अपनी चीज़ वापस माँगने का दौर चला है, तो हम भी फिर से कह दें कि हमें क्या क्या वापस चाहिए…
हमें अपने वो पूर्वज वापस चाहिए जो अपने खेत जोतते, अपनी गायें दुहते, अपने बच्चों को पढ़ाते हुए… अपनी ज़िंदगी जी रहे थे और एक दिन क्रूर वहशी आक्रमणकारी गाँवों में घुसे और उन्हें मार डाला।
हमें उन पूर्वजों की आत्मा की शांति वापस चाहिए जिनका तर्पण करने को उनके वंश में कोई जीवित नहीं बचा। हमें अपनी वो पूर्वजा माएँ चाहिए जिन्हें लूट कर ये जानवर ले गए और अरब और तुर्की के बाज़ारों में बेच दिया।
हमें उन बहनों की इज़्ज़त वापस चाहिए, माले गनीमत बता कर जिनका शीलहरण किया गया। हमें वो बचपन वापस चाहिए जो तलवारों की धार पर काट डाले गए और बर्छियों की नोक पर बींध दिए गए। हमें वो पद्मिनियाँ वापस चाहिए जिन्होंने चिता की लपटों को चूम लिया। हमें अपने वे बीस करोड़ भाई वापस चाहिए, जिनके भीतर के संस्कार और मानवता को मार दिया गया और जो आज हमारे खून के प्यासे हैं।
हमें वह सिन्धु वापस चाहिए जिसके तट पर वेद ऋचाएं लिखी गईं। हमें बप्पा रावल की पिंडी वापस चाहिए और रामपुत्र लव का लाहौर वापस चाहिए। हमें नालंदा की वह पुस्तकें वापस चाहिए जिन्हें एक अशिक्षित असभ्यता के वाहकों ने जला डाला। हमें आचार्य विष्णुगुप्त की वह तक्षशिला वापस चाहिए जिसकी गलियों में आज बच्चे कटे सरों से फुटबॉल खेल रहे हैं। हमें अपना वह स्वर्णिम इतिहास वापस चाहिए जो रेगिस्तानी लुटेरे लूट कर ले गए। हमें अपने बच्चों के भविष्य की सुरक्षा वापस चाहिए जिसमें मानवता जीवित रहे।
आपको गंगा-जमुनी तहज़ीब याद आती है, तो हमें भी गंगा के किनारे भोले की काशी में विश्वनाथ के प्रांगण में घुसपैठ करती मस्जिद चुभती है और यमुना के किनारे कृष्ण की मथुरा का अपमान सताता है। हमें अपने काशी और अपनी मथुरा की पवित्रता वापस चाहिए। हमें फिर से अपने आकाश में गूंजता हर हर महादेव का उद्घोष वापस चाहिए जिसे दिन में पाँच बार उठती अरबी बांग दूषित करती है।
हमें अपनी भारत भूमि पर अपनी संस्कृति को जीने का अधिकार वापस चाहिए। हमें अपने वो हज़ारों मंदिर वापस चाहिए जिनके ध्वंशावशेष, क्रूर हिंसक जानवरों द्वारा एक शांत और शालीन सभ्यता के अपमान की गवाही दे रहे हैं…
और हाँ, हमें पता है कि माँगने से कुछ नहीं मिलता। आपकी जेब कट जाए और आपको पता हो कि आपका जेबकतरा टाँग फैला कर आपके सामने वाली सीट पर बैठा है… फिर भी माँगने से तो वह जेबकतरा आपकी पर्स भी वापस नहीं करता। और हमें तो हज़ार साल से लुट रही अपनी सभ्यता के आभूषण वापस पाने हैं।
हमें पता है कि वह जेबकतरा अपनी बारी का, अपनी ताकत बढ़ने का इंतज़ार कर रहा है। इसने अपने लुटेरे पूर्वजों की तलवारें, अमन और भाईचारे के नारों के नीचे, झूठ और फरेब के अखबार में लपेट कर छुपाने की मामूली सी कोशिश की है।
पर किसी की फितरत और नीयत कभी नहीं बदलती। लुटेरे फिर वापस आएँगे… उनसे अपना अतीत वापस लेना है और भविष्य को बचाना है तो शक्ति अर्जित करनी ही होगी। हमें अपने मंदिर वापस चाहिए और वे आसानी से नहीं मिलेंगे यह भी हमें पता है।
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कितनी सरल भाषा में आपने हमको इतिहास याद दिला दिया , अब मेरी जिम्मेदारी बनती है की में भी अपने आप को इतना प्रबल बना सकूं की कोई भी मेरे देश को बर्बाद ना कर सके