विज्ञान नामक मजहब के मज़हबी और घमंड भरे अंधविश्वासों के बारे में एक पूरा ग्रंथ लिखा जा सकता है, पर यहाँ मैं संक्षेप में सिर्फ चार मामूली उदाहरण गिनाऊँगा :
1. भोजन में वसा की मात्रा और बीमारी के सम्बंध के बारे में पचास वर्षों से दुनिया भर को दी गई ”वैज्ञानिक” सलाह का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था। फिर भी दुनिया भर की वैज्ञानिक संस्थाओं ने बिना किसी ठोस evidence के इस बात का प्रचार gospel truth की तरह किया।
गाइड लाइंस की मोटी मोटी पोथियाँ बिना किसी ठोस प्रमाण के वैज्ञानिकों ने हुआं हुआं स्टाइल में लिखीं जिन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी भक्त डॉक्टरों ने पूरे भक्तिभाव से क़ुरान और बाइबिल की तरह रटा और जनता तक पहुंचाया और जनता ने आदर्श धर्मावलम्बियों की तरह आँख मूँद कर स्वीकार किया।
इस सलाह का नतीजा यह हुआ कि लोगों ने भोजन में वसा की मात्रा कम कर उसकी जगह कार्बोहाइड्रेट अधिक खाना शुरु किया। ग़ौर करने की बात है कि भोजन में कैलोरी के तीन ही स्रोत हैं : वसा, कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन।
ज़ाहिर सी बात है कि यदि इनमें से एक की मात्रा कम की जाएगी तो उसकी भरपाई कहीं और से होगी, आदमी भूखा तो रहेगा नहीं। तो बस यही हुआ। दुनिया भर के बाजार कम वसा पर चीनी और नमक से लदी पैकेज्ड खाद्य सामग्रियों से लद गए।
अब विज्ञान का कहना है कि दुनिया भर में मोटापे, मोटापे से सम्बंधित दूसरी बीमारियाँ, कैंसर और मधुमेह की महामारी का कारण पचास वर्षों से विज्ञान के नाम पर फैलाया गया अंधविश्वास है जिसके कारण लोगों ने भोजन में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बढ़ा दी।
2. पचास वर्षों से बिना किसी ठोस आधार के “वैज्ञानिक“ सलाह दी जा रही है कि थोड़ी मात्रा में किए गए मदिरा के सेवन के बहुत सारे स्वास्थ्यवर्धक परिणाम हैं। पर अब कहा जा रहा है कि मदिरा पीने की कोई सुरक्षित न्यूनतम सीमा नहीं है। मदिरापान की मात्रा और कैंसर का सम्बंध linear है और कोई न्यूनतम फायदेमंद या सुरक्षित तक cut off स्तर नहीं है।
3. कोई पैंतीस वर्ष पूर्व दुनिया भर के शिशु रोग के पंडितों और उनकी संस्थाओं ने cot death को शिशु के पीठ के बल सोने से जोड़ा – बिना किसी पक्के सबूत के। माँ बाप को कहा गया कि बच्चे को पेट के बल सुलाएँ । यहां तक कि यदि माँ बाप ने यह सलाह नहीं मानी और शिशु की मृत्यु हुई तो माँ बाप को क़रीब क़रीब इसके लिए उत्तरदायी ठहराया गया और उनके अंदर जीवन पर्यंत पापबोध भर दिया गया। अब वही धुरंधर विशेषज्ञ अब ठीक उल्टी बात कर रहे हैं – यानी कि शिशु को पेट के बल सुलाना ख़तरनाक है!
4. रासायनिक खाद का दुनिया भर में ज़ोर शोर से विज्ञान के नाम पर प्रचार हुआ। मुझे याद है कि मेरे बचपन मे यदि कोई अनपढ़ किसान कहता कि रासायनिक खाद के इस्तेमाल से धरती बंजर हो जाएगी, तो उसे मूर्ख समझ कर उसका मज़ाक़ उड़ाया जाता था। और अब! अब पता चला कि वह अनपढ़ किसान सही था और ये कृषि वैज्ञानिक विज्ञान के मज़हब का अंधविश्वास फैला रहे थे।
यहां विस्तार से बात रखने की जगह नहीं है पर बताता चलूँ कि जिस मक्खन और घी को इतनी गालियाँ दी गईं और मार्जरीन वगैरह से बाज़ार पाट दिया गया, वह भी विज्ञान के मज़हब के अंधविश्वास का नमूना है। डालडा और मार्जरीन ने न जाने कितने लोगों को दिल के दौरे और पक्षाघात से मार दिया। अब उनका धंधा बंद होगा और मक्खन वापस आएगा।
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