सपा बसपा गठबंधन की बुनियाद ही स्वार्थपूर्ति थी जिसे टूटना ही था और टूट गया। ये सही है प्रधानमंत्री मोदी ने इसके लिए कहा था कि इस गठबंधन की Expiry date 23 मई है, मगर मैंने उससे भी पहले अपने 2 फरवरी के लेख में इसके टूटने की बात लिख दी थी।
उस दिन मायावती सरकार में हुए स्मारक घोटाले को ले कर ED की छापेमारी हुई थी जिसका आधार अखिलेश सरकार में ही तैयार हुआ था मगर फिर भी अखिलेश ने कहा था – हमारे गठबंधन के खिलाफ साजिश की जा रही है।
इसके अलावा खनन घोटाले में छापेमारी पर भी अखिलेश ने कहा कि सी बी आई हमारे गठबंधन को तोड़ने के लिए काम कर रही है। सपा नेता और अखिलेश के चाचा रामगोपाल यादव ने तो प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को धमकी दे दी थी कि वो बनारस से चुनाव लड़ना भूल जाएँ।
उस लेख के अंत में मैंने लिखा था – “अपने गठबंधन पर क्या घमंड कर रहे हैं अखिलेश, वो टूटने में देर नहीं लगेगी। मायावती वो बला हैं जिन पर जितना विश्वास करेंगे उतना डूबेंगे अखिलेश। और आज़म खान तो अखिलेश को पहले ही कह रहे हैं गन्दगी पर चांदी का वर्क लगा कर खा रहे हो।”
अब मायावती, अखिलेश की सपा के बारे में दो बातें कह रही है –
पहली, अखिलेश अपने यादवों के वोट भी एकजुट नहीं रख पाए, सपा में भीतरघात हुआ है जो वो अपने भाइयों को भी नहीं जिता सके। और दूसरी बात, अखिलेश अपना वोट बैंक बसपा को ट्रांसफर नहीं करा पाए।
अरे जब यादवों ने सपा को ही वोट नहीं दिया (जो मायावती खुद कह रही है) तो वो बसपा को वोट क्यों देते।
अब मायावती इतनी चतुर नार हैं कि वो ये तो कह रही हैं कि आने वाले विधानसभा के चुनाव अकेले लड़ेंगी मगर ये नहीं कह रही कि वो गठबंधन ख़त्म कर रही हैं। वो तो अखिलेश को धमकी दे रही हैं कि पहले अपने में सुधार ला कर दिखाओ वरना हम अलग रास्ते पर चल पड़ेंगे।
मायावती को गठबंधन से लाभ ही लाभ हुआ, जो शून्य से 10 सीट ले गईं लेकिन सपा तो 5 पर ही रही और अखिलेश अपने भाइयों और बीवी को भी नहीं जिता पाए… जिसका मतलब ये भी तो निकलता है कि मायावती अपना दलित वोट या तो सपा को दिलवा नहीं सकी और या जानबूझ कर नहीं दिलवाया।
मायावती अपनी गलती मानने को तैयार नहीं हैं कि उन्होंने सारा चुनाव प्रचार, धर्म और जाति तक ही सीमित रखा। उन्होंने मुसलमानों को खुले-आम गठबंधन को वोट देने के लिए कहा।
मायावती ने सबसे बड़ी गलती तो चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री मोदी पर निजी हमले करके की और उनकी जाति को ले कर भद्दी टिप्पणियां कीं, जबकि देश जात-पात के जंजाल से मुक्त होने का इशारा कर रहा था।
अखिलेश यादव भी मोदी के लिए घटिया बातें करने में पीछे नहीं रहे। सबसे घटिया बात अखिलेश ने बोली थी – कल तक जो चाय बेचने वाले थे, वो आज चौकीदार बन कर आये हैं।
कुल मिला कर राहुल गाँधी की तरह अखिलेश और मायावती भी मोदी की छवि को दागदार करने में लगे रहे जिसे जनता ने स्वीकार नहीं किया।
मायावती ने साबित किया है कि वो किसी के भरोसे के काबिल नहीं हैं और यही मैंने अपने 2 फरवरी के लेख में अखिलेश को चेतावनी देते हुए लिखा था।
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