यह चुनाव दिल्ली का है, गली का नहीं

श्री भाऊ तोरसेकर जी के आज के ब्लॉग से एक बात रख रहा हूँ।

महाराष्ट्र राज्य जब बना तब राज्य बनाने के लिए जो भी नेता मोरारजी देसाई से लड़े वे सभी अपने आप में दिग्गज थे। बड़ी बड़ी जनसभाएँ होती थी और लोग दूर दूर से उनको सुनने आते थे। लेकिन जब राज्य बना तो सत्ता काँग्रेस ने ही थामी।

आचार्य अत्रे – एक बहुआयामी व्यक्ति थे। लेखक थे, पत्रकार थे, शिक्षक और शिक्षाविद थे, नाट्य लेखक, दिग्दर्शक थे। उनके बनाए सिनेमा को राष्ट्रपति पुरस्कार भी मिला, और वक्ता वे वाकई दशसहश्रेषु थे। उनकी जनसभा में लोग नज़दीक के पेड़ों पर भी चढ़ जाते उन्हें सुनने।

वे अक्सर कोसते श्रोताओं को – “सांप को साल भर पीटते हो लेकिन नागपंचमी को उसे ही खोजकर दूध पिलाते हो! काँग्रेस के लिए आप लोगों की सोच यही है।”

लोग उनकी बात पर दाद देते थे लेकिन वोट काँग्रेस को ही देते थे।

1990 में बालासाहेब ठाकरे ने यह बात बदल दी। वे आलोचना करते थे, लेकिन आचार्य अत्रे या उनके समकालीन भी घनघोर आलोचना करते थे। खुद बालासाहेब भी स्वयं को आचार्य अत्रे से बेहतर वक्ता नहीं मानते थे और व्यक्तिगत तौर पर उनका बहुत आदर भी करते थे। लेकिन एक फर्क था जिसे जनता देख-समझती थी।

क्या था वो फर्क?

फर्क यही था कि इन सभी नेताओं ने यह कभी नहीं कहा कि हमें सत्ता दो, हम चलाएँगे सरकार। ये केवल काँग्रेस को कोसते रहे। वहीं बालासाहेब ने कहा शिवसेना को लाइये, हम सरकार बनाएँगे। जनता ने सत्ता दी।

केंद्र में काँग्रेस के लंबे कार्यकाल तक सत्ता भोगने का यही राज रहा है। ऐसा कतई नहीं था कि जनता को काँग्रेस से कोई लगाव था। लेकिन आज भाऊ के भाषण में उन्होंने एक बात कही कि महिला नाकारा, शराबी पति को भी नहीं छोड़ती तो इसलिए कि उसकी मौजूदगी में कोई गुंडे घर में घुसेंगे नहीं। उसे अपनी और बच्चों की सुरक्षा का ख्याल होता है, ऐसे नाकारा पति से प्रेम नहीं। काँग्रेस को यही लाभ मिलता रहा।

जनता पार्टी ने सत्ता मांगी तो इमरजेंसी से चिढ़ी हुई जनता ने सत्ता दी, लेकिन वे बिखर गए और काँग्रेस दो तिहाई मतों से वापस आई। क्या नारा था काँग्रेस का – ‘काम करनेवाली सरकार – Government that works’. लोगों को उतना ही चाहिए था, बाकी परेशानियाँ अपनी जगह थी।

नरेंद्र मोदी ने गुजरात चलाकर दिखाया और बहुत अच्छे से चलाकर दिखाया तभी से काँग्रेस उनके पीछे तब से ही पड़ गयी। दंगे तो बस बहाना थे, ये एक मुख्यमंत्री था जो काँग्रेस के पंखों तले आने को तैयार नहीं था और ना ही धमकियों से डर रहा था।

उसे जो राज्य मिला था उसकी क्षमताएँ उसे पता थीं और राज्य की जनता उसके साथ थी। गुजरात की नौकरियाँ देने की क्षमता भी काँग्रेस को पता थी कि देश के सभी भागों से लोग यहाँ आते हैं तो यहाँ की कहानियाँ अपने यहाँ ले तो जाएँगे। वहाँ की जनता भी इनके बारे में कुछ मत बनाएगी।

इसलिए काँग्रेस मोदी जी के पीछे पड़ गयी लेकिन एक ही गलती की कि गलत आदमी चुना पीछे पड़ने के लिए। खुद को दी गयी गाली को गहना बनाने की क्षमता रखनेवाले इस आदमी ने हर अवरोध को सीढ़ी बनाया और प्रधान मंत्री पद पर जब दावा किया तब जनता उनकी प्रतीक्षा ही कर रही थी।

2014 में तो मोदी जी जीते नहीं, काँग्रेस ने अपने कर्मों से उन्हें जिताया था। उनकी असली लड़ाई तो अब है और मेरी सदिच्छा है कि वे जीतें। वे भी यथार्थवादी व्यक्ति हैं, जब कहते हैं कि लहर 2014 में नहीं थी बल्कि अब की बार लहर है तो सत्य कह रहे हैं। 2014 को तो काँग्रेस की लश्कर ए मीडिया ने मोदी लहर कहा था, मोदी जी ने कभी भी 2014 को मोदी लहर कहा हो ऐसा मुझे याद नहीं। काँग्रेस की लश्कर ए मीडिया ने 2014 के चुनाव को मोदी लहर क्यों कहा, उसपर अलग से लिखूंगा, यहाँ बात भटक जायेगी।

आज की तारीख में मोदी जी ने पाँच साल सरकार चलायी है और गठबंधन होते हुए भी अटल जी की जो मजबूरियाँ थी उनके बिना चलायी है। बहुत सारा काम कर के दिखाया भी है, इसलिए काँग्रेस या किसी की भी विरोधी घोषणायेँ तथ्यहीन हैं।

विरोधी, जहां देखो पंद्रह लाख या रोजगार की बातें करते हैं लेकिन जरा टोकने पर खोखले साबित हो जाते हैं। वे असल में उत्पादक रोजगार की बात ही नहीं करते बल्कि सरकारी खर्चे से अनुत्पादक नौकरियों की बात करते हैं जिसका प्रतिबिम्ब अब 72 हज़ार/ लाख/ करोड़ वाली घोषणाओं में साफ दिखाई दे रहा है, और उनके खुद के प्रवक्ता भी इन घोषणाओं को जस्टीफाई नहीं कर पा रहे हैं।

आज इनमें से कोई भी केवल ‘मोदी हटाओ’ के आगे कुछ कहने को तैयार नहीं। कुछ लोग आज भी GST और आधार पर वही झूठ बोल रहे हैं जो इन योजनाओं के लागू करते समय काँग्रेसियों ने बोला था कि जब हम ये योजनाएँ लाये थे तो मोदी जी ने विरोध किया था। सबूत में उनके पुराने वीडियो लगाते थे। लेकिन जब पूछा जाये कि मोदी जी ने जिनका विरोध किया था और जिन्हें लागू किया, उन आधार और GST में काँग्रेसी योजनाओं से क्या फर्क हैं तो भाग खड़े हुए हैं।

जनता यह भी समझती है। जनता का मूड ऊपर प्रदर्शित चित्र में सही ढंग से पकड़ा गया है। यह पुणे से है। घर के दरवाज़े पर सूचना लगाई है, काफी मार्मिक है – ‘इस घर के सभी सदस्यों ने स्थानीय उम्मीदवार कौन है यह न देखते नरेंद्रजी मोदी को मतदान करने का मन बनाया है। फिर भी अगर विपक्ष हमारे मत चाहता है तो पहले अपना प्रधानमंत्री पद का दावेदार जाहिर करे। क्योंकि यह चुनाव दिल्ली का है, गल्ली (गली) का नहीं।

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