Thyroid का मायाजाल और मुक्ति, मेकिंग इंडिया साप्ताहिकी

जब पूरब से सूर्य उगा तो पहली किरण जिस धरती पर पड़ी उसका नाम भारत हुआ….

सबने उसे कई नामों से पुकारा, कोई हिन्दुस्तान कहता रहा, किसी ने आकर इंडिया कहा, और हम उसे माँ मानकर भारत माता कहते रहे….

धरती के टुकडे की भी अपनी आत्मा और प्राण होते हैं, हमने उसे नाम दिया चिति और विराट…
चेतना को अपना मानकर चाहे जिस नाम से पुकारो वह सबको बराबर प्रेम देती है… पोषण देती है…. जीवन के लिए उपयोगी सामग्री देती है…

हम कई वर्षों तक उसको पूजते रहे, हमारे ऋषि मुनियों ने अपने अध्ययन और खोज से कई आविष्कार किये, कई औषधियां बनाई, मानव सेवा ही हमारा उद्देश्य रहा… हमने दुनिया को जीना सिखाया, प्रेम सिखाया, करुणा सिखाई…

लेकिन न जाने कहाँ कमी रह गयी कि हम धरती के उपयोग से उपभोग की ओर चले गए, हमने उसका कृतज्ञ होने के बजाय उसे नोंचना खसोटना शुरू कर दिया, अपनी सुविधा के लिए जंगल नदी पर्वत सबका शोषण किया.. जो पोषण देता है उसका जब आप शोषण करने लगते हैं ना तो वह उदास हो जाता है….

धरती उदास रहने लगी… कई सदियों से वह उदास बैठी है… आओ हम उसे मनाएं… उससे अपने किये की माफी मांगे…. धरती बहुत क्षमावान होती है… वह तो उसे भी क्षमा कर देती है जो उसे नष्ट करता है….

अब समय आ गया है कि हम दोबारा से अपनी धरती से जुड़ें, उसे दोबारा से वैसा ही पल्लवित करें जैसी वो पहले थी…. उसका जादू खोया नहीं है… बस ज़रा संवारने की आवश्यकता है….

उसके दिए हुए जंगल, नदियाँ, पर्वत, वनस्पतियाँ, औषधियां…. सबकुछ वही है… परन्तु वह अपने ही जाए के वियोग में बेसुध सी बैठी है… पत्थर हो गयी है… आओ प्रार्थना पूर्वक छूकर उस पत्थर में प्राण प्रतिष्ठा करें…

जागो मोहन… नया सवेरा हुआ है, नए युग का प्रारम्भ हुआ है… कब तक सोये रहोगे…. आधुनिक जीवन शैली के मायाजाल में फंसकर कब तक रोग को पाले रहोगे?

धरती जो हमारी माँ है, आज भी हाथ में अमृत की गगरी लिए खड़ी है… क्षमा माँगते हुए अपनी अंजुरी उसके सामने उठाओ… वो अमृत अवश्य बरसाएगी…..

आओ धरती को फिर से गोकुल बनाएं….

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  • माँ जीवन शैफाली

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