छग में भाजपा विधायक की हत्या : ये तो होना ही था

राजस्थान, मप्र, छत्तीसगढ़ चुनाव में कांग्रेसी जीत के बाद मेरी शंका जो थी वो छत्तीसगढ़ में हुए आज के हमले से बलवती साबित हो रही है।

यूँ तो चुनाव होते हैं, एक पार्टी जीती है एक हारती है, लेकिन इन तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार जो कि हमेशा से कम्युनिस्टों के लिए उपयुक्त माहौल बनाती है, उसका आना एक कॉरिडोर बनाता है… पाकिस्तान – राजस्थान – मप्र – छत्तीसगढ़ – ओडिसा जो कि तस्करी के लिए शानदार गलियारा है।

जो लोग मुझसे फेसबुक की मेरी पुरानी आईडी से जुड़े हैं और लंबे समय से हैं, उन्होंने अगर मेरी पोस्ट पढ़ी हैं तो वो जानते हैं कि मैं इनको नक्सली नहीं कहता… इनके लिए उपयुक्त शब्द है माओवादी तस्कर!

माओवादी… क्योंकि ये उग्र माओवादी विचारधारा को मानते हैं, तस्कर इसलिए क्योंकि इनका प्रमुख व्यवसाय है तस्करी – हथियार, कोयला, खनिज, ड्रग्स, मानव अंग (human organ), पशु चर्बी, तेंदू पत्ते आदि के तस्कर हैं ये।

इन तस्करों को विचारधारा का बुरखा पहनाते हैं जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU), जादवपुर, ज़ेवियर, उत्तर बंग विवि, हज़ारीबाग़ विवि, तथा तमाम NGO कर्मी और बुद्धिजीवी जो कि इनके पार्टनर हैं।

हालांकि फेसबुक पर उपलब्ध इनका सबसे बड़ा एक्सपर्ट मैं ही नहीं हूँ परंतु 1991 से ही बंगाल, नक्सलबाड़ी, कन्धमाल, बस्तर से लेकर गढ़चिरौली की यात्रा और प्रवास के दौरान मैंने इनके हर क्रियाकलाप को नज़दीक से देखा है। अतः मुझे पूरा यकीन था कि इस तरह की घटनाओं में वृद्धि होगी।

कांग्रेस का काम है इनको माहौल देना… इस माहौल से इनके उर्वर खाद पानी बढ़ते हैं… कांग्रेसी शासन सहयोग के बदले इनसे पैसा बनाती है… सब मिलबांट कर खाते हैं… इसके लिये कुछ जानें चली जाए तो कोई बड़ा बात नहीं है।

कांग्रेस इस गलियारे को पाने के लिए इतनी व्याकुल (desparate) थी कि 2013 में सहानुभूति वोट पाने को अपने लीडरशिप को मरवाने से भी नहीं चूकी थी।

छतीसगढ़ में सरकार बनते ही 24 घण्टे के अंदर सारे माओवादी एक्सपर्ट अफसर और पुलिस कर्मियों को हटा देना इसका पहला कदम था… मप्र में भी यही हुआ… और इस तरह से गलियारा सम्पूर्ण हुआ कवच के साथ।

इस तरह की घटनाएं होती रहेंगी… छत्तीसगढ़ को पूरे 5 वर्ष इसको झेलना है।

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