सोशल तथा अन्य मीडिया में लिखनेवालों की बाढ़ आई है कि दिल्ली में मोदी शाह फेल हुए। पाँच साल वे आप को दे चुके, पाँच और दिये हैं आप को उनका वांछित विकल्प विकसित करने के लिए। क्योंकि उनको हटाकर उनकी जगह लेने जो खड़े हैं उनको विकल्प मानना इस देश के हिंदुओं के लिए आत्मघाती मूर्खता होगी।
यहाँ दो बातें याद आती हैं। पहला एक चुटकुला है –
एक सांड गाय को संतुष्ट करने में लगा हुआ था लेकिन लक्ष्यभेदन में असफल हो रहा था तो एक बैल आ कर सलाह देने लगा ‘ऐसे, नहीं ऐसे, नहीं नहीं, ऐसे…’
खीझकर सांड ने कहा ले, तू ही करके दिखा जो बता रहा है।
बैल बोला, मैं केवल बौद्धिक मार्गदर्शन कर सकता हूँ।
तो बात साफ है, सही को तलाशते रहिए, लेकिन तब तक केवल गलत गलत रटते रहने से आप का ही नुकसान होते रहेगा। क्योंकि पंचतंत्र की उस कथा में जैसे चार धूर्तों द्वारा एक व्यक्ति के कंधे पर लदे बकरे को समय समय पर कुत्ता बताने से उस व्यक्ति ने बकरा फेंक दिया – जिसे वे धूर्त खा गए, वही उनका इरादा था – और हम यही परिणाम उन सभी विधानसभा चुनावों, जहां भाजपा को हराया गया, में देखते आए हैं।
इसलिए जब तक नए विपक्ष को खोजकर उसे विकल्प नहीं बनाते तब तक मन मारकर ही क्यों न हो, भाजपा का साथ दें।
इस मामले में म्लेच्छ हम से अधिक साफ सोच रखते हैं। हाल ही में विवादित वक्तव्य के लिए प्रसिद्ध हुए ‘अलगाववादी रजाकार पार्टी’ के एक नेताजी जहां से चुने गए हैं वो सीट बरसों से काँग्रेस जीतती थी। नेताजी के मतदाता काँग्रेस के ही मतदाता थे। लेकिन उनको पता था कि अपने बिरादर को अपने दम पर जिताने के लिए उनकी संख्या पर्याप्त नहीं थी, इसके लिए काँग्रेस से जुड़े हिन्दुओं की ज़रूरत थी। इसलिए वे बरसों तक काँग्रेस को जिताते आए।
जिस दिन उनको पता चला कि उनकी संख्या उनका उम्मीदवार जिता सकती है, उन्होने काँग्रेस को इस्तेमाल किए हुए कंडोम की तरह उतार फेंक दिया। लेकिन तब तक काँग्रेस को ही एकमुश्त वोट करते रहे थे। ऐसा नहीं था कि ‘अलगाववादी रजाकार पार्टी’ उनके लिए अपरिचित थी, या वे उसके कार्यकर्ता नहीं थे। लेकिन अपनी ज़रूरत समझकर वे काँग्रेस को जिताते रहे, अपना काम निकालते रहे।
और यह भी नहीं था कि इनके दम पर जीतने वाले काँग्रेसी इनके काम होम डिलेवरी जैसे करते रहे, नहीं। ये फॉलो अप करते रहे। पीछे लगे रहे। हम में यह कमी हमेशा रहती है, कई बार विलाप देखता हूँ कि चुने जाने पर भाजपाई हमारी सुध लेने आते नहीं।
म्लेच्छ लॉन्ग टर्म गोल लेकर चलता है, लड़ाई में नष्ट नहीं होना है तो हमें भी अपनी सोच बदलनी आवश्यक है।
अब दूसरी बात। सरकारी नौकरी के कारण पिताजी के ट्रांसफर होते रहते थे, अलग अलग लोग पड़ोसी मिलते रहते थे। ऐसे ही एक पड़ोसी का यह किस्सा यहाँ याद आता है।
उनका बेटा मंदबुद्धि था। बिलकुल डाउन सिंड्रोम वाला बालक तो नहीं था लेकिन कोई भी काम ढंग से न कर पाता। एक दिन उसकी माँ को उसके सामने सर पीटते सुना – तेरे पिता नहीं रहेंगे तब क्या करोगे?
कभी लगता है मोदी जी हम हिंदुओं से यही सवाल पूछ रहे हैं – मैं नहीं रहूँगा तब क्या करेंगे आप लोग? क्योंकि भक्तों को अच्छा लगे या बुरा, वे अमर तो है नहीं और यह बात मोदी जी भी जानते हैं।
इसके पहले भी यह लिख चुका हूँ और लगता है बार बार लिखना पड़ेगा क्योंकि वक्त किसी के लिए ठहरता नहीं है।
मोदी जी के बाद ‘कौन’ यह सोचना बंद करें, मोदी जी के बाद ‘क्या’ यही सोचें। ‘कौन’ आते जाते रहेंगे, ‘क्या’ पर सोचेंगे तो टिकाऊ व्यवस्था बनी रहेगी।
अंत समय छत्रपति शिवाजी महाराज को चिंता थी तो उनके द्वारा स्थापित की गई हिन्दू पद पादशाही की, अपने पुत्र संभाजी महाराज की नहीं।
Think of a Hindu Millennium – हिन्दू सहस्राब्दी की सोचें!
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