आज से नवरात्रि का प्रारम्भ है, महालय से महाप्रलय की यह 9 चरणों की महायात्रा है। सनातन में हर एक कथा के, परम्परा व पर्व के पीछे अनेकों गूढ़ संकेत छुपे है जो गहन चिंतन की अवस्था में साधकों को प्रत्यक्ष होते हैं।
मार्कण्डेय पुराण अनुसार ये 9 दिन देवी और असुरों के मध्य हुए युद्ध के है। देवी और असुरों के इस युद्ध का वर्णन श्री मार्कण्डेय पुराण में सात सौ श्लोकों में वर्णित है जिसे श्री दुर्गासप्तशती कहते हैं।
नवरात्रि के 9 दिन शक्ति के 9अवतारों की पूजा की जाती है। पौराणिक रूप से ये 9 अवतार अलग अलग समय पर अलग अलग कार्यो हेतु हुए, जिनकी विस्तृत कथा अनेकों पुराणों और ग्रन्थों में वर्णित है। जैसे प्रथम शैलपुत्री (हिमालय की पुत्री पार्वती जी ) की कथा रामायण, मानस में वर्णित है।
ये कथाएं ऐहिक धरातल पर जितनी दिव्यता बिखेरती है उतना ही दिव्य अर्थ आध्यात्मिक धरातल पर भी प्रकट करती है।
प्रथमं शैलपुत्री द्वितीयं ब्रम्हचारिणी तृतीयं ।
चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम ।।
पंचमम स्कन्दमातेती षष्ठम कात्यायिनी च ।
सप्तमं कालरात्री महागौरी चा अष्टमं ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिताः ।
उक्तान्येतानी नामानी ब्राह्मणेव् महात्मना ।।
(चंडीकवच 3-5)
शक्ति के यह 9 अवतार सृष्टि के लय (निर्माण) के 9 चरण भी है। यहां हम सृष्टि निर्माण के इन्हीं चरणों के दर्शन करेंगे।
प्रथमं शैलपुत्री
सृष्टि निर्माण या महालय ब्रह्म के संकल्प एको अहम बहु स्याम अर्थात एक से बहुत हो जाऊं से प्रारम्भ हुआ था । यह संकल्प ॐ की अनाहत नाद के रूप में गुम्फित हुआ (नाद अथवा ध्वनि तभी उत्तपन्न होती है जब किसी वस्तु को ठोका या आहत किया जाय अतः सांसारिक ध्वनि आहत नाद कहलाती है , किन्तु ॐ नाद जब उत्तपन्न हुआ तब व्यक्त पदार्थ था ही नही अतः ॐ नाद स्वतः उत्तपन्न हुआ न कि किसी पदार्थ के आहत होने पर। इसीलिए इसे अनाहत नाद कहते हैं।
तब ऊर्जा या त्रिगुणात्मक प्रकृति (देवी) अपने तीनों गुणों (सत, रज, तम) के साम्यावस्था में होने से निष्क्रिय थी।
ॐ नाद के स्पंदन से इस अक्रिय ऊर्जा में सक्रियता उत्पन्न हुई और 9 चरणों में इस ऊर्जा या त्रिगुणात्मक प्रकृति से क्रमशः सृष्टि का लय और पुनः प्रलय हुआ ।
सृष्टि के निर्माण के प्रथम चरण में शक्ति सुप्त अवस्था में शून्य के रूप में रहती है ।
प्रकृति पुरुषात्मकम जगतः ।
मत्तः शून्यं चा अशून्यं ।। (देव्याथर्वशीर्ष -2)
प्रथम चरण में यह ऊर्जा गहन काली, जड़, घनीभूत शैल स्वरूप (अभेद आवरण ) हो अक्रिय अवस्था में होती है। जब अभी ॐ नाद गुंजाय मान नहीं हुआ था, किन्तु महत्व (परमात्मा का संकल्प ) उत्पन्न हो चुका था।
इस गहन तमस युक्त प्रकृति को महाविष्णु की योग निंद्रा या परा प्रकृति भी कहते है । प्रलय पूर्व के समस्त जीवों की आत्मा तो इस समय परमात्मा में विलीन रहती है किंतु उनके करण शरीर अर्थात संस्कार (कर्म बीज ) इसी शैलपुत्री के गर्भ में सुरक्षित रहते हैं।
इन बीजों के आधार पर ही नई सृष्टि में जीवों को ब्रह्मा से लेकर शेष सभी योनियां प्राप्त होती है ।
सनातन में नवरात्र के प्रथम दिवस हिमालय पुत्री जिन्हें देवी का शैलपुत्री रूप कहते हैं, की साधना की जाती है।
सभी मित्रों को नवरात्र पर्व की बधाई ।