पौरुष से ही होती है धर्म, राष्ट्र, शांति, अहिंसा की रक्षा

राष्ट्र बंधुओं! कल यानी 12 मई को श्रीलंका के चिलाव शहर में उग्र भीड़ ने तीन मस्जिदों, मुसलमानों के घरों पर पथराव किया। कई मुसलमानों की ठुकाई भी हुई।

इसकी बिस्मिल्लाह इस तरह हुई कि एक बौद्ध ने सिंहली भाषा में पोस्ट लिखी “सिंहलियों को रुलाना मुश्किल है” जिस पर इससे असहमत अब्दुल हामिद हमसर ने कॉमेंट किया “ज़ियादा ख़ुश मत होओ, एक दिन तुम्हें भी रोना पड़ेगा” इसके बाद शांति-अहिंसा के अनुगामी बुद्ध के उपासक बौद्ध भड़क उठे और उन्होंने दबाव बना दिया।

भारत के इतिहास का पाठ्यक्रम वामपंथी धूर्तता के चलते चाहे बौद्ध मत के विध्वंस को हिंदू आचार्यों को ज़िम्मेदार ठहराता है मगर स्वयं बौद्ध सत्य जानते हैं। वामपंथी कुटिलों के अतिरिक्त कोई भी सामान्य व्यक्ति गूगल से ही जान सकता है कि तक्षशिला, नालंदा आदि विश्वविद्यालय जो बौद्ध विश्वविद्यालय थे, को इस्लामी आक्रमणकारियों ने नष्ट किया था। अफ़ग़ानिस्तान, क़ज़्ज़ाक़िस्तान, उज़्बेक़िस्तान, आज़रबैज़ान, सिंक्यांग आदि सब बौद्ध क्षेत्र थे मगर आज इस्लामी क्यों हैं? यह तो तय है कि इन्हें हिन्दुओं ने तो इस्लामी नहीं बनाया हो सकता।

यहाँ किसी के मन में सवाल उठ सकता है कि अब्दुल हामिद हमसर की ठुकाई तक तो बात ठीक बल्कि आवश्यक है मगर मस्जिदों पर हमला क्यों? अतः आवश्यक है कि जाना जाये कि मस्जिद क्या है और उसमें क्या क्रिया-कलाप चलते हैं?

आइये प्रमुखतम इस्लामी व्यक्तियों के गिरोह के सरदार मौलाना मौदूदी के क़ुरआन के अनुवाद से ही सीधे तथ्य समझे जाएँ। यह क़ुरआन ग़ैरमुस्लिम लोगों को ‘वॉइस ऑफ़ क़ुरआन’ संस्थान फोकट में भेजता है। जिस किसी सम्मानित काफ़िर या मुशरिक़ को ये क़ुरआन मँगानी हो वो इक़बाल मसाला वाला को 9892132464, 9920182816 या 022-23063564 पर फ़ोन करके अपना पता लिखा दें। रजिस्टर्ड डाक से या कोरियर से मय तफ़सीर (विस्तार सहित) के क़ुरआन का यह अनुवाद भेज दिया जायेगा।

राष्ट्रवादियों, इसे अवश्य मंगाइये और इसे सभ्यता की अनिवार्य कसौटी ‘मानव मात्र समान हैं। प्रत्येक मनुष्य के अधिकार समान हैं। स्त्री-पुरुष बराबरी के अधिकार रखते हैं। जो भी इसके विपरीत चिंतन, व्यवहार करता है वो अभी असभ्य है और जंगलीपन से सभ्यता की यात्रा नहीं कर पाया’ पर कसिये।

इसके पेज नंबर 17 पर वाक्य है “कुछ सदाचारी लोग इस आह्वान के उत्तर में मुस्लिम गिरोह बनने के लिये तैयार हो गये।” अब आगे पेज नंबर 20 पर कहा गया है “अल्लाह की ओर से ऐसे ऐसे भाषण नबी (मुहम्मद) पर अवतरित होते रहे जिनकी शैली कभी आग्नेय वक्ताओं की, कभी राजकीय आदेशों की, कभी शिक्षकों के शिक्षा देने की, कभी सुधारकों के समझने-बुझाने की होती थी।”

इनमें बताया गया कि सामूहिकता, राज्य और शुद्ध संस्कृति का निर्माण किस तरह किया जाये, जीवन के विभिन्न विभागों को किन नियमों, सिद्धांतों पर व्यवस्थित किया जाये, कपटाचारियों (मुनाफ़िक़ों) से क्या व्यवहार हो, राज्य के ग़ैरमुस्लिमों से क्या बर्ताव हो, किताब वालों (ईसाईयों, यहूदियों) से संबंधों का क्या रूप रहे, लड़ रहे शत्रुओं और समझौता कर लेने वाली जातियों के साथ क्या रीति अपनाई जाये, और ईमान वालों का यह सुसंगठित गिरोह संसार में अल्लाह के प्रतिनिधित्व (ख़िलाफ़त) के कर्तव्य निभाने के लिए अपने आपको कैसे तैयार करे।

पेज नंबर 29 पर “एक अकेले व्यक्ति की पुकार से अपना काम शुरू करके अल्लाह की ख़िलाफ़त की स्थापना तक पूरे 23 साल तक यही किताब उस महान आंदोलन की रहनुमाई करती रही और सत्य-असत्य के इस दीर्घकालीन और परम घातक संघर्ष के मध्य एक-एक मंज़िल और एक एक मरहले पर इसी ने विनाश का ढंग और निर्माण के रूप बताये।”

अब भला यह कैसे सम्भव है कि आप सिरे से कुफ़्र और दीन के झगड़े और इस्लाम और अज्ञानता (जहालत) के संघर्ष के मैदान में क़दम ही न रखें, इस संघर्ष की किसी मंज़िल से गुज़रने का आपको संयोग ही न हुआ हो और फिर मात्र क़ुरआन के शब्द पढ़-पढ़ कर उसकी सारी हक़ीक़तें आपके सामने खुल कर आ जायें। इसे तो पूरी तरह आप उसी समय समझ सकते हैं जब इसे ले कर उठें और अल्लाह की ओर आह्वान का काम शुरू करें और जिस-जिस तरह यह पुस्तक रहनुमाई करती जाये, उस-उस तरह क़दम उठाते चले जायें।

पेज नंबर 33 पर है “क़ुरआन धाराबद्ध क़ानून की किताब नहीं है बल्कि सिद्धांत व नियम की किताब है।” उसका असल काम यह है कि इस्लामी व्यवस्था के सैद्धांतिक व नैतिक आधारों को पूरी व्याख्या के साथ न केवल यह कि सामने लाये बल्कि बौद्धिक, तर्क और भावनात्मक अपील दोनों तरीक़े से ख़ूब दृढ कर दे।

अब रहा इस्लामी जीवन का व्यवहारिक रूप, तो इस मामले में वह मनुष्य की रहनुमाई इस तरीक़े से नहीं करता कि जीवन के एक-एक पल के बारे में विस्तृत नियम व अधिनियम बनाये, बल्कि वह हर जीवन-विभाग की चौहद्दी बता देता है और स्पष्ट रूप से कुछ स्थानों पर शिलायें खड़ी कर देता है। जो यह बात निश्चित कर देती है कि अल्लाह की इच्छा के अनुसार इन विभागों की स्थापना व निर्माण किन लाइनों पर होनी चाहिए।

अंग्रेज़ी मुहावरे “This is directly from horse’s mouth” अर्थात सीधे मूल स्रोत से यह व्याख्या है कि मस्जिद इस्लाम की प्रमुखतम पुस्तक क़ुरआन के जिस शिक्षण का केंद्र है, उसमें क्या ज्ञान पढ़ाया जाता है।

वहां इस्लामी सामूहिकता, ग़ैरमुस्लिमों के साथ मुसलमानों का व्यवहार, इस्लाम के राजकीय आदेश, राज्य का निर्माण, जीवन (इस्लामी) के विभिन्न विभागों के नियम, किताब वालों (ईसाईयों, यहूदियों) से संबंध, कुफ़्र और दीन का झगड़ा, इस्लामी व्यवस्था के सैद्धांतिक व नैतिक आधार, इस्लामी जीवन का व्यवहारिक रूप अर्थात ईमान वालों का यह सुसंगठित गिरोह संसार में अल्लाह के प्रतिनिधित्व (ख़िलाफ़त) के कर्तव्य निभाने के लिए अपने आपको कैसे तैयार करे सिखाया जाता है।

श्रीलंका, बर्मा, चीन के बौद्ध हमारी तरह मूर्ख नहीं हैं। भारत के राजनैतिक नवबौद्धों के अतिरिक्त विश्व भर के बौद्ध समाज की इस्लाम की हरकतों पर पैनी, चौकन्नी, तीखी दृष्टि है। वो इस्लामियों के संसार भर में फैलाये गए झाँसे में नहीं आते कि ‘आतंकवाद तो कुछ पथभ्रष्ट लोगों का काम है। इस्लाम का अर्थ तो शांति है। आख़िर मुहम्मद की तलवार पर शांति ही तो लिखा था। इसी से समझ लेना चाहिये कि इस्लाम शांतिप्रिय धर्म है और मुसलमान परम शांतिसंपन्न समाज है’।

बौद्धों को स्पष्ट है कि होटलों में बम बाँध कर सैकड़ों लोगों को मार डालने वाले लोग किस चिंतन के अनुगामी थे। उन्हें पता है कि करोड़ों का व्यापार करने वाला अपने बेटों को मृत्यु के जिस पथ पर जिस कारण भेजता है, उसकी जड़ कहाँ है।

बौद्ध कटिबद्ध हैं कि वहां कोई जस्टिस सच्चर, कोई कुलदीप नैयर, कोई मणि शंकर अय्यर, कोई दिग्विजय सिंह, कोई नेहरू, कोई गाँधी न पनप सके।

धर्म, राष्ट्र, शांति, अहिंसा की रक्षा पौरुष से ही होती है और यह पौरुष समाज व्यक्त करता है। यह कार्य राज्य का नहीं होता, राष्ट्र का होता है। अतः श्रीलंका का बौद्ध समाज इस्लामियों की ग़ैरमुस्लिमों के लिये अविष्कार की हुई दवाई अब उन्हीं को पिलाने पर उतारू है।

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