द्वितीयं ब्रम्हचारिणी – लय के दूसरे चरण में शक्ति के जड़, शैल रूप में पुरुष यानी परब्रह्म के अंशदान (समष्टि आत्मा जो जीवो में इंडिविजुअल या वैयक्ति आत्मा के रूप में रहती है) से तरंग, हलचल, प्रकाश, चैतन्यता आदि आचरण जो कि ब्रम्ह के आचरण हैं, उत्पन्न होते हैं। महालय के इस दूसरे चरण को ब्रह्मचारिणी अवतार कहते हैं।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति – महालय के तीसरे चरण में शक्ति के हलचल, चैतन्य रूप का परिवर्तन सृष्टि निर्माण के आवश्यक तीन सूक्ष्म अभौतिक तत्व मन, बुद्धि, अहंकार और पांच स्थूल भौतिक तत्व आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी के रूप में होता है।
प्रथम सूक्ष्म तत्व मन का कारक चंद्र है और प्रथम स्थूल तत्त्व आकाश जिसका गुण शब्द या ध्वनि (घंटा) है अतः चैतन्य ऊर्जा के इन आठ तत्वों में परिवर्तित रूप को चंद्रघंटा कहा गया।
कूष्माण्डेति चतुर्थ कम – संस्कृत साहित्य में कुष्मांड(कद्दू) की उपमा गर्भ को दी गई है। गर्भ के आकार और अपने अंदर हज़ारों बीजों के निर्माण में कारण। सृष्टि निर्माण के चौथे चरण में आठ तत्वों युक्त प्रकृति ( देवी) में इन तत्वों एवं आत्म तत्त्व के संयोग से विभिन्न जड़ एवं चेतन पदार्थो का निर्माण होता है। जैसे गर्भ में जीव का निर्माण होता है। शक्ति के इस रूप को कूष्माण्डेति अवतार कहा गया।
पंचम स्कन्दमातेति – पुराण में देवी को कार्तिकेय (स्कन्द) की माता वाले रूप को स्कंदमाता अवतार कहा है। सृष्टि निर्माण के इस पाँचवे चरण में शक्ति माँ बन जाती है अर्थात प्रकृति के सब पदार्थ, जीव, वनस्पति आदि मटेरियलाइज्ड हो जाते है। संसार प्रकट हो जाता है।
षष्टम कात्यायिनी च – कात्यायन ऋषि की पुत्री के रूप में देवी ने इस अवतार में जन्म लिया था। अर्थात मैथुनिक क्रियाएं प्रारम्भ हो फलित होने लगती है। सृष्टि के छठे चरण में अब शक्ति निर्मित प्राकृतिक चेतना युक्त पदार्थ प्रजनन व्रद्धि, क्षरण आदी अपनी प्राकृतिक क्रियाएं करने लगता है व संसार का सामान्य व्यवहार प्रारम्भ हो जाता है। हम वर्तमान में सृष्टि विकास के इसी छठे चरण में स्थित है।
सप्तमं काल रात्रि – सातवे चरण में आठ तत्वों युक्त सृष्टि नष्ट हो कर पुनः शून्य हो जाती है। प्रकाश लुप्त हो जाता है, सिर्फ जीव आत्मा या चेतना तथा कर्मबीज शेष रहते हैं। सृष्टि के इन विनाश को महा प्रलय (महालय का विलोम ) या काल रात्रि कहते हैं।
महागौरीति चा अष्टमं – आठवें चरण में जीव आत्मा का साक्षत्कार अपने अंशी महागौर वर्णी प्रकाश स्वरूप परम ब्रह्म से होता है। पुराण में आठवां दिन पार्वती के महा गौरी अवतार के नाम है।
नवमं सिद्धिदात्री – सृष्टि के अंतिम एवं नवम चरण में जीव आत्मा व त्रिगुणात्मक प्रकृति का परब्रह्म में विलय हो जाता है। अर्थात आत्मा परम सिद्धि को प्राप्त होती है। पुराण में यह नवम दिवस सिद्धि दात्री अवतार के पूजन और शक्ति के विसर्जन के नाम है।
ऊपर उल्लेखित आठ प्राकृतिक तत्वों एवं एक आत्म तत्व इन 9 तत्वों द्वारा ही 9 चरणों या शक्ति के 9 रूपांतरणों के अतिरिक्त सृष्टि में कोई दसवां तत्व या चरण नहीं है, अतः सनातन ने 9 को पूर्ण अंक कहा है।
इस तरह महालय से महाप्रलय के 9 चरणों युक्त यह नवरात्री का महापर्व है।
सभी मित्रों को नवरात्री महापर्व की बधाई!