पिछले दो महीनों से सीएए के विरुद्ध, दिल्ली के जीवन को अस्त व्यस्त करने वाला शाहीन बाग में चल रहा काँग्रेस, AAP और वामी-लिबरल गिरोह द्वारा प्रायोजित मुस्लिम समुदाय का धरना, अब सार्वजनिक रूप से गज़वा-ए-हिन्द को मानने वाले इस्लामिक कट्टरपंथियों के हाथ जा चुका है।
वैसे कुछ लोगों की आशा थी कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद, सड़कों पर चल रहा यह धरना समाप्त हो जाएगा, लेकिन आशा के विपरीत इसने दिल्ली के मौजपुर, भजनपुरा, घोन्दा, गोकुलपुरी, जाफराबाद में हिंसक रूप से पैर फैला गया है।
मुस्लिम बहुल प्रदर्शनकारियों ने धर्मनिरपेक्षता की आड़ में प्रधानमंत्री मोदी के साथ साथ भारत की साख को बट्टा लगाने के लिए, अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प के भारत पहुंचने पर, उसे हिंसक रूप दिया है।
भारत का धर्मनिरपेक्ष यह सोच रहा है कि ये प्रदर्शन, आगज़नी और खून खराबा, भारत की सरकार को विश्व के सामने कटघरे में खड़ा कर कमज़ोर कर देगा लेकिन जेहादी भीड़ इसको, भारत के इस्लामीकरण की सफलता के अगले चरण के रूप में देख रहा है।
भारतीय विपक्ष की सहमति से किया गया शाहीन बाग का प्रयोग, आज राजनीति से आगे जाकर, पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष हिंदुओं (इस पर भी प्रश्नचिह्न है, बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएगी) को छोड़ कर कट्टरपंथी मुस्लिम विरुद्ध हिन्दू हो चुका है।
जैसे कि समाचार आ रहे हैं कि केंद्र सरकार ने प्रदर्शनकारी दंगाइयों से निपटने की लिए कुछ कदम उठाये है और वह अगले निर्णायक कदम उठाने के लिए, डॉनल्ड ट्रम्प के भारत से विदा हो जाने का इंतज़ार कर रही है।
बहुतों का यह मानना है कि केंद्र सरकार द्वारा कड़ाई से उठाए गए कदम, दंगाइयों को दिल्ली में कुचल कर रख देंगे और उसका शेष भारत मे विस्तार रुक जाएगा। लेकिन, मेरा अनुभव या अनुभूति इसको स्वीकार नही कर पा रही है।
मैं समझता हूँ कि केंद्र सरकार, जो दिल्ली की केजरीवाल सरकार के प्रशासन, न्यायपालिका और वामी मीडिया की दिव्यांगता को झेल रही है, वह कानून व्यवस्था को बनाये रखने के लिए, तत्कालीन कदम तो उठाएगी लेकिन, वह आशानुसार ऐसा कोई कदम अभी नहीं उठाएगी जिसका प्रभाव सर्वव्यापी रूप से पूरे भारत पर पड़ा दिखाई दे।
यह सही है कि सीएए का विरोध कर रहे लोगों द्वारा हिंसा का नग्न तांडव देख कर, भारत के बहुसंख्य जनमानस का संयम समाप्त हो गया है और उसे भारत सरकार से त्वरित कार्यवाही की अपेक्षा है। लेकिन मैं समझता हूँ कि हम उस दिशा की तरफ बढ़ चुके है, जहां त्वरित कार्यवाही से ज्यादा, निर्णायक कार्यवाही करना ज्यादा महत्वपूर्ण है। भारत की केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली के दंगाइयों के विरुद्ध की गई कोई भी कठोर कार्यवाही, विपक्ष व न्यायपालिका की आलोचना के साथ ही बंधी हुई है और वह इस दिव्यांगता को केवल हिन्दू समुदाय के समर्थन व भागिता से दूर कर सकती है।
मैं जितना नरेंद्र मोदी की कार्यपद्धति को समझा हूँ, उससे यही समझा है कि वे जटिल समस्याओं के निदान के लिए, उसे हिज्जों-हिज्जों में बांट कर निदान नहीं करते। वे उस पर एक ही बार में निर्णायक कार्यवाही करते है।
यह मैं इसलिये कह रहा हूँ क्योंकि भारत को भौगोलिक व सामाजिक रूप से विखंडित करने के लिए शाहीन बाग के प्रयोग से उठा दावानल, राजनैतिक आंदोलन नहीं है। यह सिर्फ दिल्ली या भारत केंद्रित नहीं है, इसके तार पाकिस्तान, चीन समेत कई पाश्चात्य देशों में जुड़े हैं।
मैं बड़े विश्वास से तो नहीं कह सकता कि मोदी इससे किस तरह निपटेंगे लेकिन मेरा अनुमान है कि इसका आरंभ सिर्फ गोली चलवा कर नहीं, बल्कि पीएफआई पर प्रतिबंध और उससे जुड़े समस्त लोगों, वे चाहे मुल्ला मौलवी या कोई हिन्दू राजनीतिज्ञ, बुद्धिजीवी या लिबरल को गिरफ्तार करके होगा।
सरकार को यह इंटेल मिल चुके हैं कि पूरे भारत के 50 शहरों में ‘एक राजनीतिक दल’ के प्रोत्साहन से माओवादियों, वामपंथियों और मीम-भीम के गठजोड़ से कट्टरपंथी मुसलमानों का नेतृत्व, एक साथ रक्तिम दंगे करा कर गृहयुद्ध के हालात बनाने की तैयारी कर रही है।
ये शहर सिर्फ भाजपा शासित राज्यों में ही नहीं बल्कि वहां भी है जहां राज्य सरकारों से उन्हें प्रश्रय मिला हुआ है। मुझे विश्वास है कि ऐसी अराजकता की संभावना पर, मोदी सरकार निर्भीकता से उसका सामना कर लेगी लेकिन इसको परिणीति तक पहुंचाने के लिए लोगों को स्वयं भी सड़कों पर सामने आकर, बलि देनी और लेनी पड़ेगी।
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