अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजकृशानुं ज्ञानिनामग्रण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ।।
अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन को ध्वंस करने के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान्जी को मैं प्रणाम करता हूँ॥
उपरोक्त लक्षणों से हनुमानजी ब्राह्मण वर्ण के हैं।
लेकिन ठहरिए,
कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि।
उन्होंने सेना में से कुछ को मार डाला और कुछ को मसल डाला और कुछ को पकड़-पकड़कर धूल में मिला दिया।
ये गुण तो हनुमान जी को क्षत्रिय सिद्ध करते हैं।
अरे ठहरिए …
सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं ।
देखेउँ करि बिचार मन माही ।।
हे पुत्र! सुन, मैंने मन में खूब विचार करके देख लिया कि मैं तुझसे उऋण नहीं हो ।।
जो श्रीराम को भी अपने कर्ज के जाल में फँसाले वह तो कोई चतुर वैश्य ही हो सकता है।
किन्तु सुनिये ….
हनुमानजी तो स्वयं को शूद्र (सेवक) कह रहे हैं
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।।
श्री रामचंद्रजी का काम किए बिना मुझे विश्राम कहाँ
एकु मैं मंद मोहबस कुटिल हृदय अग्यान।
एक तो मैं यों ही मंद हूँ, दूसरे मोह के वश में हूँ, तीसरे हृदय का कुटिल और अज्ञान हूँ ।।
मित्रों हनुमानजी के ज्ञान (ब्राह्मण), पराक्रम (क्षत्रिय), चतुराई (वैश्य) से परिपूर्ण और सेवाभावी, निराभिमानी (शूद्र ) चरित्र को देख कर मेरी बुद्धि तो उनके वर्ण जाति का निर्धारण करने में अक्षम है, आप कर सकें तो बताइयेगा।
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