पहली जुलाई को राज्य सभा में जम्मू कश्मीर पर बहस का जवाब देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि अभी तक जम्हूरियत यानी कि लोकतंत्र जम्मू-कश्मीर के केवल 3 परिवारों तक सीमित था। लेकिन अब मोदी सरकार उसे जम्मू कश्मीर के गांव-गांव तक ले गई है, और अब 40 हज़ार सरपंच वहां पर हैं।
जहां तक कश्मीरियत की बात है उन्होंने पूछा कि जो सूफी परंपरा थी क्या वह कश्मीरियत का हिस्सा नहीं थी? कहां चले गए सूफी? उनको किसने निकाल दिया? किसी ने भी उनके लिए एक शब्द क्यों नहीं बोला? क्या वह कश्मीरियत का हिस्सा नहीं थे?
कश्मीरी पंडित जो अपने देश में ही दर दर की ठोकरें खा रहे हैं उनको घरों से निकाल दिया गया। उनके ढेर सारे धार्मिक स्थलों को तोड़ दिया गया। उनको भगा दिया गया। क्या वह कश्मीरियत का हिस्सा नहीं थे? वे हिंदू-मुस्लिम एकता की बात करते थे। वे भारत की बात करते थे, लेकिन कश्मीरी पंडितों और सूफी परंपरा को खदेड़ दिया गया। क्या यही कश्मीरियत है?
जो लोग इंसानियत की बात करते हैं, उन्होंने सारे स्कूल बंद कर दिए हैं। बच्चे अनपढ़ हो गए। पूरी की पूरी पीढ़ियां अनपढ़ होने लगी हैं। फिर शाह ने पूछा कि क्या यही इंसानियत है? हमने घर-घर में रसोई गैस पहुंचाई। अगर किसी बुढ़िया की झोपड़ी धुंए से मुक्त होती है तो यही इंसानियत है।
अत्यधिक ठंड में भी घर में शौचालय नहीं था। क्या हम महिलाओं की स्थिति की कल्पना कर सकते हैं? हमने उनके घर में शौचालय पहुंचाया यही इंसानियत है। हमने उनके घरों में बिजली पहुंचाई। वहां सस्ता अनाज, गेहूं, चावल, दलहन कभी नहीं पहुंचा था जिससे उन्हें बहुत तकलीफ होती थी। मुझे सरपंचों ने स्वयं बताया है कि मोदी शासन में उन्हें खाना भी पहुंचा है।
अगर किसी राज्य में आयुष्मान भारत योजना का कवरेज एक साल में सबसे ज्यादा है तो वह जम्मू-कश्मीर है। क्योंकि कोई भी गरीब इलाज के बगैर अपनी जान ना गंवा बैठे, यही इंसानियत है।
हम जम्हूरियत, कश्मीरियत, इंसानियत को साथ लेकर चलते हैं।
हमारा अप्रोच स्पष्ट है कि जो भारत तोड़ने की बात करेगा उसको उसी की भाषा में जवाब मिलेगा। और जो भारत के साथ रहना चाहते हैं हमें उनके कल्याण की चिंता है।
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