Survey सन्तु निरामया ।
Survey भद्राणि पश्यन्तु ।
मा कश्चित् दु:खभाग् भवेत् ||
‘सर्वे’ की असलियत कैसे समझी जाये?
रोज़गार को लेकर सवाल पूछा जाता है जिससे लोगों के मनों की भावना प्रकट होती है। असंतोष, गुस्सा व्यक्त होता है।
लेकिन इस प्रश्न का एक उपप्रश्न भी होता है।
वो यह है कि आप क्या मानते हैं कि इस समस्या का समाधान करने की योग्यता किसमें है?
यहाँ सत्य प्रगट होता है कि भले ही रोज़गार को लेकर असंतोष है, समस्या का यथार्थपरक समाधान करने की क्षमता मोदी जी में है या राहुल + में, इसपर उत्तर देनेवाला व्यक्ति क्या सोचता है यह पता चलता है। मापन का असली निकष यही है।
सत्यनिष्ठा की मांग यह है कि यह उपप्रश्न का पूछा जाना उतना ही आवश्यक है। अन्यथा केवल ‘रोज़गार को लेकर फलां प्रतिशत जनता में रोष’ की खबर बन जाती है। अगर सर्वे करने वाली संस्था यह प्रश्न पूछती नहीं तो उसका ज्ञान कम और अगर पूछ कर भी उसके उत्तर दबा देती है तो उसकी सत्यनिष्ठा कम।
रोज़गार एक मुद्दा है, परफॉर्मेंस के कई मुद्दे और भी हैं। वीडियो कैमरा को देखते ही आगे हो कर झूठ बोलने वालों की भी कोई कमी नहीं। दो वीडियो जो मैंने देखे हैं, आप ने भी देखे होंगे।
एक वीडियो में एक अधेड़ आदमी चिल्लाकर बोलता है कि घर बनाने का कोई काम नहीं हुआ। वहाँ पहले एक बच्चा उसकी बात काटता है, ‘आओ मैं दिखाता हूँ’ कहता है तो उसे इस तरह डांट देता है, लगता है कैमरा और बाकी लोग न होते तो हाथ भी उठा देता। फिर एक अन्य युवा भी उसकी बात का खंडन करता है तो उस पर चिल्लाने की हिम्मत नहीं करता लेकिन अपनी बात वैसे ही चिल्लाकर रटते रहता है।
दूसरा वीडियो एक वो महिला का है जो बिलकुल ठंडक से सपाट सुर में झूठ बोलती है कि उसे कोई घर नहीं मिला। झूठ पकड़े जाने पर रुआंसी आवाज़ में अलग दुखड़ा सुनाने लग जाती है।
ऐसे और भी होंगे जो आप ने देखे होंगे। कभी लगता है, क्या ऐसे लोगों की यही ड्यूटी तो नहीं लगाई कि कैमरा देखते ही आगे हो कर ऊंचे सुर में शुरू हो जाये, न पूछी गयी बातों को भी रटना शुरू करें?
तो ये होती है ‘सर्वे’ की असलियत। वाकई सर्वे होते हैं या प्रायोजित प्रोग्राम, सोच लीजिये।
(लेख का मुख्य मुद्दा भाऊ तोरसेकर जी के ब्लॉग से प्रेरित है)
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