अदनान सामी को भारत की नागरिकता मोदी सरकार ने ही 2015 में दी थी और मैंने तब इस बात से असहमति भी जताई थी। सरकार ने तब उन्हें नागरिकता क्यों दी या अब पुरस्कार क्यों दिया, इसके वास्तविक कारण तो सरकार में बैठे लोगों को ही पता होंगे, लेकिन इस पुरस्कार की टाइमिंग बिल्कुल सही है।
अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए कुछ लोग यह शोर मचाकर देश का माहौल बिगाड़ रहे हैं कि भारत सरकार का नागरिकता संशोधन कानून पाकिस्तान या बांग्लादेश के मुसलमानों को भारत में शरण लेने या नागरिकता पाने से रोकता है। सत्तर सालों तक उनकी राजनीति मुसलमानों को डराकर और विभिन्न समुदायों के बीच दूरियां बढ़ाकर ही चलती रही है। 2014 से पहले तक ये लोग डराते रहे कि मोदी को वोट मत देना क्योंकि मोदी अगर प्रधानमंत्री बन गया, तो पूरे भारत में मुसलमानों का कत्लेआम होगा।
लेकिन वैसा कुछ हुआ नहीं! न कोई बड़ा दंगा भड़का, न कहीं कोई बड़ी घटना हुई। फिर छोटी-छोटी घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया। रेलगाड़ी में सीट के झगड़ों या आपसी रंजिश के कारण हुई किन्हीं घटनाओं को भी असहिष्णुता और मॉब लिंचिंग जैसे शब्द गढ़कर सांप्रदायिक रंग दिया गया। इसके बावजूद भी ज्यादा कुछ हुआ नहीं। अयोध्या का फैसला आ गया, तीन तलाक का कानून बनाया गया, कश्मीर का मामला निपट गया, फिर भी देश में शांति बनी रही। लाशों पर राजनीति करने वाले गिद्धों को इससे कष्ट होना स्वाभाविक ही था।
अंततः सीएए के बहाने उन्हें एक बढ़िया अवसर मिला। अब नए सिरे से लोगों को डराना शुरू हुआ कि मोदी-शाह तुम्हारी नागरिकता छीन लेंगे, तुम्हें डिटेंशन कैंपों में भेज देंगे और भारत को हिन्दू-राष्ट्र बना देंगे। जो नागरिकता देने वाला कानून है, उसे भी नागरिकता छीनने वाला कानून बताकर लोगों को भड़काया गया।
सबसे अद्भुत बात तो यह है कि जिस पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव करना वहाँ की सरकार का संवैधानिक दायित्व है, वहाँ का प्रधानमंत्री भी हमें उपदेश देता है कि अल्पसंख्यकों के साथ भारत में अच्छा व्यवहार नहीं हो रहा है और अफसोस की बात है कि भारत के ही लोग हां में हां मिलाते हैं। ननकाना साहिब में सिखों के साथ रोज क्या होता है, ये इमरान खान को नहीं पता; चीन में लाखों उइगरों के साथ क्या हो रहा है, यह भी नहीं पता; लेकिन भारत में किसके साथ कौन-सा अत्याचार हो रहा है, इस मामले में पूरी जानकारी होने का दावा करते हैं, जैसे पूरे भारत में उनके जासूसों का कोई नेटवर्क हो!
अदनान सामी को पुरस्कार देकर भारत सरकार ने सीमा के इस पार और उस पार वालों को एक स्पष्ट सन्देश दे दिया है और पूरी दुनिया के सामने उनके झूठ को एक्सपोज भी कर दिया है। दुनिया के किसी भी देश का कोई भी व्यक्ति भारत में कानूनी रूप से आता है तो वह यहाँ नियमानुसार रह भी सकता है, नागरिकता भी पा सकता है और सम्मान के साथ जी भी सकता है। किसी को मुसलमान होने के कारण न रोका जाता है और न भेदभाव किया जाता है।
सीएए कानून भी केवल इतना ही कहता है कि छह अल्पसंख्यक समुदायों के जो लोग धार्मिक भेदभाव के कारण अपनी जान बचाने के लिए 31 दिसंबर 2014 तक भारत में शरण लेने आए थे, उन्हें अब नागरिकता दे दी जाएगी। उसमें कहीं भी यह नहीं लिखा है कि अन्य लोगों को नहीं दी जाएगी। वे भी अगर साबित कर सकें कि वे धार्मिक उत्पीड़न के कारण शरण लेने आए थे, तो उन्हें भी कानूनी प्रक्रिया पूरी करने पर नागरिकता मिल सकती है।
यह भी ध्यान रखिये कि अल्पसंख्यकों के लिए भी यह कानून सिर्फ एक ही बार लागू होगा और सिर्फ उन्हीं लोगों को नागरिकता मिलेगी, जो 31 दिसंबर 2014 के पहले से भारत में रह रहे हैं। उसके बाद जो भी आए हैं, वे किसी भी धर्म के हों, उन्हें इससे कोई छूट नहीं नहीं मिलने वाली है।
ऐसा नहीं है कि कोई दानिश कनेरिया आज भारत आ जाए, तो उसे हिन्दू होने के कारण तुरन्त नागरिकता मिल जाएगी और कोई शोएब अख्तर आए तो उसे मुसलमान होने के कारण नहीं मिलेगी। इसलिए इस गलतफहमी में किसी को नहीं रहना चाहिए कि सरकार ने हमेशा के लिए भारत के दरवाजे किसी एक समुदाय के लिए खोल किए दिए हैं या दूसरे समुदाय के लिए बन्द कर दिए हैं।
वैसे भी सैफ़ अली से लेकर सरदेसाई तक न जाने कैसे-कैसे लोगों को ये पुरस्कार पहले मिल चुके हैं, इसलिए भी अगर एकाध सामी को बेवजह भी दे दिया गया हो तो कोई फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन इसमें भी जो सन्देश है, वो समझने वालों तक पहुंच गया होगा। बाकी आप सरकार का समर्थन या विरोध करने के लिए स्वतंत्र हैं। मुझे आपकी राजनैतिक विचारधारा से कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन समर्थन या विरोध तथ्यों के आधार पर कीजिए, भड़काऊ बातों या भावनात्मक अपीलों के कारण नहीं। सादर!
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