अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में क्यों नहीं पढ़ाना चाहते आप?

फिरोज़ खान, तुम बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में ही क्यों पढ़ाना चाहते हो?

वैसे ये प्रश्न उनसे किए जाने चाहिए जिन्होंने तुम्हें नियुक्त किया है, उनसे किए जाने चाहिए जो कहते हैं कि ध्रुवीकरण की राजनीति चल रही है।

आप अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में क्यों नहीं पढ़ाना चाहते? अन्य मदरसों और मुस्लिम महाविद्यालय विश्वविद्यालय में क्यों नहीं पढ़ाना चाहते?

आपने पाँचवीं कक्षा से संस्कृत की पढ़ाई आरम्भ की, उपाधियाँ प्राप्त की, आपने संस्कृत की पूजा की है, आपके घर में श्रीकृष्ण का चित्र लगा है आप गौसेवक होने का दावा करते हैं, अच्छी बात है।

संस्कृत के प्रति आपकी रुचि और आस्था प्रशंसनीय है। संस्कृत का इतना अध्ययन करने के बाद आप में बहुत से सनातन संस्कार भी विकसित हुए होंगे तो… क्या आपको नहीं लगता कि :

जिस प्रकार आपके भीतर संस्कृत के प्रति ऐसी श्रद्धा विकसित हुई है वैसी श्रद्धा आपके अन्य मुसलमानों में भी जागृत होनी चाहिए?

मुसलमानों को संस्कृत और सनातन ज्ञान की अधिक आवश्यकता है?

उन्हें इसकी अधिक आवश्यकता है जिन्हें ‘वन्देमातरम्’ से आपत्ति है, राष्ट्रगान से आपत्ति है?

उन्हें इसकी अधिक आवश्यकता है जो इस्लाम और जिहाद को लेकर उन्मादी हैं?

उन्हें इसकी अधिक आवश्यकता है जिन्हें ‘योग’ से आपत्ति है, योग दिवस का विरोध करते हैं, जिनके लिए योग हराम है?

उन्हें इसकी अधिक आवश्यकता है जिन्हें मस्जिद वापिस चाहिए?

उन्हें इसकी अधिक आवश्यकता है जो गोमांस भक्षण को अपना अधिकार समझते हैं?

उन्हें इसकी अधिक आवश्यकता है जो नित्य प्रति हमारे मन्दिरों और देवी देवताओं की मूर्तियों का अपमान करते हैं, हिन्दू त्यौहारों पर उपद्रव करते हैं?

क्या आपको नहीं लगता कि हिन्दू कन्याओं के बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराध करने वाले मुसलमानों को इसकी अधिक आवश्यकता है?

क्या आपको नहीं लगता कि मुसलमानों को “वसुधैव कुटुम्बकम्”, “सर्वे भवन्तु सुखिन:”, “विश्व का कल्याण” की शिक्षा अधिक आवश्यक है?

महोदय, आपने बाल्यकाल से संस्कृत की शिक्षा प्राप्त की है तो आपने सनातन धर्म पर, हिन्दुओं पर कोई उपकार नहीं किया बल्कि अपने कल्याण का मार्ग चुना है।

आपको ज्ञात होगा कि मुगलों ने सनातन धर्म और संस्कृति की कितनी हानि की है। मुगलों ने आक्रमण करके अनेक मन्दिरों का विध्वन्स किया, हमारे आर्ष ग्रन्थों को नष्ट किया, वेदों उपनिषदों और संस्कृत का गूढ़ ज्ञान रखने वाले प्रकाण्ड विद्वानों ऋषियों की हत्याएँ की, बलात् धर्म परिवर्तन कराए… उन सब दुष्कृत्यों के लिए आपकी संस्कृत की शिक्षा प्राप्ति, अरबों खरबों भाग के अंश रूप में एक नगण्य प्रायश्चित है।

क्या मुसलमान हमारे वे आर्ष ग्रन्थ हमारा सनातन ज्ञान लौटा सकते हैं जो उन्होंने नष्ट किए थे?

क्या आप यह प्रश्न उनसे पूछ सकते हैं जो मस्जिद वापिस माँग रहे हैं?

क्या आपको नहीं लगता कि मुसलमानों को संस्कृत और वेदों उपनिषदों का ज्ञान प्राप्त करके और उनका प्रसार करके अपना प्रायश्चित करना चाहिए?

क्या आपको नहीं लगता कि इसी में मुसलमानों का उद्धार है, इसी से मुसलमानों का कल्याण होगा?

संस्कृत और वेदों के छन्द शास्त्र पढ़ने-पढ़ाने में आपकी रुचि और आस्था प्रशंसनीय है किन्तु यह किस उद्देश्य के लिए है? यदि वास्तव में किसी उद्देश्य की सेवा हेतु है तो फिर जाइए अपने मुसलमान भाइयों को इसकी शिक्षा दीजिए। आपका और अन्य मुसलमानों का कल्याण होगा।

अब ये सभी उपरोक्त प्रश्न बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय प्रशासन, लश्कर-ए-मीडिया सेकुलर लिबरल विपक्ष और सरकार सभी से किए जाने चाहिए। जो कहते थे “फूड हैज़ नो रिलीजन”, उन्हें तुरन्त संस्कृत भाषा में धर्म दिखने लगेगा (जो सत्य भी है)।

और देश के सभी विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों को इसके समर्थन में अपने प्रदर्शन राष्ट्रीय स्तर पर करने चाहिए… अविलम्ब!

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