वर्ष 2004-2014 तक चीन की विकास दर 10.3 प्रतिशत थी, उभरती अर्थव्यवस्थाओं (ब्राज़ील, साउथ अफ्रीका, इंडोनेशिया, मलेशिया इत्यादि देश) की विकास दर 6.4% थी और भारत की विकास दर 7.7 प्रतिशत थी।
लेकिन वर्ष 2014-19 के दौरान चीन की विकास दर 6.8 प्रतिशत थी, उभरती अर्थव्यवस्थाओं की विकास दर 4.5%, जबकि भारत की विकास दर 7.4 प्रतिशत थी।
दूसरे शब्दों में, सोनिया सरकार के समय की विकास दर को विश्व की तेज़ विकास दर से मदद मिली, जबकि मोदी सरकार के दौरान विश्व में मंदी छाई हुई है जबकि भारत प्रगति कर रहा है।
एस गुरुमूर्ति ने आंकड़ों के माध्यम से यह बताया था कि कैसे सोनिया सरकार के समय भारत ‘नकली विकास’ के नाम पर आर्थिक विनाश की तरफ जा रहा था, जिसे विमुद्रीकरण के द्वारा रोक दिया गया।
ज़्यादा आंकड़े देकर बोर नहीं करूँगा, लेकिन गुरुमूर्ति लिखते है कि सोनिया सरकार के दौरान प्रॉपर्टी के दाम 2100 प्रतिशत तक बढ़ गए थे। इतनी महंगी प्रॉपर्टी कौन खरीदेगा और किसको लाभ होगा?
गुरुमूर्ति आगे लिखते है कि 12 लाख करोड़ का काला धन मध्यम और लघु उद्योगों में 24 से 360% ब्याज पर लगा हुआ था। अगर पूँजी ही इतनी महंगी थी, तो हम चीन से आने वाले आयात को कैसे चुनौती देते?
मंदी का एक बहुत बड़ा कारण यह है कि अब प्रधानमंत्री मोदी ने कानूनी और गैरकानूनी धन के मध्य एक दीवार खड़ी कर दी है। पहले धनी लोग अपने नंबर 2 के पैसे को मॉरिशस या साइप्रस ले जाते थे। वहां पर उन्हें टैक्स नहीं देना पड़ता था। फिर वह उस पैसे को शेल या कागज़ी कंपनियों के जरिए भारत ले आते थे।
उदाहरण के लिए, वे लोग किसी शेल कंपनी का शेयर मार्केट में उतारते थे और मॉरिशस या भारत से उस शेयर को कई गुना दामों में खरीद लेते थे। दिखाया जाता था कि शेल कंपनी को शेयर बेचने से भारी लाभ हुआ है और वह पैसा नंबर एक का हो जाता।
दूसरा उदाहरण – भ्रष्ट लोग किसी वस्तु का विदेशों में दाम कई गुना बढ़ाकर निर्यात करते थे। आप मानिये कि उस वस्तु का एक्चुअल दाम 200 रूपए है लेकिन विदेश में बैठा व्यवसायी उस वस्तु का 5000 रुपए देने को तैयार है। आपको बैठे-बिठाए उस पर 4800 रुपए का फायदा हो गया।
मज़े की बात यह है कि भारत से निर्यात करने वाला और विदेश में उस वस्तु को खरीदने वाला व्यक्ति एक ही है। यहां से शेल कंपनी के द्वारा निर्यात किया, वहां पनामा या मॉरिशस में पंजीकृत शेल कम्पनी ने उसे आयात किया। और इस तरीके से फिर वह पैसा नंबर 1 का बन गया।
उनका काला धन, चाहे भारत में हो या विदेश में, फंसा हुआ है और वह धन व्यापारी और उद्योगपतियों की सहायता करने में असमर्थ है। मोदी सरकार आने के बाद अब तक 6 लाख अस्सी हज़ार कागज़ी कंपनियां बंद हो चुकी हैं क्योंकि उन्होंने लगातार दो वर्ष तक वित्तीय लेखा प्रस्तुत नहीं किया।
चिदंबरम की कागज़ी कंपनियां अब सामने आ रही हैं। क्या इन फर्जी कंपनियों को बंद करने का कुछ भी असर नहीं पड़ेगा? आखिरकार लालू पुत्री ने दिल्ली में सैकड़ों करोड़ों का फार्म हाउस कैसे बनवा लिया? किसके नाम था वह फार्म हाउस? नीलामी के समय कौन खरीदेगा वह फार्म हाउस?
वर्ष 2010-11 में इंजीनियरिंग कंपनियों ने 30 बिलियन डॉलर (1 लाख 32 हज़ार करोड़ रुपये) का निर्यात किया, जबकि मुंबई स्टॉक एक्सचेंज में पंजीकृत इंजीनियरिंग कंपनियों के द्वारा किया गया निर्यात केवल 1.8 बिलियन डॉलर (6100 करोड़ रुपये) है। यह 28 बिलियन डॉलर (लगभग 1 लाख 23 हज़ार करोड़ रुपये) निर्यात कहां से हुआ और किस इंजीनियरिंग कंपनी ने किया? क्या यह संभव है कि 28 बिलियन डॉलर का निर्यात छोटी छोटी कंपनियां कर सकें जो मुंबई स्टॉक एक्सचेंज में पंजीकृत ही नहीं हैं?
ऐसे हो गया 1 लाख 23 हज़ार करोड़ रुपये का ‘निर्यात’ या क्या काले धन का आगमन।
भारत में कुछ हद तक मंदी इसलिए दिखायी दे रही है क्योंकि – प्रथम – कई उद्यमियों और व्यापारियों ने मोदी सरकार की हार की उम्मीदें पाल रखी थीं जिसके कारण वे एक वर्ष से निवेश नहीं कर रहे थे।
द्वितीय, अब उद्यमियों और व्यापारियों को नियमानुसार, नंबर एक के धन से बिज़नेस करना होगा। दिल्ली से कोई समर्थन नहीं मिलने जा रहा है।
तृतीय, बैंको में लोन देने के लिए पूँजी की कमी है। फिर, बैंक से लोन लेते समय उद्यम की मज़बूती और लोन चुकाने की क्षमता को बतलाना होगा।
चतुर्थ, फ्रॉड करने पर जेल जाने को तैयार रहना होगा।
पंचम, विश्व अर्थव्यवस्था में मंदी चल रही है। जर्मनी, फ्रांस, इटली, जापान में इस वर्ष लगभग ज़ीरो या नकारात्मक विकास हो सकता है। चीन और अमेरिका में व्यापार को लेकर युद्ध छिड़ा हुआ है जिसका प्रभाव पूरे विश्व पर पड़ रहा है।
और अंत में, पूरे विश्व में डिजिटल क्रांति के कारण उद्यमों और व्यापार में उथल-पुथल मची हुई है। उदाहरण के लिए, विश्व में कारों की बिक्री में अभूतपूर्व कमी आयी है। नए टीवी और सेल फ़ोन नहीं बिक रहे हैं। बड़े-बड़े मॉल और शोरूम बंद हो रहे हैं।
इन सबके बावजूद भारत की वित्तीय स्थिति मज़बूत है, राजकोषीय घाटा और मंहगाई दर नियंत्रण में है, और सरकार ईमानदारी से प्रशासन चला रही है।
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