दिल्ली के एक पुराने मंदिर में तोड़फोड़ हुई, मीडिया ने घटना को दबा दिया मगर सोशल मीडिया के दबाव के कारण गृहमंत्री ने इसका संज्ञान लिया, पुलिस कार्यवाही कर रही है।
प्रश्न…
दोषी कौन?
- समुदाय विशेष के अराजक तत्व!
उसके बाद
- केंद्र सरकार, नरेन्द्र मोदी वगैरह! या
- आरएसएस, विहिप वगैरह हिंदूवादी संगठन! अथवा
- पुलिस, संविधान, कानून के रखवाले वगैरह? या फिर
- हिन्दू समाज के हितचिंतक, बड़े लोग, इत्यादि।
अच्छा भई, तुम्हारी तो कोई ड्यूटी नहीं है न।
ये गुस्सा मंदिर टूटने का है या खुद की असुरक्षा का?
जो मंदिर तोड़ने आए थे, क्या उनके उपासना स्थल नहीं है? उनकी दुकान, मकान, बहन, बेटियाँ, बच्चे वगैरह नहीं है? जो मजबूरियां तुम्हारी हैं, वैसी ही उनकी भी होंगी।
जो कारण और दुर्बलताएँ तुम गिना रहे हो, वैसी ही उधर भी तो होंगी। कम से कम, संख्याबल तो आज तुम्हारे पक्ष में है।
तुममें और उनमें अंतर है। वे अपने नायक को बचाकर रखते हैं। वे कभी शिकायत नहीं करते। वे रणनीति बनाकर काम करते हैं। वे जो करते हैं, उसी भाव में जीते हैं।
वे पाखंड बिल्कुल नहीं करते। वे जब जहाँ आवश्यक हो, अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। वे समय देते हैं। जितना मांगा गया उससे पांच गुना टाइम देते हैं। वे दुनिया पर आच्छादित होने के लिए बढ़ रहे हैं। वे प्रतिदिन एक बार, एक स्थान पर मिलते हैं और यही रणनीति बनाते हैं। उनकी उपासना से अपनी उपासना की जरा सी तुलना कीजिए!
देवी मंदिर क्या घण्टा बजाने के लिए है?
देवी के हाथों में रखे अस्त्र शस्त्र कोई मैसेज नहीं देते?
अष्टभुजा देवी का उपासक हिन्दू रो रहा है।
जिसे अपनी आराध्या मान, सुबह शाम जिसके गुणकीर्तन करते हुए, जिसके प्रचंड पराक्रम का स्वयं में आह्वान कर, परम् शक्ति का अनुभव करता है, वह हिन्दू गिड़गिड़ा रहा है।
जो यह घोषणा करता है कि हिंदुस्तान हमारा है, यहाँ हमारी सरकार है, यहाँ के संविधान के समानता के दर्शन पर जिसे अखंड विश्वास है वह, जो देश की आबादी का 70% है, जो नित्य अतुलितबलधामं के जप करता है, आज स्वयं को बलहीन मान कर त्राहि त्राहि की याचना कर रहा है।
देवी मंदिर, उसका रखरखाव, उसकी उपासना का वास्तविक मर्म क्या है? उम्र गुज़र गई मगर यह रहस्य नहीं समझा।
जिनके साथ गंगा जमनी गलबहियाँ करने तुम खुद चले थे, उन्हीं से पिट रहे हो यह किसका दोष है?
कौन बचाने आएगा?
किसके भरोसे हो?
एकाध मरियल बच्चे और विलासी परिजनों सहित शिकायत करने में माहिर, स्वयं कोई उद्योग किये बिना, परकीय इकोसिस्टम में ढले तंत्र के भरोसे भोग करने चले हो, और देवी की उपासना केवल इसलिए करते रहो कि मरियल बच्चा सांस भर लेता रहे, बीवी की डायबिटीज़ वाली दवा असर करे और दुकानदारी बढिया सी चलती रहे, उनका उद्धार, दूसरा कोई कर भी कैसे सकता है?
इनकी तो देवी भी रक्षा नहीं कर सकती, चाहे हर गली मोड़ पर नरेन्द्र मोदी और अमित शाह का पहरा ही क्यों न लगा दें।
इनका तो कोई सुरक्षित भविष्य नहीं है, जिन्हें 24 घण्टे में एक घण्टा संघ की शाखा के लिए मांगने पर इतनी असुविधा होती है मानो अंधे कुँए में धकेला जा रहा है!
जिनके घर में चाकू भी धारदार नहीं है, जो सब्ज़ी भी रेडीमेड लाते हैं, जिनको गोलगप्पे पचाने में भी दवाई खानी पड़ती है, जो एक तीक्ष्ण धमकी पर पतलून गीली कर देते हैं, जो हर क्षणिक असुविधा से कुम्हला जाते हैं, जो ज़रा सी बिजली पानी के गुम होने पर खुद को ऊर्जाविहीन मरा हुआ मान लेते हैं, उनकी रक्षा भला कौन करेगा?
जो दूषित पाठ्यक्रम और झूठे नरेटिव में झट से फँस कर, बात बात में भेड़िया आएगा के बहाने ढूंढते हैं उनको तो मर ही जाना चाहिए।
कल मरेंगे, अच्छा हो आज ही मर जायें।
इस हाहाकारी दृश्य के उपस्थापक भी तुम हो, तुम्हीं भुगतो।
कोई नेता फेता नहीं आने वाला, उनकी अपनी समस्याएं हैं, उन्हें दहाड़ते सिंह चाहिए, वे रेंगने वाले कृमियों को क्यों बचाना चाहेंगे भला।
सबको ताकतवर चाहिए। वे 30% भी अपनी ताकत का लोहा मनवाते हैं तुम 70% भी सामूहिक रुदन में भरोसा करते हो।
रोते रहिये। और ज़ोर से चिल्लाईये।
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