हर हिन्दू अकेला है। उसका दूसरे हिन्दू से कोई संपर्क नहीं है, कोई संवाद नहीं है।
जाहिद और असलम, शर्मा जी की ट्विंकल को उठा कर ले जाते हैं, उसकी निर्मम हत्या कर देते हैं। यह हिम्मत कर पाते हैं क्योंकि शर्मा जी अकेले हैं।
शर्माजी थाने जाकर रिपोर्ट लिखाते हैं, जाहिद पर शक भी जाहिर करते हैं। पुलिस रिपोर्ट नहीं लिखती क्योंकि शर्माजी अकेले जाते हैं।
शर्माजी उस बच्ची को बेबस ढूँढते रहते हैं, अकेले। उन्हें शक है कि वहशी जाहिद ने उनकी बच्ची को उठाया होगा, पर उसके घर में घुस के खोज नहीं सकते… क्योंकि अकेले हैं।
आज भी शर्माजी का दु:ख अकेले आदमी का लाचार दुख है। शर्माजी का गुस्सा अकेले आदमी का नपुंसक गुस्सा है।
बदला ले नहीं सकते, क्योंकि अकेले हैं। ‘निर्णयालय’ (court) के भरोसे बैठेंगे क्योंकि अकेले हैं। कोर्ट्स उन्हीं भेड़ियों से भरी पड़ी है। उनके बीच अकेला हिन्दू एक भेड़ है।
शर्मा जी को न्याय चाहिए… वह अकेली अपनी ट्विंकल के लिए चाहिए। देश में हर रोज़ कोई ट्विंकल, कोई रीना, कोई एकता भेड़ियों से नोची जा रही है… पर ट्विंकल के पापा को ट्विंकल के लिए न्याय चाहिए और रीना के पापा को रीना के लिए। उन्हें सज़ा एक व्यक्ति को दिलानी है।
जबकि सामने जो शत्रु है वह व्यक्ति नहीं है, वह संगठित समुदाय है। वह अपने ज़ाहिदों और असलमों को स्पॉन्सर कर रहा है। उनकी पीठ थपथपा रहा है।
आप एक जाहिद को सज़ा दिलवाएंगे… वह हज़ार जाहिद खड़े कर देगा। क्योंकि उनका पूरा समाज अपने ज़ाहिदों असलमों के साथ खड़ा है। उनकी पत्नियाँ अपने हत्यारे पति को लाश ठिकाने लगाने के लिए अपना दुपट्टा दे देंगी। उनकी माएँ अपने बलात्कारी बेटे को गले लगाएंगी।
और अगर अपने लोग टप्पल पहुंचते भी हैं तो शर्माजी उनके साथ नहीं खड़े होंगे। वे कह देंगे कि इससे मेरा कुछ लेना देना नहीं है। क्योंकि हिन्दू समाज का यह संगठन अस्थायी होगा।
आज आप उनके साथ खड़े होंगे, उनका बदला ले लेंगे। कल आप अपने अपने घर चले जायेंगे। जब धूल छंटेगी तो वे फिर से अकेले होंगे। इसलिए वे आपके साथ खड़े होने का रिस्क नहीं ले सकते।
हमारे समाज की मूल संरचना अकेलेपन की है। हर व्यक्ति अपने अपने परिवार की सीमाओं में कैद है, और सरकार का मुँह देख रहा है। सरकार तो जो है वह है ही… मीडिया और ज्यूडिशियरी के आगे उनकी मूत निकल आती है। ऊपर से कोई मुखर होगा तो उसपर साहेब की वक्र दृष्टि… उसपर नकवी जैसे @#$ छोड़ दिये जायेंगे।
इस अकेलेपन को पाटे बिना हमारे अस्तित्व रक्षा की कोई गुंजाइश नहीं है। हम अकेले हैं, हमारे सामने एक फौज है। फौज का एक सिपाही मरता है तो दूसरा खड़ा हो जाता है। एक जाहिद को फाँसी होने से कुछ नहीं होगा।
अगर हमारा एक बन्दा हिम्मत करके बदला लेने निकलता है तो वह अकेला होगा। अगर वह मर जायेगा तो नष्ट हो जाएगा। उसका परिवार भी नष्ट हो जाएगा।
हिन्दू समाज की संरचना में मूलभूत परिवर्तन की ज़रूरत है। हमारे सामने जो खड़े हैं वे हर सप्ताह मिलते हैं, रणनीतियाँ बनाते हैं और उसे शेयर करते हैं। हम अधिक से अधिक अपने परिवार के साथ महीने में एक बार मंदिर जाते हैं। वहाँ खड़ा एक बन्दा दूसरे से बात तक नहीं करता। हमारा कोई कॉमन स्ट्रेटेजिक प्लेटफार्म है ही नहीं। हमारा कोई काँग्रेगेशन नहीं है।
बिना काँग्रेगेशन के हम हिंदुओं में एक कॉमन आइडेंटिटी का बोध नहीं है। कॉमन आइडेंटिटी के बिना हम अपने कॉमन इन्टरेस्ट्स के प्रति सजग नहीं हैं। ट्विंकल के पापा और रीना के पापा एक साथ खड़े नहीं हैं। वे नहीं देख पा रहे कि वे एक कॉमन शत्रु के शिकार हुए हैं।
और बिना कॉमन आइडेंटिटी और कॉमन इंटरेस्ट के बोध के हम एक कॉमन लीडरशिप के नीचे खड़े नहीं हो सकते। हम एक लीडर चुन नहीं सकते… जिसे चुनते हैं वह “हमारा” लीडर बनने के बजाय “सबका” लीडर बनने निकल पड़ता है, सबका विश्वास जीतने लगता है और हम उसे वापस पा नहीं सकते।
क्योंकि हम “हम” नहीं हैं। हमें एक कॉमन आइडेंटिटी का बोध नहीं है। और यह बोध विकसित होगा भी नहीं अगर हम वह मूल काम नहीं करेंगे जो यह बोध देता है।
काँग्रेगेशन हिन्दू समाज के सामने बस एकमात्र विकल्प है…
Congregate_or_die
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