हाल ही में कमल हासन (फ़िल्म अभिनेता से राजनेता बने) ने एक विवादास्पद बयान दिया। उन्होंने कहा – “आजाद भारत का पहला आतंकी एक हिंदू था। उसका नाम नाथूराम गोडसे था। यहीं से आतंक की शुरुआत हुई थी।” उन्होंने आगे कहा – “मैं ऐसा इसलिए नहीं कह रहा, क्योंकि यह मुस्लिम बहुल इलाका है, बल्कि इसलिए क्योंकि मेरे सामने गांधी की प्रतिमा है।” उन्होंने कहा कि वह उसी हत्या का जवाब ढूंढने आए हैं।
कमल हासन का यह बयान विवादास्पद है और राजनीति से प्रेरित भी नज़र आता है। इसके विवादस्पद और राजनीति से प्रेरित होने के कई कारण नज़र आते हैं:
- कमल हासन ने अपने इस बयान में हिंदुओं को आतंकी बताया है। किसी समुदाय या धर्म विशेष को आतंकी बताने का मतलब यह साफ़ है कि उन्होंने धर्म विशेष की राजनीति शुरू कर दी है। इस प्रकार की राजनीति लोकतंत्र में किस हद तक सही है, यह भी सोचने वाली बात है।
- कमल हासन ने यह बयान अरावकुरुचि, तमिलनाडु में दिया है। यह मुस्लिम बहुल क्षेत्र है, जहाँ 19 मई को उपचुनाव होने हैं। कमल हासन की पार्टी एमएनएम ने यहां एस मोहनराज को उम्मीदवार बनाया है। ऐसे में यह अनुमान लगाए जाना कोई बड़ी बात नहीं है कि हासन का यह बयान मुस्लिम तुष्टिकरण से प्रेरित है। हालाँकि उन्होंने अपने बयान में यह कहा कि उन्होंने यह बयान इसलिए नहीं दिया क्योंकि यह मुस्लिम बहुल क्षेत्र है, मगर गाँधी जी की प्रतिमा के सामने दिया है। ऐसे में यह पूछना भी ग़लत नहीं है कि गाँधी जी की प्रतिमा देश के अन्यान्य स्थानों पर है, किसी अन्य स्थान पर जाकर उन्होंने ऐसी बात क्यों नहीं कही? यह प्रश्न भी उठना सही है कि क्यों न कमल हसन के इस बयान को मुस्लिम आबादी को खुश करने के लिए दिया गया है, जिससे मतों की गोलबंदी हो सके?
- कमल हासन के इस बयान से एक बात तो साफ है कि यह बयान साम्प्रदयिक है और वह भी मुस्लिम बहुल क्षेत्र में दिया गया है, जिससे समाज में विभाजन व दंगे की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। आज़ादी से पहले से ही देश में साम्प्रदयिक राजनीति का माहौल रहा है, राजनेता एक दूसरे संप्रदायों के समक्ष अन्य सम्प्रदाय की बुराई करते हैं, जिससे दूसरे सम्प्रदाय का आक्रोशित होना संभव है।
- ग़ौरतलब है कि अब तक वैश्विक स्तर पर आतंकवाद को लेकर कोई परिभाषा तय नहीं की गयी है। इसके लिए हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने संयुक्त राष्ट्र को चुनौती भी दी है कि वह कोई परिभाषा तय करे जिससे, आतंक पर लगाम लगाई जा सके। अब ऐसे में जब विश्व में आतंकवाद को लेकर कोई परिभाषा ही तय नहीं हुई है तो कमल हसन कैसे किसी व्यक्ति द्वारा हत्या की घटना को आतंकवाद का नाम दे सकते हैं?
- किसी की हत्या का समर्थन जब स्वयं उसका धर्म नहीं करता, तो उस समूचे धर्म को आतंकी कहना कहाँ तक उचित है? क्या हत्या और आतंक के बीच कमल हासन अंतर नहीं समझ सकते?
- यदि किसी व्यक्ति की सनक के कारण डर फैलने को ही आतंक की संज्ञा दी जा सकती है, तो ऐसे में घरों में होने वाली घरेलू हिंसा को भी आतंक कहा जाना उचित होगा? किसी के ग़ुस्से के कारण उसे आतंकी कहना उचित होगा? अगर आतंक की ऐसी श्रेणी कमल हासन बनाना चाहते हैं तो इसमें तो देश के हर समाज और धर्म का व्यक्ति आयेगा क्योंकि क्रोध और आक्रोश व्यक्ति के नैसर्गिक स्वभाव हैं।
आश्चर्य की बात है कि कमल हासन को दक्षिण भारत में केरल में वामपंथियों का आतंक नज़र नहीं आता। कश्मीर से अब केरल की ओर शिफ्ट हो चुके आतंक के ट्रेनिंग कैम्प, जिनमें विशेषतः मुस्लिम समुदाय के लोग फँसते रहे हैं, और ISIS में भर्ती होते रहे हैं, उन्हें कमल हासन ने आतंकी नहीं कहा। उन्होंने केवल गोडसे को लेकर आज़ाद भारत के पहले आतंकी की बात की, मगर विभाजन के समय हुए दंगों का ज़िम्मेदार किसी को नहीं बताया। उस समय हुए मारामारी, खून खराबा, महिलाओं का अपहरण, हत्याएं, बलात्कार, मानवता की नृशंस हत्या को लेकर कमल हासन ने कुछ नहीं बताया जबकि भारत की आज़ादी के साथ उस असह्य वेदना के ज़िम्मेदार हमारे राजनेताओं की थी, जिसके बारे में कमल हासन की चुप्पी उनकी निष्पक्षता पर प्रश्न खड़े करती है।
गाँधी जी की प्रतिमा के सामने और भी बहुत सारी घटनाएं स्मरण हो सकती हैं, जिनका वर्णन भी किया जा सकता था, मगर हिन्दू आतंकवाद को ही चुनना, हासन की उस मंशा को बताता है जो काँग्रेस द्वारा शुरू किया गया था और आगे बढ़ाया जा रहा है- किसी प्रकार हिन्दू को आतंकी घोषित करना। द मिथ ऑफ हिन्दू टेरर क़िताब में पूर्व गृह मंत्रालय में सचिव रहे आर वी एस मणि ने बताया है कि 2004-2014 के बीच रही केंद्र सरकार द्वारा प्रयास थे कि हिन्दू आतंकवाद की थ्योरी को गढ़ा जा सके, जिसके लिए काँग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह का ’26/11: आर एस एस की साज़िश?’ पुस्तक का विमोचन भी किया था।
कमल हासन का यह बयान इसलिए भी राजनीति और मुस्लिम समुदाय को खुश करने के लिए प्रेरित लगता है क्योंकि सन् 2013 में कमल हसन की फ़िल्म विश्वरूपम आयी थी, जो कमल हासन का ड्रीम प्रोजेक्ट भी कहा जा रहा था। सन् 2013 में इस फ़िल्म को कमल हासन ने करीब 100 करोड़ की लागत से बनाया था और मुस्लिम आतंकवाद को मुखर रूप से उन्होंने अपनी इस फ़िल्म में दिखाया था। सीबीएफसी द्वारा इस फ़िल्म को पास किये जाने के बाद भी कई मुस्लिम संगठनों की इस फ़िल्म पर घोर आपत्ति और विरोध दर्ज कराया गया था। जिसके कारण फ़िल्म पर तमिलनाडु में प्रतिबंध लगा दिया गया।
यही नहीं कमल हासन के ऊपर दबाव थे कि फ़िल्म में से कई दृश्य हटाये जाएं और इसलिए कमल हासन को कई दृश्यों को हटाना पड़ा, जिसके बाद उन्हें यह तक कहना पड़ गया था – “मुझे तमिलनाडु और देश छोड़ना पड़ेगा अगर फ़िल्म को लेकर विवाद नहीं सुलझा तो”।
उस समय भी हासन ने मुसलमानों को अपना सच्चा भाई बताया था। ऐसे में उस समुदाय के विरोध के कारण जिस व्यक्ति की फ़िल्म तमिलनाडु में प्रतिबंधित कर दी गयी थी और उसे 60 करोड़ के आस पास घाटा हुआ हो, वह बाद में उन्हीं के समक्ष हिन्दू धर्म को आतंकी करार दे, यह राजनीति से प्रेरित होकर चुनाव जीतने का प्रयास ही लगता है। ऐसा इसलिए क्योंकि अरावकुरूचि मुस्लिम बहुल क्षेत्र है, और उनका वोट पाने के लिए बजाए इसके कि सरकार के कामकाज, योजनाओं पर प्रश्न खड़े करके जनता को संबोधित करें, उन्होंने धार्मिक रूप से संबोधित किया
कमल हासन के इस बयान की आलोचना भी शुरू हो गयी है, जिनकी मुख्यतः आलोचना भाजपा व उसके समर्थकों ने की है। बाकी राजनीतिक दलों का इस बयान की निंदा न करना इस बात का सूचक है कि या तो वे पार्टियां इस बयान से सहमत हैं, अथवा उनके लिए यह विषय गंभीर नहीं है।भाजपा ने चुनाव आयोग से उनके इस बयान की शिकायत भी की है, मगर बाकी पार्टियों का इस बयान पर चुप्पी साधे रहना राजनेताओं की अवसरवादी प्रवृत्ति और तुष्टिकरण दोनों को ही साबित करती है।
संदर्भ:
https://www.google.com/amp/s/www.bhaskar.com/amp/national/news/kamal-haasan-mnm-founder-controversial-statement-says-india-first-terrorist-was-hindu-01544767.html