नोयडा पूरा सुनसान है… मैं जहां एक ओर बचे हुए भोजन को एकत्रित करने का प्रयास कर रहा हूँ, तो वही भारी मात्रा में ठेले वालों का खाना फेंका जा रहा है, ज़मीन पर बिखरा दिया जा रहा है।
आखिर खाना फेंकने का हक किसने दिया?
अन्न का अपमान क्यों?
जिस ठेले को मैं खींचने का प्रयास कर रहा हूँ वो उस वृद्ध दादी का है जिनके पति के बीमार होने के कारण उन्हें स्वयं ठेला लगाना पड़ रहा है।
इसी ठेले से उनका परिवार चल रहा था। अब कमेटी वाले एकाएक तोड़े दे रहे हैं, समान फेंके दे रहे हैं, इसलिए लेकर वे भाग रही थीं, जिसको हटाने में मैंने उनकी मदद की।
थोड़ी ही देर में कई ठेले तोड़े जा चुके थे… तो कई जगह सामान फ़ेंक दिए गए या तो उठा लिए गए। सभी से बातचीत के दौरान पता कि कोई नई मैडम आई हैं – नोयडा अथॉरिटी की सीईओ आईएएस ऋतु महेश्वरी।
वो कोई भी ऐसी दुकान लगने नहीं दे रहीं जो अवैध रूप से चल रही है… उनका साफ कहना है कि नोयडा को स्मार्ट सिटी बनाने में मदद करें, बाधक न बनें… मैं उनकी इस बात से तो सहमत हूँ कि निश्चित रूप से विकास में बाधा नहीं बनना चाहिए।
पर विकास में बाधा सिर्फ गरीब ही क्यों?
जहाँ एक ओर साइकल पथ व पैदल पथ पर चाय की दुकानों को तोड़ दिया जा रहा है तो उसी के दूसरी ओर बड़े-बड़े ऑफिसों ने उसी पथ पर अवैध पार्किंग बना दी है…
जहां एक ओर स्वच्छता अभियान के तहत बने शौचालय को घर बना गन्दगी का अंबार बना दिया है तो पालीथीन से सने नाले मानो ये कह रहे हैं – मुझे भी स्वच्छ करो।
स्मार्ट सिटी सिर्फ ठेले हटाने से नहीं होगी, उसके लिए सभी अधिकारियों को आम जन मानस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर ज़मीन पर उतरना होगा।
ये देखिये… कितनी सुंदर तस्वीर है…👌 स्मार्ट नोयडा की क्या ये बाधा नहीं विकास में?
