‘हिन्दू इतिहास : हारों की दास्तान‘ नामक किताब में पढ़ा था कि जब दुर्दांत हत्यारा गज़नवी सोमनाथ पहुँचा तो उसके गुप्तचरों ने पाया कि परकोटे पर बैठे सनातनी सैनिक और मन्दिर में पूजा करने वाले पंडित आपसी परिहास और ठिठोली में अपना समय काट रहे थे।
मन्दिर पर आक्रमण की पूर्व सूचना थी… मगर सबका विश्वास था कि भगवान सोमनाथ (भगवान शिव) स्वयंमेव इन भावी आक्रमणकारी मलेच्छों को नष्ट कर देंगे।
आगे जो हुआ वह भारत का कलुषित इतिहास है… न सोमनाथ रहा और न वहां ठिठोली करते सनातन भक्त।
हज़ारों वर्ष के कालखंड में 70 बरस कुछ नहीं होते… मारिया विर्थ कहती हैं कि बारह सौ वर्ष में 800 मिलियन हिन्दू, जेहादी हत्याओं के शिकार हुए… करोड़ों हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कारों और धर्मपरिवर्तन का सिलसिला आज भी बेरोकटोक जारी है।
‘कायर, लम्पट और अय्याश’… अमूमन ठिठोलीबाज़ होते हैं। शहला रशीद पर किसी ने गप्प छोड़ दी कि उसके पर्स से 40 कंडोम प्राप्त हुए… और हम मूर्ख हिंदुओं ने हज़ारों पोस्ट्स 40 कंडोमों को लेकर लिख डालीं…
इसी कमीनेपन को लम्पटपन/ ठिठोली कहते हैं। बेवकूफ हिंदुओं, तुम्हे अंदाज़ ही नहीं है कि सिर्फ 29 बरस की शहला रशीद… कश्मीर और इस्लाम के लिए क्या कर रही है।
एक शहला रशीद ने पूरे भारत में फैले मुस्लिम कश्मीरी छात्रों का ज़िम्मा लिया हुआ है। मुस्लिमों में शहला रशीद की छवि सेवियर (saviour) की है।
शहला रशीद… घाटी और हिन्दुविरोधी – आतंक समर्थक – मीडिया – राजनीतिज्ञों के बीच एक पुल के रूप में कार्य करती है।
हम हिन्दू क्या एक भी ‘शहला रशीद’ पैदा कर पाए?…
क्या हमारे पास एक भी शहला रशीद जैसा समर्पित… और इस विषय पर ज्ञान रखने वाला… युवती तो छोड़िए… कोई युवक उपलब्ध है?
शहला ने अपना जीवन ही मुस्लिम-कॉज़ के लिए समर्पित कर दिया है। हमारे पास लफ़्फ़ाज़ों और ठिठोलीबाज़ों की फौज है।
हम जैसे अज्ञानी, अकर्मण्य, ठिठोलीबाज़ लोग ही अपने धर्म के पराभव और सिलसिलेवार पराजयों का कारण हैं।
नरेंद्र मोदी की तुष्टिकरण राजनीति से मैं सहमत नहीं रहा हूं… परंतु उनके केंद्रित (फोकस्ड)… समेकित प्रयासों और दृष्टि का मैं प्रशंसक हूँ… अगर वह बैठे-बैठे शब्दों के बुलबुले फेंकने के एक्सपर्ट होते तो वह आज जननायक नहीं होते…
ठिठोली छोड़िये… अपने नायक की मदद कीजिए… घर बैठे ठिठोली करते रहे तो 2004 दोहराने से कोई नहीं रोक सकता…
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