे रेस्त्रां में जाओ, order दो, चुपचाप खाओ, निकल लो…
दोनों स्थितियों में खाना ही खाते हैं हम।
पर पहले केस में असली मज़ा खाने में नहीं बल्कि बनाने में है… असली मज़ा उस पिकनिकिया माहौल का है।
उसी तरह लेह लद्दाख जाने में… असली मज़ा मंज़िल/ destination में नहीं है बल्कि सफ़र में है।
चंडीगढ़ से पहले मनाली तक की यात्रा, और फिर उससे आगे लेह… और फिर लेह से आगे तुरतुक या Pangyong lake या अन्य इलाके… वहां तक सड़क मार्ग से यात्रा…
Leh as a Destination या as a city तो इस पूरी यात्रा का 5% भी नहीं।
लेह जाने की सबसे बड़ी समस्या ये है कि वहाँ ऊंचाई के कारण हवा बहुत हल्की है, ऑक्सीजन की बहुत कमी है, दिल्ली से उड़ के दो घंटे में सीधे लेह उतर जाने वाले लोग वहां जाते ही भयंकर सिर दर्द, breathlessness (सांस लेने में परेशानी) के शिकार हो जाते हैं।
मेरे एक मित्र तो सपरिवार लेह गए… वहां उतरे… दो घंटे में बच्चे की हालत खराब… उसे ले के अस्पताल भागे… अगली उड़ान से किसी तरह वापस भागे… चलो जी हो गया tourism…
वैसे भी, यदि ऐसा कुछ न भी हो, तो आपको डॉक्टर यही सलाह देंगे, कि वहां जा के, एयरपोर्ट से सीधे होटल जाइये, दो दिन आराम कीजिये। बिल्कुल भी चलने फिरने टहलने घूमने की कोशिश न करें। फिर जब कुछ वातावरण के अभ्यस्त (acclamatize) हो जाएं तो बाहर निकल के बाज़ार टहल आइए। हल्का फुल्का।
ऐसे में क्या खाक पर्यटन होगा?
इसलिए लेह लद्दाख का प्रोग्राम कभी भी जल्दीबाजी में, कम समय का मत बनाइये। लेह जाना है तो कम से कम 10 या 15 दिन का समय निकालिये।
फिर सड़क मार्ग से मनाली आइए। वहां 2 या 3 दिन रुक के खूब टहलिए। टहलते घूमते मनाली से ऊपर 10,000 फ़ीट तक टहल आइए। मनाली से ऊपर सोलंग नाला जाइये। वहां दो घंटे पैदल चलिए। किसी पहाड़ी पर चढ़िये उतरिए।
इस तरह आप 8000 से 10,000 फ़ीट के लिए acclamatize हो जाएंगे। फिर सड़क मार्ग से लेह जाइये। वो भी ज़रूरी नही कि एक दिन में ही पहुंच जाएं। आराम से रुकते रुकाते जाइये।
रास्ते मे जहां भी रुकें, किसी बहाने कुछ पैदल चलिए। कहीं भी जहां दस या 12 हज़ार फीट की ऊंचाई हो, वहां रुकिए। कुछ टहलिए। सीढ़ियों पर चढ़िये।
इस तरह जब आप 5 दिन में लेह पहुंचेंगे तो आप 12,000 फ़ीट की ऊंचाई के लिए पूरी तरह तैयार होंगे। न सांस उखड़ेगी, न सिर दर्द, बेचैनी, मिचली होगी…
उसके बाद कम से कम दो दिन लेह रुकने के बाद आगे निकालिये। उस दो दिन में भी खूब टहलिए। पैदल चलिए। सीढियां चढ़िये। ढेर सारा पानी पीजिए। गर्म कपड़े हमेशा पहन के रखिये। धूप बेहद तीखी होती है वहां, इसलिए सीधे धूप में expose होने से बचिए।
लेह शहर अपने आप मे कोई आकर्षण नहीं है।
आकर्षण वहां तक की यात्रा में है।
जाइये by road, वापसी बेशक़ by air कीजिये।
अगर 10 दिन का समय न हो तो लेह जाने का कोई फायदा नहीं।