महाभारत के युद्ध के बाद भी भीष्म जीवित थे। सूर्य के उत्तरायण में जाने की प्रतीक्षा करते भीष्म से मिलने जब एक दिन श्री कृष्ण पहुंचे तो भीष्म ने पूछा, भगवान अपनी स्मृति पर ज़ोर डालने पर भी मुझे कोई ऐसा पाप याद नहीं आता, जिसके दंड में मुझे शर-शैय्या भुगतनी पड़े। आखिर ऐसा कौन सा कुकर्म था, जिसके कारण मुझे ये दंड झेलना पड़ रहा है?
श्री कृष्ण ने कहा इधर हाल फिलहाल में नहीं किया लेकिन कई जन्म पहले एक दिन आपने एकादशी का व्रत कर रखा था। उपवास के परायण के लिए दूध लेकर आपने आँगन में रख दिया और संध्या करने चले गए। उसी समय एक सांप वहां आया और उसने कटोरे में मुंह डालने की कोशिश की। आपके व्रत के तेज से वो उड़ा और पास की झाड़ियों पर फेंका गया।
आपने सीधा कुछ नहीं किया था, बस भोज्य पदार्थ को खुले में रखने की गलती की थी। इस वजह से सांप की कंटीली झाड़ियों पर लटक कर काफी कष्ट में मृत्यु हुई। आप कई जन्मों से कोई पाप करते ही नहीं थे कि आपको इस पाप का दंड दिया जाए, इसलिए दंड से भी बचे रहे। इस जन्म में आप एक पापी राजा के सेवक थे और उसका दिया अन्न खाते रहे, इसलिए दण्डित करना संभव हुआ और आप भी आप उस सांप जैसी स्थिति में हैं।
आपको ये कहानी धार्मिक अतिशयोक्ति लग सकती है। महाभारत काव्य ही है, तो उसमें अतिशयोक्ति अलंकार भी होगा ही। इसके वाबजूद ये कहानी जो सिखाती है, वो ध्यान देने लायक है। पहला तो ये कि पुण्य करने से पाप ख़त्म नहीं हो जाते, हिसाब दोनों का ही होता है। दूसरा ये कि हिसाब देना ही पड़ेगा चाहे आप कोई भी हों। सनातनी मान्यताओं के चक्र जैसे इस क्रम पर कभी पूरा शोध हुआ नहीं।
अगर सौ वर्षों के काल खंड को लेकर भी शोध हो तो पाप-पुण्य और उसके दंड विधान की जांच शायद हो सकती है। गौरक्षक साधुओं पर गोली चलाने वालों की जांच में ये मिल जायेंगे। निर्दोष हिन्दुओं के मंदिरों में या बाजारों में बम फोड़ देने वालों की जांच में भी नतीजे तो दिख ही जायेंगे। कर्रप्ट कम्युनिस्ट शोषकों के काल में बंगाल में एक साईंबाड़ी नरसंहार हुआ था। उसमें कोई मुकदमा तो हुआ नहीं लेकिन कथित रूप से इसमें लिप्त लोग अभी जीवित हैं।
इन्टरनेट से मिली ये तस्वीरें साईंबाड़ी के नरभक्षी कहे जाने वाले कॉमरेड निरुपम सेन की है। बरसों से ये लकवे से ग्रस्त, नारकीय जीवन जी रहे हैं। मेरी कामना है कि उन्हें लम्बी नहीं, बहुत लम्बी उम्र मिले।