Zomato : कब और क्यों महत्वपूर्ण है छुआछूत

यह लक्ष्मी है, हमारे कॉलोनी की महेतरानी, जब भी आँगन की नाली साफ़ करने आती है, मैं उसके लिए चाय बना देती हूँ, साथ मैं बैठकर पी भी लेती हूँ. उसे मधुमेह है मैं अक्सर उसे सलाह देती हूँ मिट्टी के बर्तन में तीन महीने तक खाना पकाओ और खाओ शुगर ठीक हो जाएगी लेकिन उसके लिए मुमकिन नहीं.

उसकी बेटी की शादी थी तो हमारे घर पत्रिका दे गयी थी, हम बेटी की शादी में गए थे, आशीर्वाद देकर भोजन भी किया. लेकिन जब वह काम करते हुए बीच में चाय पीने आती है तो मुझे छूने नहीं देती. उसका चाय का कप अलग ही है, वो आँगन में एक जगह रखकर जाती हैं, जब भी चाय पीना होती है वो कप निकालकर धो देती है मैं उसें चाय डाल देती हूँ , कई बार उसके उठाने से पहले ही मैं उसका कप उठाकर धोकर चाय डाल देती हूँ, वह चाय पीकर कप धोकर वापस उसी जगह रख देती है. कई बार डिस्पोजेबल में भी दे देती हूँ, ताकि धोने का झंझट न रहे.

चलो ये तो हुई उसकी बात. जब मैं अपने घर का बाथरूम और tiolet धोती हूँ तो फिर रसोई में नहीं जाती, और टॉयलेट भी उसी दिन धोती हूँ जिस दिन सर से नहाना होता है.

मेरी पड़ोसन सखियों को जब सुबह सुबह मेरे आँगन से तुलसी, बिल्व, दुर्वा वगैरह लेना होता है तो अपनी बेटियों को भेज देती है, क्योंकि वे बिना स्नान के तुलसी तक नहीं छूती…

स्वामी ध्यान विनय बाहर का खाना नहीं खाते क्योंकि उन्हें पता नहीं किसने बनाया है और किस भाव से बनाया है और कितनी स्वच्छता से बनाया है, कभी खाते भी हैं तो किसी बहुत पुराने परिचित से, नई जगह से नहीं…

उपरोक्त सभी उदाहरणों में आप देखेंगे कि कहीं हिन्दू मुस्लिम इसाई जैसी कोई बात नहीं, बात सिर्फ स्वच्छता, व्यक्तिगत भावनाओं और आस्था की है… यहाँ छुआछूत के लिए कोई मुस्लिम, इसाई या मेहतर नहीं है… लेकिन फिर भी छुआछूत है…

और मैं जो खुद को जो परा सनातनी कहती हूँ, अपनी आध्यात्मिक प्रयोग के दौरान बंगलौर की किसी मज़ार पर जाकर प्रसाद के रूप में चिकन खाकर आई हूँ… और यहाँ भंडारे में बंट रहे प्रसाद को भी कभी-कभी खाने से इंकार कर देती हूँ, क्योंकि प्रसाद बाँटने वाले के भाव मुझसे मेल नहीं खा रहे होते… और कई बार खुद भंडारे में जाकर झोली फैलाकर प्रसाद लेकर आई हूँ….
यहाँ कहाँ हिन्दू मुस्लिम की बात है?
सावन का महीना है, अधिकतर लोगों का व्रत रहता है, यूं तो व्रत में बाहर का नहीं खाते लेकिन आपातकालीन स्थिति में थोड़ी ढील चलती है… लेकिन बात आस्था की हो तो इंसान भूखा रहना पसंद करता है, बजाय किसी मांसाहारी के हाथ से भोजन लेने के, यहाँ बात हिन्दू मुस्लिम की नहीं, हो सकता है होली पर यही व्यक्ति अपने किसी मुस्लिम मित्र के साथ होली भी खेलता हो, लेकिन बात जब व्रत उपवास और आस्था की आती है तो यहाँ व्यक्तिगत नियम अधिक मायने रखते हैं, बजाय सामाजिक स्तर पर भाई चारे या मज़हबी दोस्ती के.

इस समय शायद वह किसी ऐसे हिन्दू मित्र के घर भी खाना न खाएगा, जो मांसाहार करता हो… चूंकि मुस्लिम समुदाय के साथ यह स्वाभाविक है कि वह मांसाहार करता ही होगा इसलिए किसी शाकाहारी की आस्था के अनुरूप वह उसके हाथ का भोजन नहीं लेगा, विशेषकर व्रत में, आम दिनों में वह खा भी लेता हो. यहाँ उसे उस मुस्लिम व्यक्ति से दुश्मनी नहीं, बल्कि सावन का महीना उसके लिए अधिक महत्वपूर्ण है.

बात बहुत छोटी सी है, अब क्या है देश में कोई बड़ा घोटाला तो हो नहीं रहा, तो माहौल में खलबली कैसे मचाई जाए तो zomato ने ऐसे मचाई और हमारी मीडिया ने उसे खूब भुनाई.. बाकी सब ठीक है… ज्यादा सेक्यूलर या हिंदूवादी होने की ज़रूरत नहीं… कल को यही मुस्लिम भाई अपने हाथों से भोजन दे जाएगा तो सामने वाला मज़े से खा भी लेगा… वो क्या है न कि सावन का महीना कुछ अधिक ही करे सोर…

गोमय उत्पाद व घर में बनी खाद्य सामग्री उपलब्ध है –
गोमय उत्पाद
मुल्तानी मिट्टी चन्दन का साबुन – 30 rs
शिकाकाई साबुन – 50 rs
नीम साबुन – 30 rs
गुलाब साबुन – 30 rs
एलोवेरा साबुन – 30 rs
तेल – 100 ml – 150 rs
मंजन – 80 gm – 50 rs
सिर धोने का पाउडर – 150 gm – 80 rs
मेहंदी पैक – 100 gm – 100 Rs
लेमन उबटन – 100 gm – 50 rs
ऑरेंज उबटन – 100 gm – 50 rs
नीम उबटन – 100 gm – 50 rs


हाथ से बनी खाद्य सामग्री
अलसी वाला नमक – 150 gm – 100 rs
अलसी का मुखवास (थाइरोइड) के लिए – 100 gm – 100 rs
weight Reducing हर्बल टी – 100 gm – 200 rs
कब्ज़ के लिए मिरचन – 100gm – 100rs
त्रिफला – 100 gm – 100 rs
सहजन का पाउडर (कैल्शियम के लिए) – 100gm -100rs
अचार का सूखा मसाला – 100gm – 100rs
गरम मसाला – 100gm – 200rs
चाय मसाला – 100gm – 200rs

Sanitary Pads

  1. 500 रुपये के 5 – Washable
  2. 100 रुपये के 5 – Use and Throw

संपर्क – माँ जीवन शैफाली – Whatsapp 9109283508

Comments

comments

LEAVE A REPLY