महाराजा भूपेन्द्र सिंह का चैल… The land of romance

कुछ साल पहले की बात है… हम दोनों मियाँ बीवी घूमने गए… शिमला…. मैं तो पहले हो आया था पर श्रीमती जी ने देखा नहीं था.

जब भी कहीं घूमने का प्रोग्राम बनता, वो हर बार कहतीं – शिमला चलो, शिमला चलो…. अब चूँकि मैं इन्हें अच्छी तरह जानता हूँ, सो मैं हर बार टाल जाता था… अरे किसी नई जगह चलते हैं… किसी छोटे हिल स्टेशन पे चलते हैं.

अच्छा खुद तो देख आये… इसलिए मुझे नहीं ले के जाना चाहते….

अच्छा भाग्यवान चल… और चल पड़े हम दोनों… कालका से शिमला टॉय ट्रेन से गए…बड़ा अच्छा सफ़र रहा…

ट्रेन से कालका से शिमला, आपकी जिंदगी का एक यादगार सफ़र हो सकता है… खैर शिमला पहुंचे…

स्टेशन की सीढियां चढ़ के ऊपर आये…पैदल ही चलते हुए मेन मार्केट में पहुंचे…

मैडम जी ने नाक भौं सिकोडी… ये कहाँ ले आये… बाप रे बाप… इतनी भीड़… इतना ट्रैफिक… धुंआ… धूल… शोर शराबा… चिल्ल पों मची थी…

खैर अब पहली समस्या थी वो पहाड़ जैसे बैग, जो हमने कंधे पे लाद रखे थे… इनसे तो छुटकारा हो… होटल में कमरे ढूँढने लगे… घटिया से कमरे 2-2 हज़ार के….

मुझे मसूरी का एमराल्ड हाइट्स और कैमल बैक रोड याद आ गया… शहर के बीचो बीच…. मेन बाज़ार से सिर्फ 200 मीटर की दूरी पे शांत सुनसान सी रोड… जहां बरसती बूंदों की झिमिर-झिमिर और झींगुरों की आवाज़ के अलावा कुछ सुनायी नहीं देता…

और उस बेहद खूबसूरत होटल के शानदार कमरे… सन 2000 में हम पहली बार गए थे वहाँ, तब 125 रु में ठहरे थे, फिर 200 हुआ… फिर 350… इस साल गए तो 500 लगे (off season में).

और यहाँ शिमला में 2000 रु…. खैर भैया… रूम लिया, नहाए धोये… एक बार शहर घूमने की औपचारिकता की, वही घिसी पिटी माल रोड और अगली सुबह भाग लिए …

मैडम जी का मूड खराब था… बिलकुल मज़ा नहीं आया… तो मैंने उन्हें ढाढस बंधाया… मैं हूँ न…चलो चैल चलें…

वो कहाँ है…. अरे बस बगल में ही…

फिर ट्रेन पकड़ी, कंडाघाट उतरे… वहाँ से सिर्फ 30 किलोमीटर… चैल… सड़क मार्ग से शिमला से बमुश्किल 45 किलोमीटर…

चैल पहुँचने से पहले ही नज़ारा बदल चुका था…. 2250 मीटर यानी 7380 फीट की ऊंचाई पर चैल, देवदार, पाइन और ओक के घने जंगलों के बीच शांत… सुनसान…बेहद खूबसूरत चैल…

न कोई शोर शराबा… न चहल पहल… न कोई ट्रैफिक, न पर्यटकों की भीड़… मज़े की बात किसी होटल का कोई एजेंट नहीं आपसे ये पूछने के लिए कि…. कमरा दिखा दूं सर.

जब हम उस मिनी बस से उतरे तो हमारे साथ कुछ स्थानीय लोग थे और बस हम दोनों… उस दिन शायद उस शहर में (अगर उसे शहर कहा जाए) बस हम ही दोनों टूरिस्ट थे…

शहर के नाम पे एक चौक में 15-20 छोटी छोटी दुकानें… दो एक रेस्टारेंट्स… और शहर शुरू होने से पहले ख़तम….

खैर उस मुख्य चौराहे से कुछ दूर घने पेड़ों के बीच हमने एक होटल में कमरा ले लिया….. चाय पी, नहाए धोये और बाहर का जायजा लेने निकल पड़े…

बाहर प्राकृतिक सौंदर्य के अलावा कुछ नहीं था…. चैल की कहानी भी अजीब है…. हर शहर की एक कहानी होती है…. इतिहास है…. पर चैल की कहानी बड़ी अजीब सी है…

इसका इतिहास बड़ा मजेदार है….पटियाला के महाराजा भूपेंद्र सिंह…. अरे यही अपने कैप्टेन अमरिंदर सिंह, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री के दादा जी, और अपनी भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री परनीत कौर के ददिया ससुर… सुनते हैं कि बड़े ही रंगीन मिजाज़ आदमी थे…बिगडैल भी…

सुनते हैं कि उन्होंने एक बार शिमला के माल रोड पे घूमते हुए एक लड़की छेड़ दी…और वो लडकी निकली वाइसराय की….

कुछ जगह ये भी लिखा है कि दरअसल उनका वाइसराय की लड़की से चुपके-चुपके प्रेम-प्रसंग चल रहा था….

पर महाराजा ने जो स्वयं अपने मुंह से किस्सा बताया वो यूँ था कि महाराज सड़क पे घोड़ा दौड़ा रहे थे… मोहतरमा वहां पैदल सैर कर रहीं थी….

अब उनपे धूल का गुबार जो उड़ा तो उन्होंने गाली दे दी…. bloddy indian…

सो महाराज ने घोडा मोड़ लिया और खांटी पंजाबी में बोले…. तू गाल किद्दां कड्डी ओये… तैनू पता मैं कौन आं… @#$% चक के लै जूँ… ( तूने गाली कैसे निकाली ओये… पता है मैं कौन हूँ…. उठा के ले जाऊंगा)….

खैर साहब जो भी हुआ हो, बात ऊपर तक पहुंची और तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने भूपेंद्र सिंह को शिमला से निष्कासित कर दिया…. वहाँ घुसने पर पाबंदी लगा दी गयी….

अब राजा बुरे फंसे…. क्योंकि उनकी तो पूरी गर्मी वहीं कटती थी, शिमला में…. सो बिगडैल राजा ने कह दिया… अपने पास रखो अपना शिमला… नहीं चाहिए…. और अपने दरबारियों से बोले, नया शिमला बसाओ…

सो दरबारियों ने शिमला से भी खूबसूरत और ऊंची जगह खोज निकाली… चैल… और महाराज ने वहाँ एक महल बनवाया, एक क्रिकेट का मैदान बनवाया जो आज भी विश्व का सबसे ऊंचा मैदान है….

चैल का नैसर्गिक सौंदर्य सचमुच लाजवाब है… शांत…. स्निग्ध…. पवित्र…. अनछुआ…. ज़िंदगी की दौड़ भाग से दूर….

चारों तरफ जहां तक निगाह जाती है, सिर्फ घने पेड़ों का जंगल…. सामने वाली पहाड़ी पे दूर दूर बिखरे हुए पहाड़ी मकान…. शहर से बाहर निकलते ही सेबों के बाग़….जब हम गए तो फसल पूरे शबाब पर थी….

चैल के सौंदर्य को शब्दों में कहना बड़ा मुश्किल है…. माहौल बड़ा ही रोमांटिक था….. एक सज्जन मिल गए…. कोई ठाकुर साहब थे…. लोकल थे….

पुराने किस्से सुनाने लगे…. कैसे रौनक लगती थे राजा के ज़माने में…. सुनते हैं कि बड़े बड़े अँगरेज़ अफसर उस ज़माने में राजा के कार्यक्रमों में न्योता पाने के लिए जुगाड़ लगाते थे ….

ये सारे किस्से सुन के मुझे अपने दिन याद आ गए…. वो दिन, जो मैंने खुद महाराजा भूपेंद्र सिंह के घर में बिताये थे… और दो चार दिन नहीं जनाब, पूरे 4 साल….

जी हाँ , NIS patiala में… राष्ट्रीय खेल संस्थान NIS दरअसल महाराजा भूपेंद्र सिंह के महल, मोती बाग़ में बसा हुआ है… वहाँ से मैंने पढ़ाई की और फिर वहीं एक प्राध्यापक के रूप में नियुक्त हो गया…

वहाँ के एक एक कमरे में भूपेंद्र सिंह की छाप दिखती थी…. समय के साथ सब ख़त्म हो गया… सारे कालीन और फर्नीचर या तो टूट फूट गया या तहस नहस हो गया….

पर एक कमरा आज भी है….. महाराज का मुख्य ड्राइंगरूम, वो आज भी जस का तस सुरक्षित और संरक्षित है…. गाहे बगाहे खुलता है…. जब कोई बहुत ख़ास मेहमान आता है….

एक बार मुझे वहाँ बैठ के चाय पीने का मौका मिला था… जब महाराजा नेपाल NIS आये थे…. इतना खूबसूरत कि बयान नहीं हो सकता….

फिर एक पुस्तक हाथ लगी…. दीवान जर्मनी दास की The Prince…. उसे पढ़ के उस महल के स्याह किस्से पता चले….

यूँ कि राजा के हरम में 365 औरतें (यूँ तो उन्हें रानी कहते थे) होती थीं…. फिर राजा का बेडरूम देखा…. महारानी का रूम भी देखा 4 -5 पटरानियाँ होती थीं, बाकी 350 के आसपास रानियाँ

फिर एक दिन ये अहसास हुआ कि वो जो Old boys hostel हुआ करता था…. उन्ही कमरों में वो रानियाँ रहा करती थीं जिन्हें बस एक रात इस्तेमाल कर के छोड़ दिया जाता था….

कितनी तो उसमें घुट घुट के मर जाया करती थीं…. पटियाला रियासत की वो मासूम लड़कियां जिनकी खूबसूरती के बारे में राजा के जासूसों ने उसे खबर कर दी थी और उसने उन्हें उठवा लिया था… ज़बरदस्ती या उनके बाप की रजामंदी से….

पर उस धरती के बारे में ये भी कहा जाता है कि It is the land of romance… हमारे एक डीन हुआ करते थे…. उन्होंने 35 साल बिताये थे NIS में….

जब हमारा आखिरी दिन आया तो बोले… I hope you would have enjoyed your stay in NIS patiala…. this is the land of romance…. in the last 35 years…. i have seen so many romances and love stories…. blooming under the trees of moti bag…

आज भी गूंजते हैं ये शब्द मेरे कानों में…. क्योंकि खुद मेरे जीवन में भी रोमांस वहीं शुरू हुआ…. मोती बाग़ में…. मैंने अपने जीवन का सबसे बेहतरीन, सबसे हसीन समय पटियाला के मोती बाग़ में ही बिताया… वहीं मेरी शादी हुई… बेटा भी वहीं पैदा हुआ….

उस दिन वहाँ चैल के जंगलों में भी माहौल बहुत रोमांटिक था…. बहुत देर तक हम उन सुनसान सड़कों पर टहलते रहे… हाथों में हाथ लिए….

अगर आप अपनों के साथ कुछ फुर्सत के क्षण बिताना चाहते हैं… चैल से अच्छी जगह कोई नहीं हो सकती…. पर ख्याल रहे…. शॉपिंग की कोई गुंजाइश नहीं और ना ही बच्चों के लिए कोई आकर्षण.

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