इंदिरा गांधी की हत्या के कुछ ही घंटों बाद 31 अक्टूबर 1984 को राजीव गांधी भारत के प्रधानमंत्री बनाए गए।
डेढ़ महीने बाद ही दिसंबर में लोकसभा चुनाव हुआ और इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति की लहर में काँग्रेस को ऐतिहासिक बहुमत मिला। लोकसभा की 541 में से 414 सीटें काँग्रेस ने जीतीं।
काँग्रेस को सीटें इतनी ज्यादा मिली थीं कि लोकसभा में न तो कोई अधिकृत विपक्षी दल था और न कोई नेता प्रतिपक्ष। राज्यसभा में भी काँग्रेस का ही बहुमत था।
राजीव गांधी में वाकई कोई अनुभव और क्षमता होती, तो इतने बड़े बहुमत के द्वारा वे पाँच सालों में भारत में सब-कुछ बदल सकते थे। लेकिन वे पूरी तरह विफल रहे, बल्कि मैं तो यही कहता हूँ कि वे भारत के सबसे विफल प्रधानमंत्री साबित हुए। आज भी उनका वह रिकॉर्ड कोई तोड़ नहीं पाया है।
उनका बचाव करने वाले अगर चाहें, तो वीपी सिंह, चन्द्रशेखर, देवगौड़ा और गुजराल के नाम गिनाने की गलती कर सकते हैं, लेकिन उनको ये याद दिलाना चाहता हूँ कि इनमें से किसी के भी पास बहुमत नहीं था और न ही इनको पूरे पाँच साल सरकार चलाने का मौका मिला। ये सारे तो केवल गठबंधन सरकार का मुखौटा बने हुए थे, ठीक वैसे ही जैसे 2004 से 2014 तक मनमोहन सिंह रहे। इसके बावजूद मनमोहन सिंह भी राजीव गांधी से ज्यादा सफल प्रधानमंत्री थे।
अक्टूबर 1984 में राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने और उनके नेतृत्व वाली काँग्रेस ने सबसे पहले पूरे देश में हज़ारों बेगुनाह सिक्खों का कत्लेआम किया। सिर्फ इसलिए क्योंकि इंदिरा गांधी की हत्या एक सिक्ख अंगरक्षक ने की थी। अकेली दिल्ली में ही शायद ढाई हजार सिक्खों को मार दिया गया। राजीव गांधी ने इस हत्याकांड को सही ठहराया। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है, तो धरती हिलती ही है।
फिर चुनाव के बाद जब उन्होंने अपने मंत्रिमंडल का गठन किया तो जगदीश टाइटलर और एच. के. एल. भगत जैसों को मंत्री बनाया, जबकि ये लोग दंगों के आरोपी थे। हो सकता है कि राजीव गांधी ने दरअसल इन लोगों को दंगों में योगदान के कारण ही यह इनाम दिया हो।
दूसरी तरफ डॉ. प्रणब मुखर्जी को केबिनेट से बाहर रखा गया जबकि इंदिरा गांधी की केबिनेट के सबसे वरिष्ठ मंत्री वही थे। आज जिन काँग्रेसियों को यह भ्रम होता रहता है कि मोदीजी ने आडवाणी जी को अपमानित कर दिया है, उन्हें भाजपा की चिंता छोड़कर अपनी पार्टी का यह इतिहास पढ़ना चाहिए।
इससे पहले दिसंबर 1984 में भोपाल के यूनियन कार्बाइड प्लांट में भयंकर घटना हुई। ज़हरीली गैस के रिसाव से लाखों लोग प्रभावित हुए। हज़ारों लोगों की जान गई, कई हज़ार लोग जीवन भर के लिए अपाहिज और विकृत हो गए।
इस दुर्घटना का आरोपी अमरीकी नागरिक वॉरेन एंडरसन था। जब वह भारत आया, तो उसे गिरफ्तार करके हवालात में रखने की बजाय काँग्रेस सरकार ने एंडरसन की ही कंपनी के 5-स्टार गेस्ट हाउस में उसे नज़रबंद करवाया, जहां उसकी सुविधा की पूरी व्यवस्था उपलब्ध थी।
कुछ ही समय बाद मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को दिल्ली से एक विशेष फोन कॉल आया और काँग्रेस सरकार ने तुरंत ही एंडरसन को रिहा कर दिया। इतना ही नहीं, उसे भोपाल से दिल्ली तक ले जाने के लिए मप्र सरकार ने अपना राजकीय विमान दिया और कलेक्टर व एसपी उसे सम्मान सहित एयरपोर्ट तक पहुंचाने भी गए।
एंडरसन उसके बाद से कभी भारत वापस नहीं लौटा और काँग्रेस की सांठगांठ के कारण ही भोपाल गैस त्रासदी के उन हज़ारों बेगुनाहों को कभी न्याय नहीं मिल सका। आज जो काँग्रेसी रोज सुबह-शाम विजय माल्या और नीरव मोदी के नाम की माला जपते रहते हैं, आपको उन्हें एंडरसन और राजीव गांधी का नाम याद दिलाना चाहिए।
इंदौर की एक 62 साल की बूढ़ी महिला शाहबानो को उसके पति ने तीन बार तलाक बोलकर अपने घर से बेदखल कर दिया था। वह महिला अपने पति से गुज़ारा भत्ता पाने की मांग को लेकर अदालत में गई। स्थानीय अदालत ने पति को आदेश दिया कि वह हर महीने उस महिला को 25 रूपये की रकम गुजारे के लिए दे।
इतनी कम रकम के खिलाफ शाहबानो ने मप्र उच्च न्यायालय में याचिका लगाई। हाईकोर्ट ने उसकी मांग को जायज़ ठहराते हुए इस रकम बढ़ाकर 179 रुपये 20 पैसे प्रति माह करने का आदेश दिया। इसके खिलाफ पति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने पति की मांग को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया कि गुजारा भत्ता कानूनन उस महिला का अधिकार है और उसे मिलना चाहिए।
महान राजीव गांधी ने संसद में अपने विशाल बहुमत का उपयोग सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने और उस बूढ़ी, लाचार, बेबस महिला का हक छीनने के लिए किया। अपने वोटबैंक को खुश करने के लिए राजीव गांधी की सरकार ने संसद में कानून पारित किया और तीन तलाक देने वाले पतियों को उस ज़िम्मेदारी से मुक्त करवा दिया। यह 1986 का साल था।
राजीव गांधी की वही काँग्रेस पार्टी आज इस बात पर भाषण देती है कि मोदी के राज में सुप्रीम कोर्ट के कामकाज में सरकार दखल दे रही है और भारत का संविधान खतरे में पड़ गया है। लाचार महिलाओं का हक छीनने वाली काँग्रेस अपने घोषणापत्र में बता रही है कि चुनाव जीतने पर वह महिलाओं के उद्धार के लिए क्या-क्या करेगी। जबकि पिछले ही महीने उसी काँग्रेस की एक महिला प्रवक्ता अपने साथ बार-बार हुए अपमान के कारण पार्टी छोड़ने पर मजबूर हो चुकी है। इतनी बेशर्मी इस देश में सिर्फ काँग्रेस ही कर सकती है।
1987 में राजीव गांधी ने काश्मीर की बर्बादी में योगदान दिया। उस साल जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव था। उससे पहले वाला चुनाव 1983 में शेख अब्दुल्ला की मौत के बाद हुआ था। उस समय काँग्रेस ने नेशनल कांफ्रेंस को गठबंधन का प्रस्ताव दिया था, नेशनल कांफ्रेंस के नए नेता फारुख अब्दुल्ला ने नहीं माना और उनकी पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ा।
उस चुनाव में काँग्रेस की हार हुई और नेशनल कांफ्रेंस की सरकार बनी। लेकिन काँग्रेस ने जनादेश को मानने की बजाय नेशनल कांफ्रेंस के असंतुष्ट नेता और शेख अब्दुल्ला के दामाद गुलाम मोहम्मद शाह को फारुख की सरकार से विद्रोह करने के लिए उकसाया। इस बहाने काँग्रेस ने वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया और सत्ता अपने नियंत्रण में ले ली।
प्रधानमंत्री बनने के बाद राजीव गांधी और फारुख अब्दुल्ला के बीच समझौता हुआ और काँग्रेस के समर्थन से 1986 में फारुख अब्दुल्ला फिर मुख्यमंत्री बन गए। 1987 के चुनाव में कश्मीर की इन दोनों पार्टियों का गठबंधन कायम रहा। वास्तव में उस समय कश्मीर में ये दो ही पार्टियां प्रभावी थीं। इसके खिलाफ कश्मीर के कई संगठनों ने मिलकर मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट नाम से एक गठबंधन बनाया। उसने लोगों से काँग्रेस गठबंधन के खिलाफ वोट देने की अपील की।
राजीव गांधी की काँग्रेस अपनी हार की आशंका से घबराई हुई थी। इसलिए जिन इलाकों में काँग्रेस-विरोधी उम्मीदवार ज्यादा प्रभावी थे, वहां विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं को बड़ी संख्या में गिरफ्तार कर लिया गया, ताकि वे लोग काँग्रेस के विरोध में प्रचार न कर सकें।
पूरे कश्मीर में इस तरह की सैकड़ों गिरफ्तारियां हुईं। इसके बावजूद कश्मीर में इस चुनाव को लेकर भारी उत्साह था। उस चुनाव में जम्मू-कश्मीर में 75% मतदान हुआ। कश्मीर घाटी में तो 80% मतदान हुआ। कश्मीर के लोगों ने किसी चुनाव में इतना उत्साह कभी नहीं दिखाया था।
अपनी हार के डर से काँग्रेस ने इस चुनाव में जमकर धांधली की। कई देशी-विदेशी पत्रकारों और मीडिया ने अपनी रिपोर्टों में ऐसे कई उदाहरण बताए हैं, जहाँ चुनाव में हारे हुए प्रत्याशियों को भी विजयी घोषित किया गया, या जीतने वाले के पक्ष में पड़े सैकड़ों वोट गलत ढंग से खारिज कर दिए गए, ताकि काँग्रेस या नेशनल कांफ्रेंस के प्रत्याशी जीत सकें।
बीबीसी ने भी खुद काँग्रेस के नेताओं से बात करके इस धांधली की पुष्टि की थी। राज्यपाल जगमोहन ने भी कहा था कि इस चुनाव में भारी गडबडी हुई थी, लेकिन राजीव गांधी की सरकार का आदेश था कि वे इस मामले में कोई कार्यवाही न करें।
इस बेईमानी के दम पर काँग्रेस और फारुख अब्दुल्ला ने कश्मीर में सरकार तो ज़रूर बना ली, लेकिन कश्मीर के लोगों का भरोसा हमेशा के लिए गंवा दिया। इसके बाद ही कश्मीर में तेज़ी से आतंकवाद बढ़ना शुरू हुआ। लोकतांत्रिक प्रक्रिया से निराश हो चुके सैकड़ों युवाओं ने हथियार उठा लिए और कश्मीर पूरी तरह आतंकवाद की चपेट में आ गया। उसके अगले ही साल लाखों कश्मीरी पंडितों की हत्या हुई या उन्हें अपना सब-कुछ छोड़कर वहाँ से भागना पड़ा। राजीव गांधी की ही मेहरबानी से भारत के लाखों नागरिक अपने ही देश में शरणार्थी बनकर रहने को मजबूर हो गए!
शाहबानो वाले मामले में अदालत का फैसला बदलकर राजीव गांधी ने अपने वोटबैंक को तो खुश कर दिया था, लेकिन अब उनको यह डर सताने लगा कि भाजपा इसका फायदा हिन्दुओं को एकजुट करने के लिए उठाएगी। इसलिए अब हिन्दुओं को खुश करने के लिए राजीव गांधी ने अयोध्या में विवादित ढाँचे का ताला खुलवाया और बाकायदा वहां पूजा-पाठ करवाकर राम मंदिर के निर्माण का शिलान्यास किया।
काँग्रेस के लोग आज भाजपा से सवाल पूछते हैं कि अयोध्या में मंदिर बनाने की तारीख कब बताओगे, जबकि वे भूल जाते हैं कि अयोध्या में मंदिर बनाने का सबसे पहला वादा राजीव गांधी की काँग्रेस ने ही किया था। राम मंदिर के मुद्दे पर राजनीति भाजपा ने नहीं, बल्कि काँग्रेस ने शुरू की थी। आखिर काँग्रेस लोगों को आपस में लड़वाने और उसके द्वारा वोट बटोरने में माहिर जो है!
इसी तरह की गलतियाँ राजीव गांधी ने श्रीलंका के मामले में की। उन्होंने श्रीलंका की आंतरिक समस्या को ठीक से समझे बिना उसमें बेवजह दखल दिया। अपनी खुद की केबिनेट से भी बात किए बिना राजीव गांधी ने श्रीलंका की सरकार को वचन दे दिया कि भारत वहां मदद के लिए अपनी सेना भेजेगा। भारत के हजारों सैनिक वहां भेज दिए गए। उन सैनिकों को न ठीक से उस इलाके की जानकारी थी, और न ये स्पष्ट था कि आखिर उन्हें लड़ना किससे है – एलटीटीई के तमिलों से या श्रीलंका की सेना से।
राजीव गांधी की इस मूर्खता के कारण हमारे कम से कम एक हजार सैनिक वहां बेवजह मारे गए। अंततः वीपी सिंह ने प्रधानमंत्री बनने के बाद श्रीलंका से भारतीय सेना वापस बुलाई और भारत की बेइज्जती खत्म हुई।
बोफ़ोर्स का घोटाला भी राजीव गाँधी के कालखंड का ही कलंक था। आरोप लगा कि स्विटज़रलैंड की कंपनी से हथियार खरीदने के लिए सोनिया गांधी के करीबी इटालियन दलाल क्वात्रोची के माध्यम से राजीव परिवार ने कमीशन खाया है। यह मामला कई सालों तक चलता रहा और बाद में मनमोहन सिंह के ज़माने में सरकार ने इसे कमज़ोर करके क्वात्रोची को बचाने की व्यवस्था की।
इतने उदाहरण यह समझने के लिए काफी हैं कि राजीव गांधी को भारत को सबसे विफल प्रधानमंत्री क्यों कहा जाता है। ये राजीव गांधी की विफलताओं का ही परिणाम था कि जो काँग्रेस 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या की सहानुभूति में 400 से भी ज्यादा सीटें जीती थीं, वह 1989 के चुनाव में 200 सीटें भी नहीं जीत पाई। उसके बाद से आज तक काँग्रेस कभी भी केंद्र में बहुमत हासिल नहीं कर पाई है।
लेकिन राजीव गांधी की इस राजनैतिक अक्षमता का नुकसान सिर्फ काँग्रेस पार्टी को नहीं हुआ। इसका नुकसान पूरे देश को भुगतना पड़ा। 1989 से ही भारत का लोकतंत्र गठबंधन की राजनीति का शिकार बना और फिर 2014 तक देश में अस्थिरता का यह दौर कायम रहा। भारत को पूर्ण बहुमत वाली सरकार आखिरी बार 1984 में मिली थी, और अंततः तीस साल बाद 2014 में नरेन्द्र मोदी ने भाजपा के लिए पूर्ण बहुमत हासिल करके देश की राजनैतिक अस्थिरता को खत्म किया।
पिछले पाँच सालों में अपनी सक्रियता और कर्मठता के द्वारा मोदी सरकार ने देश को यह भी दिखा दिया है कि अगर पूर्ण बहुमत वाली सरकार चाहे, तो भारत की प्रगति के लिए कितना कुछ कर सकती है। यह सरकार चलाने के मोदी के अनुभव और नीयत के कारण ही संभव हो पाया है, जबकि राजीव गांधी इस बात का उदाहरण हैं कि अनुभवहीन और कमज़ोर व्यक्ति के हाथों में अगर सत्ता चली जाए, तो वह केवल पाँच सालों में ही भारत को किस हद तक बर्बाद कर सकता है। राहुल गांधी भी उसी परंपरा के वाहक हैं, इसलिए राहुल गांधी को चुनने की गलती करने से पहले आपको इन सारी बातों का ध्यान जरुर रखना चाहिए।
आज काँग्रेस प्रियंका के चेहरे में इंदिरा गांधी की झलक दिखाकर लोगों को मूर्ख बनाने की जो कोशिश कर रही है, वही उसने राजीव गांधी का चेहरा दिखाकर भी किया था। तब इस बात के कसीदे पढ़े जाते थे कि राजीव गांधी कितने क्लीन हैं और कैसी युवा सोच को लेकर आए हैं, जबकि वास्तव में इस प्रचार के बहाने काँग्रेस ने उनकी अनुभवहीनता को छुपाने की कोशिश की।
काँग्रेस के उसी मिस्टर क्लीन ने यह कहा था कि बेगुनाह सिक्खों को मारना सही था। उसी मिस्टर क्लीन ने यह स्वीकार किया था कि उसकी सरकार में इतना भ्रष्टाचार है कि हर एक रुपये में से 85 पैसे उसके मंत्री और अधिकारी खा जाते हैं और लोगों तक सिर्फ 15 पैसे ही पहुँचते हैं।
स्वाभाविक है कि पिछली कई पीढ़ियों से जिन लोगों की रोजी-रोटी इसी तरह के भ्रष्टाचार की बदौलत चलती रही, उन्हें मोदी के आने के बाद से बहुत तकलीफ हो रही है क्योंकि मोदी ने चोरी और लूटपाट की उनकी दुकानें बंद करवा दी हैं। यही कारण है कि जब मोदी ने भ्रष्टाचारी को भ्रष्टाचारी कहा, तो ऐसे कई लोगों को बहुत तकलीफ हुई।
लेकिन चुनाव में वोट आपको देना है, इसलिए सोचना आपको चाहिए कि आप भ्रष्टाचारियों के गठबंधन का साथ देंगे या आपके लिए उनसे मुकाबला कर रहे नरेन्द्र मोदी का साथ देंगे। फैसला आपको करना है क्योंकि भविष्य आपका है! और देश का भी!
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यवहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति मेकिंग इंडिया (makingindiaonline.in) उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार मेकिंग इंडिया के नहीं हैं, तथा मेकिंग इंडिया उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।