जब राजनाथ सिंह को गृह मंत्रालय से हटाकर रक्षा मंत्रालय का चार्ज दिया गया तो कई जगह पढ़ने में आया कि उनको साइडलाइन कर दिया गया है।
कश्मीर में पत्थरबाजों तथा देशद्रोही गतिविधियों के विरुद्ध कोई कड़ा एक्शन ना लेने के कारण लोग उनकी आलोचना करते थे। मित्रगण ‘कड़ी निंदा’ कहकर उनका मज़ाक उड़ाते थे। लोगों को लगता था कि वह धारा 370 को समाप्त करने में सफल नहीं हो पा रहे हैं।
लेकिन अब यह स्पष्ट है कि गृह मंत्री के रूप में राजनाथ सिंह ने जम्मू-कश्मीर-लद्दाख में धारा 370 के निरस्त करने के लिए ग्राउंड तैयार किया था। उन्हीं की देखरेख में वहां के प्रशासन और देश विरोधी शक्तियों के बारे में जानकारी एकत्र की गयी तथा धारा 370 के बारे में कानूनी राय लेकर फाइल तैयार की गयी थी।
लेकिन राजनाथ सिंह के गृह मंत्री कार्यकाल में धारा 370 को समाप्त करने की तरफ कदम इसलिए नहीं लिया जा सका था क्योंकि तैयारी करते हुए लगभग कार्यकाल के अंत में पहुंच गए थे। फिर राज्यसभा में बहुमत दूर-दूर तक नहीं था।
इसके अलावा एक हवा फैली थी कि भाजपा 200 सीट पर रुक जाएगी और किसी तरह से जोड़-तोड़ करके राहुल गांधी प्रधानमंत्री बन जाएंगे, जिसके कारण लोकसभा में भी बिल के पास होने की संभावना में दुविधा हो सकती थी।
लेकिन इस कार्यकाल में न केवल मोदी सरकार का लोकसभा में प्रचंड बहुमत है, बल्कि चुनाव परिणाम के बाद कई दलों के राज्यसभा सांसद भाजपा की तरफ कूच कर गए हैं। एक तरह से भाजपा राज्यसभा में बहुमत के कगार पर खड़ी है।
इससे भी बड़ी बात यह है कि विपक्ष का मनोबल टूटा हुआ है; कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर चिंता छोड़िए, मज़ाक की स्थिति बनी हुई है तथा विपक्ष के सभी सांसदों में हताशा व्याप्त हो चुकी है। ऐसे में राज्यसभा में बहुमत जुटाना बहुत आसान हो गया है।
अब इसके बाद की घटनाएं गौरवशाली इतिहास का हिस्सा बन चुकी हैं।
लेकिन इधर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के भारत की परमाणु नीति तथा पाकिस्तान के प्रति आक्रामक तेवर और बयानों को लेकर एक बात स्पष्ट हो गई है कि राजनाथ सिंह की योग्यता पर प्रधानमंत्री मोदी स्वाभाविक रूप से विश्वास करते हैं। उनका कोई भी बयान ‘सिलेबस’ के बाहर नहीं है।
मेरा ऐसा लिखने का कारण यह है कि परमाणु नीति पर कोई भी मंत्री ऐसे बयान नहीं दे सकता है। यह राष्ट्र के शीर्ष नेतृत्व द्वारा सोची-समझी रणनीति के तहत किया गया है और इसका सीधे इशारा यह है कि अब पड़ोसी देश हमें ब्लैकमेल नहीं कर सकता। इसका दूसरा संदेश अंतरराष्ट्रीय समुदाय की तरफ था कि भारत अब किसी के दबाव में नहीं आने वाला है।
राजनाथ सिंह का अगला बयान कि “जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को समर्थन देना बंद नहीं करता कोई बात नहीं होगी। अगर पाकिस्तान से बात भी होगी तो POK पर होगी” भी काफी महत्वपूर्ण है।
ध्यान दीजिए कि अगर कभी पाकिस्तान से बातचीत होगी तो उसे या तो विदेश मंत्री संचालित करेंगे या प्रधानमंत्री लीड करेंगे। रक्षा मंत्री या गृह मंत्री का बातचीत में प्रत्यक्ष रोल नहीं होता, लेकिन फिर भी यह बयान राजनाथ सिंह से दिलवाया गया है।
इसका एक अर्थ यह निकाला जा सकता है कि मोदी सरकार ने ‘डंडा कूटनीति’ या coercive diplomacy की तरफ रुख मोड़ लिया है।
देसी भाषा में इसे कह सकते हैं कि ‘जबरा मारे और रोए भी ना दे’।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की नई इनिंग ‘कड़क डंडा’ वाली साबित होगी।
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