जिस समय अमर क्रांतिकारी वीर सावरकर के क्रांतिकारी शिष्य मदनलाल ढींगरा ने आज़ादी की लड़ाई के लिए 1909 में लंदन में फांसी के फंदे को चूमा था, उस समय मोहनदास करमचंद गांधी नाम का आदमी थ्री पीस सूट टाई पहनकर विदेशी इत्र की सुगंध से सराबोर होकर लंदन के क्लबों में चुरुट पिया करता था और ब्रिटिश शासकों की चमचागिरी में बाकायदा लम्बे लम्बे लेख लिखा करता था।
अमर क्रांतिकारी शहीद मदनलाल ढींगरा को भी उनके अमर बलिदान के लिए मोहनदास करमचंद गांधी ने जमकर कोसा था और ब्रितानी हुक्मरानों की तलुआचाट प्रशंसा का रिकॉर्ड तोड़ दिया था।
इस देश की आज़ादी के लिए सात समुंदर पार जाकर लंदन में ब्रिटिश साम्राज्य के एक अत्याचारी स्तम्भ सर विलियम हट कर्ज़न वायली को मौत के घाट उतार कर विदेशी धरती पर फांसी के फंदे को चूम लेने वाले पहले क्रांतिकारी मदनलाल ढींगरा के एकमात्र प्रेरणास्त्रोत अमर क्रांतिकारी वीर सावरकर ही थे।
याद दिलाना बहुत ज़रूरी है कि मोहनदास करमचंद गांधी नाम के व्यक्ति ने क्योंकि मदनलाल ढींगरा के बलिदान को कोसा था और उस अत्याचारी ब्रिटिश आततायी सर विलियम हट कर्ज़न वायली की मौत पर तलुआचाट मातम मनाया था इसलिए इसका परिणाम यह हुआ कि देश की राजधानी दिल्ली में देश की आज़ादी के बाद भी एक महत्वपूर्ण सड़क का नाम उस हत्यारे के नाम पर लॉर्ड कर्ज़न रोड रखा गया लेकिन मदनलाल ढींगरा के नाम पर एक गली का नाम भी नहीं रखा गया।
और अंत में… मोहनदास करमचंद गांधी नाम का व्यक्ति प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों की फौज में हिंदुस्तानियों को भर्ती कराने वाले दलाल की भूमिका निभा रहा था। अपने इस कुकर्म के लिए “कैसर ए हिन्द” नाम का नेग-न्योछावर ईनाम अंग्रेज़ों से पाकर ब्रिटिश भक्ति में नाच झूम रहा था, उस समय वीर सावरकर भारत माता की आज़ादी की ज़ंग के लिए कालकोठरी में उम्रकैद की सज़ा भुगत रहे थे।
वीर सावरकर जी की जयंती पर उनको समर्पित
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