कोई आश्चर्य नहीं कि हमने नेतृत्व के लिए सावरकर के बदले गाँधी को चुना

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परसों जमशेदपुर में जुगसलाई में झड़प हो गई। इंडिया में झड़पें किससे होती हैं आप जानते ही हैं।

चुनाव बूथ पर हुई धक्का मुक्की के बाद देखते देखते 200 दंगाई खड़े हो गए। मुँह पर कपड़ा बाँधे बिल्कुल कश्मीर स्टाइल में पत्थरबाज़ी होने लगी। मोहल्ले में खड़ी गाड़ियाँ तोड़ डालीं। एक RAF (रैपिड एक्शन फ़ोर्स) जवान का सर भी फटा।

बदले में RAF ने भी जम कर धोया। घरों में घुस घुस कर धोया। कुछ बन्दे पकड़े भी गए।

जैसा कि होता है, उनकी भीड़ मिनटों में जुटती है, अपनी घंटों में। वहाँ सैकड़ों कार्यकर्ता जुट गए। मुख्यतः हिन्दू संगठनों के लोग थे। कुछ भाजपा के नेता टाइप लोग भी थे। (भाजपा भी एक हिन्दू संगठन है, यह भ्रम ना हो)।

वहाँ पहुँच कर दो बातें दिखाई दीं। पहला, कि उन लोगों में कोई स्थानीय नहीं थे। जिनके घर के शीशे तोड़े गए थे उनके अलावा कोई नहीं था। गली में ही दो दो अपार्टमेंट ब्लॉक्स हैं। उनमें कोई हलचल नहीं थी।

दूसरी बात, उन सभी जमा कार्यकर्ताओं में कोई सहमति, कोई कमांड स्ट्रक्चर नहीं था। कोई कुछ बोल रहा था, कोई कुछ और। कोई पुलिस से कह रहा था कि लिखित में गारंटी दीजिये कि हम सुरक्षित रहेंगे। अब ऐसी लिखित गारंटियाँ कितनी सुरक्षा देती हैं पता ही होगा। कोई कह रहा था कि इस सड़क पर एक दीवार खड़ी कर के कॉलोनी का रास्ता ब्लॉक किया जाए जिससे कि उनका आना जाना इधर से ना हो।

मैंने कहा – ये जो फ्लैट्स वाले हैं, इनसे किसी ने बात की है? इन्हें समझाया है किसी ने कि अगर वे आज खड़े नहीं होते तो उन्हें अपने फ्लैट्स अगले कुछ वर्षों में आधे चौथाई दामों में बेच कर भागना होगा? क्या उन घरों में मर्द नहीं हैं? क्या उनके बच्चे नहीं हैं? क्या हम लोग जो हिन्दू संगठनों के लिए खड़े होते हैं, हम अपने माँ-बाप को प्यारे नहीं हैं?

पर वहाँ के स्थानीय लोगों में से कोई भी हमारे साथ चलकर उन अपार्टमेंट्स के निवासियों से संवाद करने को राजी नहीं हो पाया।

अल्पसंख्यक 10% भी होता है तो वह आपके मोहल्ले में चौड़ा होकर रहता है। हम 60-70% भी होते हैं तो उनके उपद्रव से घबरा कर भाग खड़े होते हैं। और आज जब जुटे भी हैं तो उपाय क्या निकाला है? कि सड़क पर दीवार खड़ी करके उनका रास्ता ब्लॉक किया जाए। भाई, तुम चाहे दीवार खड़ी कर लो, चाहे रास्ते पर लैंडमाइन बिछा लो, पर जबतक खुद खड़े होने की तैयारी नहीं होगी तब तक सुरक्षित नहीं हो।

प्रशासन ने तो पूरा साथ दिया। समुचित कार्रवाई की। पर यह आपको सुरक्षित नहीं रख सकता। हर गली चौराहे पर, हर समय RAF खड़ी नहीं रह सकती।

हिन्दू समाज के बारे में दो बातें बहुत स्पष्ट हैं। पहला, हम हमेशा ऐसे कायरता पूर्ण विकल्प ही ढूंढते हैं जिनसे संघर्ष कुछ समय के लिए टाला जा सके। कोई आश्चर्य नहीं कि हमने नेतृत्व के लिए सावरकर के बदले गाँधी को चुना।

और दूसरी बात… हिन्दू समाज संवादहीनता से ग्रस्त है। हम किसी विषय पर एकमत नहीं हो सकते, एक सर्वमान्य नेतृत्व नहीं चुन सकते। क्यों?

क्योंकि हम हिंदुओं को एक कॉमन स्ट्रेटेजिक गोल की पहचान नहीं है। और हम एक कॉमन आइडेंटिटी सब्सक्राइब नहीं करते। इन दोनों समस्याओं को दूर किये बिना हम ऐसे ही आसान शिकार रहेंगे। निहत्थे और असंगठित। यह एक सिविलाइज़ेशनल डिज़ाइन फॉल्ट है जो बिना धार्मिक समागम (Congregation) के दूर नहीं किया जा सकता।

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