एक प्रिय छात्र ने अपने facebook पोस्ट में एक घटना को चित्र के साथ पोस्ट किया कि एक हिंदू समर्थक संस्था ने वीर सावरकर के जन्म दिवस के अवसर पर युवाओं के बीच चाकू (अंग्रेजी में नाइव्स) वितरित किए और यह कहा गया कि इस से युवाओं में शौर्य और पराक्रम की भावना प्रज्वलित होगी।
इस पोस्ट को शेयर करते हुए मेरे प्रिय छात्र ने लिखा था कि चुनाव के बाद हिंदुत्व अपने मूल एजेंडे पर वापस आ गया।
मैं नहीं जानता कि उस संस्था की भावना क्या है और चाकू वितरित कर युवाओं को शौर्यवान और पराक्रमी कैसे बनाया जा सकता है। परंतु मेरे मस्तिष्क में यह विचार आया कि सनातन धर्म अर्थात् हिन्दुत्व के विषय में अपना पक्ष रखा जाये।
दो तथाकथित गौरक्षकों के द्वारा किसी कसाई की पिटाई हिन्दुत्व नहीं, या दो मुसलमानों के हाथों किसी हिंदू का उत्पीड़न जिहाद नहीं बल्कि निजी झगड़ों का सांप्रदायीकरण है। दरअसल निजी मामलों को सामूहिक मसले में तब्दील करना न्यायालय की सज़ा से बचने की सरलतम स्वयंसिद्ध प्रक्रिया है। आम तौर पर भीड़ दण्ड नहीं पाती है यही वजह है कि निजी खुन्नस को दंगे में तब्दील करना सोची समझी तकनीक है।
हिन्दुत्व या हिन्दू, सनातन का विदेशियों द्वारा स्थानानुवाद है सिन्धु से हिन्दु या इण्डस और फिर हिन्दुस्तान या इण्डिया।
अजीब है ना कि सनातनियों को पता है कि वे ही हिन्दू हैं पर कई हिन्दुओं को नहीं पता कि वे सनातनी ही हैं।
सनातन कोई धर्म नहीं बल्कि एक अंतरिक्ष है जिसमें आप हैं, आपके पूर्वज और वंशज भी साथ साथ आपके ईश्वर का खानदान भी मिलेगा। शून्य रूप अविनाशी अजर अमर निराकार ब्रह्म और साकार रुप में ब्रह्मा विष्णु महेश इन्द्रादि देवता, दुर्गा, काली सदृश देवियाँ, आसुरी शक्तियाँ, आधुनिक काल से भी उत्तम प्रोफेशनल या पेशेवराना अंदाज वर्ण व्यवस्था, इन सबको महिमामंडित करने वाला आस्तिक दर्शन और इन सबको नकारने वाला नास्तिक दर्शन…
ब्रह्म सत्य जगन्मिथ्या से लेकर यावज्जीवेत् सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् तक सब कुछ है सनातन में। सामाजिक समरसता और सहअस्तित्व के साथ जीना ही धर्म था और है, पर आजकल के धर्म तो कुछ हिंदू शवों पर तामीर इमारत है, तो कुछ यहूदियों की कब्रों पर। किसी संप्रदाय की तो उद्घोषणा है *** जिन्दा होता है हर करबला के बाद।
और हम किस संप्रदाय से उसकी तुलना किन संप्रदायों से कर रहे है जो या तो 2500 वर्ष पुराने हैं या 2000 साल पुराने या 1500 साल पुराने। यहोवा, गॉड और अल्लाह सब के सब अमर, पर खोज का समय आपके सामने। इससे पहले सब वैसे ही लापता जैसे एडिसन से पहले बिजली का बल्ब। उनके अन्वेषक मूसा ईसा और हज़रत मुहम्मद सबके सब दिव्य मानव, पर नश्वर।
पर इन सब में सेकुलरिज़्म की वजह से वामपंथी बुद्धिजीवी वैज्ञानिकता के तत्व ढूंढ लेते हैं। कभी ‘द मर्चेण्ट ऑफ़ वेनिस’ पढ़ें। ईसाईयत कबूल करने पर सायलक को कोर्ट से कुछ रहम भी मिलने की गुंजाइश हो सकती है, पर पाँच दस सिरफिरों के चाकू वितरण समारोह से हिन्दुत्व का असली एजेंडा बेनकाब! गजब की सेक्यूलरता है ना? अमरीकी पत्रकार का गला काटे शान्ति का पुजारी, पर बेनकाब होगा हिन्दुत्व का असली एजेंडा! कभी उनका भी चिलमन तो सरके।
खैर अब सनातन का समय जानिये…
हमारा एक वर्ष = देवताओं का एक दिन जिसे दिव्य वर्ष कहते हैं।
12,000 दिव्य वर्ष = एक महायुग (चारों युगों को मिलाकर एक महायुग)
71 महायुग = 1 मन्वंतर (लगभग 30,84,48,000 मानव वर्ष बाद प्रलय काल)
चौदह मन्वंतर = एक कल्प।
मन्वंतर की अवधि : विष्णु पुराण के अनुसार मन्वंतर की अवधि 71 चतुर्युगी के बराबर होती है। इसके अलावा कुछ अतिरिक्त वर्ष भी जोड़े जाते हैं। एक मन्वंतर = 71 चतुर्युगी = 8,52,000 दिव्य वर्ष = 30,67,20,000 मानव वर्ष।
विशेष…
इस कल्प में 6 मन्वंतर अपनी संध्याओं समेत निकल चुके, अब 7वां मन्वंतर काल चल रहा है जिसे वैवस्वत: मनु की संतानों का काल माना जाता है। 27वां चतुर्युगी बीत चुका है। वर्तमान में यह 28वें चतुर्युगी का कृतयुग बीत चुका है और यह कलियुग चल रहा है।
एक कल्प = ब्रह्मा का एक दिन। (ब्रह्मा का एक दिन बीतने के बाद महाप्रलय होती है और फिर इतनी ही लंबी रात्रि होती है)। इस दिन और रात्रि के आकलन से उनकी आयु 100 वर्ष होती है।
उनकी आधी आयु निकल चुकी है और शेष में से यह प्रथम कल्प है। महत कल्प, हिरण्य गर्भ कल्प, ब्रह्म कल्प, पद्म कल्प बीत चुका है। यह वराह कल्प चल रहा है। वराह कल्प की शुरुआत विष्णु के नील वराह अवतार से होती है। इस कल्प में ब्रह्मा ने सृष्टि की फिर से शुरुआत की थी।
और ये सारे देव मरेंगे। जिस सनातन धर्म के देवी देवताओं की भी आयु तय है, उस धर्म में आलोचना, अपमान या तिरस्कार किसी ईश निंदा कानून के अंतर्गत नहीं आता।
राम की आलोचना एक धोबी ने की, कृष्ण की शिशुपाल ने और शिव की उनके ससुर प्रजापति दक्ष ने। ये तीनों अद्यतन सनातनी जगत के शीर्ष हैं पर शायद ही उनके निंदकों के लिए तिरस्कार का भाव सनातनियों में है। फिर भी दो चार छुरियाँ देख कर बुद्धिजीवियों को मोदी की प्रजातांत्रिक विजय के बाद हिंदुत्व का भड़कता एजेंडा उभरता हुआ दिख रहा है, क्या किया जाए!
बात मज़ाक की है कि किसी भी ईश्वरीय दूत के द्वारा अपने पूरे जीवन काल में एक कल्प में पड़ने वाले मानव वर्षों की संख्या के बराबर संख्या लिखने की जरूरत नहीं पड़ी होगी।
अब अरबों वर्ष पुरानी संस्कृति का असली चेहरा चाकुओं की चमक में 1500 – 2500 साल पुराने कबीले के सरदार को दिख जाए तो बस एक भोजपुरी कहावत की याद अचानक आ जाती है कि ‘देखले छौंड़ी समधिन’। या देवदार के पेड़ों की ऊँचाई को गमले का कैक्टस मापने चले।
मुझे समझ नहीं आता कि अगर 20-30 छुरियों की कौंध देख कर यदि हिन्दुत्व के एजेंडे की झलक मिल रही है तो ताज़िये के जुलूस में चमकती तेगें, तलवारें, गंडासे, भाले और लाठियाँ देखकर तो शान्ति के संविधान के पन्ने फड़फड़ाते दिखते होंगे।
अब ज्यादा लिखने के बदले एक शेर से बात पूरी कर रहा हूँ…
हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम।
वे कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता।।
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