‘उन’ का डर ये है कि हर व्यक्ति के मन में प्रवेश कर गए हैं प्रधानमंत्री मोदी

राजनीति शास्त्र में ऐसा माना जाता है कि राज्य (राष्ट्र) की उत्पत्ति और उसकी वैधता का आधार प्रत्येक व्यक्ति के मध्य social contract या सामाजिक अनुबंध है।

सभी व्यक्तियों ने अपनी स्वयं की और संपत्ति की सुरक्षा, एवं अपने मौलिक अधिकारों के संरक्षण के लिए आपस में अपनी स्वेच्छा या वास्तविक इच्छा से यह करार किया कि हर व्यक्ति एक-दूसरे के अधिकारों का हनन नहीं करेगा, एक दूसरे की जान नहीं लेगा और इस करार को लागू करने ले लिए वह अपने कुछ अधिकारों का त्याग कर देगा।

इसी कॉन्ट्रैक्ट ने संविधान का रूप लिया।

और यह कोई बाज़ारू या लेन-देन का कॉन्ट्रैक्ट नहीं है; बल्कि इस कॉन्ट्रैक्ट का आधार नैतिक है।

प्रसिद्ध फ़्रांसिसी विचारक जाँ जाक रूसो (Jean Jacques Rousseau) का मानना था कि लोगों को अक्सर अपनी ‘वास्तविक इच्छा’ पता नहीं होती और कहा कि एक यथोचित समाज तब तक नहीं बन सकता जब तक एक महान नेता जनता के मूल्यों और प्रथाओं को बदलने के लिए तैयार नहीं होता।

कई सौ वर्षो की गुलामी, और विदेशी मूल्यों में पले-बढ़े कांग्रेस के नामदारों के शासन के बाद हमारा सामाजिक अनुबंध, हमारे मूल्य, हमारी ‘वास्तविक इच्छा’ भ्रष्ट हो गयी थी।

स्वतंत्रता के बाद के 70 सालों में हमारे यहां एक ऐसा सिस्टम बना जिसमें गरीब को बहुत छोटी-छोटी चीजों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा था।

उस गरीब को बैंक अकाउंट खुलवाना है, तो सिस्टम आड़े आ जाता था। उसे गैस कनेक्शन चाहिए, तो दस जगह चक्कर लगाना पड़ता था। अपनी ही पेंशन पाने के लिए, स्कॉलरशिप पाने के लिए यहां-वहां कमीशन देना होता था।

कैसे हमारे नवयुवक और नवयुवतियां इस अभिजात्य वर्ग के जमे-जमाये युवाओं से मुकाबला करेंगे? उनकी माता और पिता जी ने तो भ्रष्टाचार और पहचान के बूते पर ना केवल उद्यम खड़े कर दिए, बल्कि नए लोगों के सामने अनगिनत बाधाएं खड़ी कर दी जिससे उनके निकम्मे लालों को कोई चुनौती ना दे सके।

एक तरह से ‘सब चलता है’ और ‘मुझे क्या’ और ‘इसमें मेरा क्या’ हमारे मूल्य हो गए थे। अपनी संस्कृति और मूल्यों के अपमान को स्वीकार करना सीख लिया था। आतंकी हमला करने वालों के घर के बाहर मोमबत्ती जलाना हमारा ‘कर्तव्य’ बन गया था।

अब यह स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री मोदी हम भारतीयों के मूल्यों, प्रथाओं, और ‘वास्तविक इच्छा’ को बदल रहे हैं। इसी बात से ही तो छुटभैये नेता और बुद्धिजीवी डरते हैं।

उनका डर अपने अरबों के काले धन को खोने का नहीं है। उन्हें सत्ता और प्रभाव खोने का डर नहीं है।

उन्हें भय इस बात का है कि प्रधानमंत्री मोदी हर व्यक्ति के मन में प्रवेश कर गए हैं, हर व्यक्ति को उन्होंने अपनी ‘वास्तविक इच्छा’ या real will का प्रयोग करने को प्रोत्साहित किया।

प्रधानमंत्री मोदी ने हमें अपनी और राष्ट्र के मूल्यों और प्रथाओं को बदलने के लिए प्रोत्साहित किया। अब हमारे राष्ट्र की नींव एक ऐसे सामाजिक अनुबंध पर रखी जाएगी, जो नैतिक होगा क्योंकि उसमें हम सब की पहली बार सौ प्रतिशत भागीदारी होगी।

तभी अभिजात्य वर्ग, जिसमें बिकाऊ बुद्धिजीवी शामिल है, इतना विरोध कर रहा है …! इसलिए 600 ‘बुद्धिजीवियों’ ने भाजपा के विरूद्ध वोट करने की अपील की है। सोनिया सरकार के विरूद्ध कभी भी ऐसी अपील नहीं की क्योंकि उनकी ‘दुकानें’ आम जनता के पैसों की चोरी से चल रही थीं।

हम अपने सामाजिक अनुबंध का नवीकरण या पुनः ‘हस्ताक्षर’ चुनाव के समय करते हैं। अतः यह आवश्यक है कि हम सभी अधिक से अधिक संख्या में मतदान करके अपने सामाजिक अनुबंध पर ‘साइन’ करें और प्रधानमंत्री मोदी को विजयी बनाएं।

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