मसऊद अज़हर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कर दिया गया। भारतीय मीडिया इस पर बहुत हवा भर रहा है। ऐसी दुंदुभि बजाई जा रही है जैसे अष्टभुजा जगदम्बा ने महिषासुर का संहार कर दिया गया हो। यह पाकिस्तान को घेरने के दिशा में एक बड़ा क़दम है मगर समस्या के समाधान की तरफ़ बड़ा तो क्या छोटा क़दम भी नहीं है। क्यों?
9-11-2001 को अमरीका पर आक्रमण हुआ। न्यू यॉर्क में ट्विन टॉवर पर हुए इस हमले में 2,996 तुरंत मारे गए। 6,000 से अधिक घायल हुए। पहली झपट में 10 बिलियन अर्थात 69 अरब 63 करोड़ 65 लाख की संपत्ति नष्ट हुई। बाद के वर्षों में साँस की समस्या, कैंसर आदि बीमारियों से लोग मरते रहे।
अमरीका तुरंत अफ़ग़ानिस्तान पर चढ़ दौड़ा। अनगिनत बम बरसाये। लाखों आतंकी मारे। तालिबान को धूल में मिलाने के लिये अफ़ग़ानिस्तान खंडहर बना दिया गया। स्वभाविक अपेक्षा थी कि अमरीका और प्रकारांतर में सभ्य विश्व सुरक्षित हो जाना चाहिए था, मगर नहीं हुआ।
इस रक्तबीज ने आइ.एस.आइ.एस, दाइश, बोको हराम, मुस्लिम ब्रदरहुड, सलफ़ी, ज़िम्मा इस्लामिया, जमात-उद-दावा, तालिबान, ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामी मूवमेंट, इख़वानुल मुस्लिमीन, लश्करे-तैय्यबा, जागृत मुस्लिम जनमत-बांग्ला देश, इस्लामी स्टेट, जमातुल-मुजाहिदीन, अल मुहाजिरो, दौला इस्लामिया और न जाने कितने पैशाचिक संगठन प्रकट कर दिए।
इस्लाम के प्रख्यात अध्येता और इस्लाम का परित्याग कर चुके अली सीना जी की पुस्तक ‘अंडरस्टैंडिंग मुहम्मद’ के अनुसार 9-11-2001 के बाद विश्व के विभिन्न भागों में 11,000 से अधिक आक्रमण हो चुके हैं। सभ्य विश्व घोर असुरक्षित है। क्या यह जानना नहीं चाहिए कि सैकड़ों वर्षों से यह हिंसा क्यों हो रही है?
यहाँ यह जानना उपयुक्त होगा कि ईसाई विश्व ने सैकड़ों वर्षों तक इस्लाम से युद्ध लड़े हैं। इनका प्रारम्भ 1096 में पोप अर्बन द्वितीय ने क्रिश्चियन बाइजेंटाइन साम्राज्य की सहायता के लिए किया था जो मुस्लिम सल्जूक़ तुर्कों के आक्रमणों से आहत था। 1096 और 1291 के बीच नौ प्रमुख धर्मयुद्ध अभियान हुए। इन युद्धों में एक अनुमान के अनुसार कुल 1.7 मिलियन यानी 1 करोड़ 70 लाख लोग मारे गए।
एक सामान्य वामपंथी इन युद्धों को साम्राज्य की लड़ाई कह सकता है मगर यहाँ यह जानना आवश्यक है कि सल्जूक़ तुर्कों के यूरोशलम, योरोप पर आक्रमणों का कारण क्या था? जब तक इसके कारणों की छान-फटक नहीं होगी इन्हें रोका नहीं जा सकता।
यह उसी समय की लड़ाई नहीं है। भारत में भी सैकड़ों वर्षों तक यह नरमेध चलते रहे हैं। अभी भी अफ़ग़ानिस्तान, ईराक़, सीरिया, लीबिया, चीन के सिंक्यांग आदि विश्व के सैकड़ों स्थानों पर यह लड़ाई चल रही है। आज भी बहुत से मूर्ख ईराक़, लीबिया में चल रहे युद्ध को पेट्रोल, गैस के भंडारों पर क़ब्ज़े का युद्ध कहते-बताते हैं।
बंधुओं! महत्वपूर्ण यह है कि इन लड़ाइयों को लड़ रहे इस्लामी समूह इन्हें क्या समझते हैं? आख़िर सारी दुनिया से हज़ारों मुसलमान पासपोर्ट, वीज़ा की बाधा पार कर क़ुरआन की आयतों वाले काले झंडे के संगठन के पक्ष में लड़ कर जान देने ईराक़, सीरिया, लीबिया यूँ ही तो नहीं पहुंचे होंगे।
भारतीय राष्ट्र के विभिन्न घटक यथा मीडिया, देश के विभिन्न राजनैतिक दल, सामाजिक संगठन, समाज इस वैश्विक समस्या के सच को कब समझेंगे?
मसऊद अज़हर, हाफ़िज़ सईद, सैयद सलाउद्दीन, दाऊद इब्राहीम, ज़कीउर्रहमान लखवी, छोटा शकील, टाइगर मेमन आदि यह हज़ारों फन वाले वैचारिक नाग के फनों में से कुछ फन हैं।
समस्या से निबटना है तो कुछ फनों के काटने से कुछ नहीं होगा, इस नाग की रीढ़ तोड़नी होगी। नाग की रीढ़ इसकी विषैली मानसिकता उपजाने वाली इसकी किताबें हैं। जो अपने से भिन्न विचारधारा, जीवन शैली वाले लोगों को मार डालने योग्य मानती हैं। यह स्त्रियों को नाक़िस उल अक़्ल अर्थात मंद बुद्धि समझने, दूसरे दर्जे का मानने वाली अर्थात खुले रूप से मानवताविरोधी हैं।
बंधुओं! मानव सभ्यता का अस्तित्व संकट में है। इस युद्ध में हारने या बराबरी पर छोड़ने का कोई स्थान नहीं है। मानवता को इसे जीतना ही होगा अन्यथा मानव सभ्यता नष्ट हो जाएगी।
इस विचारधारा के ख़िलाफ़ मुखर होने वाली हर आवाज़ में स्वर मिलाइये। इसके विरोध में सामने आने वाले हर व्यक्ति का साथ दीजिये। उस हर संगठन से जुड़िये जो इसके विरोध में है। राष्ट्र भावना को सबल करना इससे निबटने का सूत्र है।
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