सीबीएसई बोर्ड के परिणाम घोषित हो चुके हैं और इन्हीं परिणामों में एक विशेष परिणाम आया है विशेष वर्ग का। विशेष छात्रों का यह परिणाम भी बाकी सभी छात्रों को टक्कर दे रहा है। विशेष छात्रों की इस सूची भारत में दूसरा स्थान हासिल किया है दिल्ली के उत्तम नगर के निश्चय कोहली ने।
निश्चय आर्ट्स विषय के छात्र हैं, और वेदव्यास डी ए वी पब्लिक स्कूल विकास पुरी में पढ़ते हैं। निश्चय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भी सक्रिय स्वयंसेवक हैं, संघ का प्रथम वर्ष शिक्षित हैं, और नियमित शाखा जाने वाले दायित्ववान स्वयंसेवक हैं।
आश्चर्य नहीं करना चाहिए जब ऐसे समय में देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से आये हैं तो टॉपर भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से आएं। हमसे बातचीत करते समय निश्चय ने काफी सारी बातें साझा कीं। अपनी सफलता का श्रेय अपने अभिवभावकों व अध्यापकों को देते हुए निश्चय कहते हैं कि मेरे लिए मेरे अध्यापक मेरे अभिभावक समान ही हैं, मैं उन्हें अलग नहीं देखता।
- कैसा अनुभव कर रहे हैं आप?
सभी बहुत खुश हैं। 97% आने पर भी ऐसा नहीं लगा कि स्कूल में मेरे अंक सबसे ज़्यादा हैं। मुझे मेरे शिक्षकों ने बताया कि मैंने स्कूल में सर्वश्रेष्ठ अंक प्राप्त किये हैं, जिससे मुझे बहुत खुशी हुई। बधाइयों का तांता लगा हुआ है, ऐसे लोगों ने भी शुभकामनाएं दी हैं जिनसे लंबे अरसे से बातचीत नहीं हुई थी। दूर दूर से बधाइयां मिलने का सिलसिला जारी है।
- आपने विशेष वर्ग में द्वितीय स्थान प्राप्त किया इसकी जानकारी कैसे मिली?
सबसे पहले मेरा साक्षात्कार लेने के लिए कुछ पत्रकार आये जिन्होंने मुझे बताया कि सीबीएसई की प्रेस वार्ता में उन्हें जानकारी मिली कि विशेष वर्ग में मैंने तीसरा स्थान प्राप्त किया है, मगर जो द्वितीय स्थान पर हैं उनके भी अंक संभवतः मेरे बराबर ही हैं; हालाँकि शाम तक यह स्पष्ट हो गया कि मैंने दूसरा अंक प्राप्त किया है।
- देश में विशेष वर्ग में दूसरा अंक प्राप्त कर आप कैसा अनुभव प्राप्त कर रहे हैं?
बहुत अच्छा लग रहा है। मैंने कभी इसकी कल्पना भी नहीं की थी कि ऐसा भी होगा। मुझे लगता था कि स्कूल में मेरा कोई न कोई स्थान ज़रूर आएगा, मगर मैं प्रथम आऊंगा, ऐसा नहीं सोचा था। उसमें भी विशेष वर्ग में पूरे भारत में दूसरे स्थान पर आना मेरे लिए आश्चर्य तो है ही साथ ही साथ हर्ष का भी विषय है।
- स्कूल के दोस्तों की कैसी प्रतिक्रिया है?
स्कूल के दोस्त काफी खुश हैं वे गर्व महसूस कर रहे हैं। मुझसे कहते हैं कि हम सबको बता रहे हैं कि हम ऑल इंडिया टॉपर के दोस्त हैं। (हँसते हुए) कई दोस्त तो ऐसा भी कह रहे हैं कि अब हमें ‘कोहली जी के लड़के को देख’ ताने मिलने लगे हैं।
- क्या शारीरिक समस्या है निश्चय को?
निश्चय को लोकोमोटर इम्पैर्मेंट है, वह लिंब के साथ चलते हैं। उनकी दायीं आंख से कम दिखता है। इन संघर्षों और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद निश्चय ने खुद को मज़बूत और सामान्य बालक जैसा ही समझा, उन्होंने दिव्यांग शिक्षार्थियों को संदेश दिया कि स्वयं को कम मत समझो। “अपने लिए सकारात्मक विचार रखो और अपने आत्मविश्वास को मज़बूत रखो; तुम भी सभी की भाँति सामान्य हो और सब पा सकते हो” – निश्चय ने कहा।
- अपनी शिक्षा की यात्रा बताएं।
नर्सरी से ही वेद व्यास डी ए वी पब्लिक स्कूल, विकास पूरी से पढ़ाई की है। दसवीं करने के बाद ही लक्ष्य तय कर लिया था और उसी को पाने के लिए 11वीं में आर्ट्स विषय चुना। और मुझे 11वीं कक्षा के कुछ ही महीनों में यह स्पष्ट हो गया कि मेरा चुनाव सही है। 12वीं में आते ही मैंने अपनी तैयारियां शुरू कर दी। रोज़ थोड़ा थोड़ा पढ़ाई, एक घंटे- दो घंटे नियमित पढ़ाई की जिससे मुझ पर यकायक बोझ ना आये।
- परीक्षाओं से कुछ महीनों पहले जब बच्चे सक्रिय होकर पढ़ते हैं और अपनी सारी मेहनत लगा देते हैं, क्या आपने भी इस प्रक्रिया का पालन किया?
मैंने अपने पढ़ाई के घंटे बढ़ा दिए, मगर ऐसा नहीं किया कि 10-12 घंटे पढ़ाई की हो एक दिन में। मैंने अपने अभिवभावकों को पूरा समय दिया है, उनके साथ घूमना और मस्ती भी मेरी जारी रही।
- 10वीं के बाद आर्ट्स लेने पर किसी ने टोका? मन में कभी सवाल आया आर्ट्स को लेकर?
मन में तो कभी कोई संशय नहीं रहा आर्ट्स को अपना मुख्य विषय बनाने में, न आगे कभी रहेगा। हां मुझे कई लोगों ने विज्ञान लेने के लिए कहा, मेरे अभिभावकों को काफी लोगों ने कन्विंस करने की कोशिश की, मगर अभिवभावकों ने कहा कि हम अपने बच्चे की क्षमताओं को जानते हैं और उसे उसी का मनपसंद विषय लेने को कहेंगे।
- 12वीं के विषयों में आपकी स्थिति क्या थी?
12वीं में मेरे 4 मुख्य विषय व एक अतिरिक्त विषय था। मुझे किसी भी विषय में कोई समस्या नहीं रही। भूगोल में थोड़ी बहुत दिक्कतें शुरू में आईं क्योंकि वह 11वीं से भिन्न थी, मगर शिक्षकों की सहायता से, घर में पढ़ने से और खुद नोट्स बनाने से मेरी इस विषय पर पकड़ मज़बूत हो गयी।
- क्या कभी ऐसा भी रहा कि किसी एक विषय से विशेष अनुराग व बाकियों से कोई अरुचि रही हो?
जी नहीं! ऐसा नहीं था कि किसी विषय में मेरी अधिक रूचि व किसी में कम रही हो। मैंने सभी में बराबर मेहनत की है। पांचों ही विषय मुझे बहुत ही रोचक लगते हैं।
- कभी बोर नहीं हुए पढ़ाई से?
नहीं! कभी बोरियत महसूस ही नहीं हुई। कभी ऐसा लगता कि क़िताबों में से कुछ कम रह गया, कभी लगता कि नोट्स में कुछ कमी रह गई इसलिए कभी बोर नहीं हुआ। हर वक़्त कुछ न कुछ करता ही रहा। कभी अगर ऐसा लगा भी कि मैं बोर हो रहा हूँ तो अपना ‘सेल्फ़ टेस्ट’ ले लेता था, यानि ख़ुद ही टेस्ट बनाया और ख़ुद ही सॉल्व किया।
- कभी ब्रेक लेने का ख़याल आया?
एक दो बार ऐसा मन में आया कि हाँ मैं बहुत ज़्यादा गंभीर होकर पढ़ रहा हूँ, मुझे मेरे अभिवभावकों ने भी कहा कि ज़रा रुक जाना चाहिए ‘ऐसा नहीं है कि परीक्षा कल ही हो’। इसलिए मैंने ब्रेक भी लिए, एक दो दिन कम पढ़ाई की।
- क्या शारीरिक समस्याएं आपको कोई चुनौती दे सकीं?
नहीं! ना मैंने कभी ख़ुद को ऐसा समझा कि मुझे कोई समस्या है, न मेरे आस पास के मित्रों, अध्यापकों या अभिभावकों ने ऐसा मुझे कभी महसूस होने दिया। मैंने हमेशा खुद को एक सामान्य बच्चे की तरह देखा है और सामान्य बच्चों की ही भांति मैंने सभी को करीकुलर एक्टिविटीज़, स्पोर्ट्स व अन्य कार्यक्रमों में भाग लिया। इसलिए इन समस्याओं की वजह से मुझे कभी कोई चुनौती नहीं मिली।
- संघ में सक्रिय होने के बावजूद और परिवार में संघ होने के बावजूद आपने यह मुकाम हासिल किया। क्या कोई समस्या नहीं हुई संघ की वजह से?
नहीं संघ की वजह से कभी कोई समस्या नहीं हुई। अगर आपके पास समय है या क्षमता है संघ को समय दे पाने की तो ज़रूर दीजिये, अगर नहीं है तो मत दीजिये। मेरे मामले में मैं समय दे सकता था। एक घंटे की शाखा से बहुत ज़्यादा असर नहीं पड़ता है पढ़ाई पर। कई बार आधे आधे घंटे संपर्क के कारण अतिरिक्त लगता था, मगर इससे कभी कोई दिक्कत नहीं हुई क्योंकि पढ़ाई को तय समय प्रतिदिन देता था। मैंने दो घंटे शाखा के लिए निकाल कर रखे थे।
- शाखाओं में परीक्षा के दौरान शिक्षार्थी स्वयंसेवक छुट्टी कर लेते हैं और अनियमित हो जाते हैं। आप ऐसे स्वयंसेवकों को क्या कहना चाहेंगे?
मैं कहना चाहूंगा कि परीक्षा से एक दो दिन पहले आना तो चलता है। कहीं कोई चोट न लग जाए इसलिए अगर आप शाखा नहीं जा रहे तो बात समझ आती है, मगर आप पढ़ाई का बहाना करके शाखा नहीं जा रहे तो यह गलत है। पढ़ाई के दौरान इतना तनाव बढ़ जाता है कि तनाव मुक्त होने के लिए घर से बाहर जाना ही चाहिए, इसके लिए शाखा से बढ़िया और कुछ नहीं हो सकता।
- आपके इस यात्रा में अभिभावकों, शिक्षकों, मित्रों और संघ का कैसा योगदान रहा है?
सबसे ज़्यादा सहयोग मेरे अभिभावक और शिक्षकों का मिला है। बोर्ड परीक्षा इतनी गंभीर है आज के समय में कि ऐसे समय में मुझे तनावमुक्त रखने का श्रेय मेरे अभिभावक व मेरे बड़े भाई को जाता है। उन्होंने ही मुझे खुश रखा, मेरी चिंता की, इसलिए मैं अच्छे से पढ़ाई कर सका और परीक्षाएं दे सका। इनके इस समर्थन के बिना मैं कुछ नहीं हूँ। मैं जल्दी ही भावुक हो जाता हूँ, मगर परिवारजनों के नैतिक व भावनात्मक सहयोग ने ही मुझे मज़बूत बनाया। मेरे सभी दोस्तों ने मेरा साथ निभाया। हमने साथ बैठकर पढ़ाई की। जहाँ तक बात है अध्यापकों की, मैं उन्हें अभिवभावकों से अलग नहीं देखता हूँ। मेरे अध्यापक मेरे अभिभावक भी हैं। शिक्षकों ने कभी मेरे प्रश्नों को अनदेखा नहीं किया, उन्होंने मुझे एक्सट्रा क्लास भी दिए, कभी कोई डाउट होने पर फोन नंबर भी साझा किये थे। संघ ने बहुत संस्कार दिए, मेरे संघ के सहपाठियों और मित्रों ने मेरा मार्गदर्शन किया। मेरी सफलता का श्रेय मेरे अभिभावकों व अध्यापकों को ही जाता है।
- ट्यूशन को लेकर आपका क्या विचार है?
ट्यूशन लेने से पहले हमें अपने मन से पूछना चाहिए -“क्या हमें सच में इसकी आवश्यकता है?”। आप प्रश्न कीजिये – कहीं आप इस वजह से तो ट्यूशन नहीं ले रहे क्योंकि यह चलन में है? इसमें पैसे भी बर्बाद होते हैं और समय भी बर्बाद होता है। इसकी वजह से स्कूल और ट्यूशन दोनों को समय देना पड़ता है, उनके होमवर्क करने का समय चाहिए ऐसे में आप स्वाध्याय (सेल्फ स्टडी) को समय नहीं दे पाते। ट्यूशन लेने से पहले विचार ज़रूर करें कि क्या हमें इसकी आवश्यकता है।
- आपके लिए क्या चुनौतियां रहीं?
चुनौतियां कोई विशेष रही नहीं, क्योंकि सभी ने मेरा साथ दिया।
- आगे क्या करने का विचार है?
आगे मैं मनोवैज्ञानिक बनना चाहूँगा। मनोविज्ञान में स्नातक प्रतिष्ठा की डिग्री लेना चाहूंगा।
- नित्य दिनचर्या कैसी होनी चाहिए 12वीं के विद्यार्थियों की?
पढ़ाई के अलावा अपनी दिनचर्या में खेल कूद बाकी गतिविधियों को भी समय दें, मोबाइल रख कर परिवार को समय दें, अच्छे उपन्यास पढ़ें लोगों से मिलने जाएं और इलेक्ट्रिकल एप्लायंस से थोड़ी दूरी बनाएं।
- आपके लिए डिस्ट्रैक्शन क्या था?
मेरे लिए फ़ोन डिस्ट्रैक्शन था, लेकिन मैंने उसे 12वीं की शुरुआत में ही फ़ोन रख दिया था और इस वजह से मैं अपनी पढ़ाई पर अधिक फ़ोकस किया। आमूमन लोग ऐसा करते नहीं हैं, उसमें भी मैंने फोन कक्षा की शुरुआत में ही रख दिया था, इसकी वजह से मैंने अपने डिस्ट्रैक्शन पर विजय पाई। हालाँकि यह मेरे लिए मुश्किल रहा, दोस्तों ने काफी टोका भी, मगर दोस्तों ने कभी इसके लिए ज़िद नहीं किया और मेरे फैसले को सपोर्ट किया।
- अब के विद्यार्थियों को क्या संदेश देना चाहेंगे?
अब के विद्यार्थियों से कहना चाहूंगा कि केवल बोर्ड के लिए सजग न रहें बल्कि स्कूल में होने वाले अन्य परीक्षाओं के लिए भी सजग रहें, नहीं तो ऐसा होता है कि आप केवल बोर्ड को सजग मानते हो और ऐसे में आप पर तैयारियों का पहाड़ टूट पड़ता है।
- दिव्यांग बच्चों के परिवारों के लिए क्या संदेश देना चाहते हैं आप?
उनके आस पास का माहौल अपनापन और अपनाने का होना चाहिए। दिव्यांग बच्चों को अपनाइए, उन्हें अलग मत कीजिये, वे आपके ही जैसे हैं; उनके हुनर और उनकी गुणवत्ताओं को पहचानिए और बढ़ाइए। - देश के अनेक परिवारों के नाम क्या संदेश देंगे?
12वीं को जीवन का पैमाना मत बनाएं। बच्चों को बताएं कि उनके जीवन में और भी महत्वपूर्ण चीज़ें आएंगी, उन पर दबाव न डालें। मैं इसलिए इस नाव को पर कर सका क्योंकि मेरी रूचि इसमें है, हो सकता है किसी अन्य की रूचि किसी अन्य विषय में हो।
जाते जाते निश्चय ने यह भी कहा “जब आप मन में ठान लो तो कोई बाधा नहीं बचती। हम आज कल देख ही रहे हैं कि अनेक न्यूनताओं के बावजूद कई लोग आईएएस, आईपीएस बन रहे हैं, परीक्षाएं टॉप कर रहे हैं तो ऐसे में यह मानना कि कोई बाधा आपको रोक सकती है, बहुत गलत होगा।”
बिना लाग-लपेट के मन से दिये विचारों के लिए आप को साधुवाद एवम् आशिर्वाद।