23 मार्च 2003… इस तारीख के 12 वर्ष पहले ही कश्मीर घाटी से हिन्दू जा चुके थे।
जनवरी 1990 की उस काली रात की वो कहानी पूरे देश का बच्चा बच्चा जानता है… अब उसके आगे 2003 को देखते हैं…
पुलवामा जिले के शोपियां के निकट नाड़ीमर्ग गाँव में 52 हिन्दू अभी भी रह रहे थे… 23 मार्च 2003 को लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी आये और उस समय उपलब्ध 24 लोगों को लाइन में खड़ा करके गोली मार दी।
मरने वालों में 2 वर्ष के बच्चे से लेकर 65 वर्ष के बुजुर्ग थे… गोली मारने के बाद उनके मृत शरीर को क्षत विक्षत किया गया था… इस हत्या का मकसद था बचे खुचे हिन्दुओं को मार के पूरा ISलामिC इलाका बना देना।
इस काण्ड के होते समय उनके सारे गैर मज़हबी शांतिप्रिय भाई चुपचाप दरवाज़ा बंद करके बैठे रहे… कोई नहीं आया बचाने…
उस समय मुख्यमंत्री थे मुफ़्ती मोहम्मद सईद… किसी तरह की कोई सुरक्षा हिन्दुओं को नहीं दी गई।
इस हत्याकांड के लिए पाकिस्तान के रावलकोट स्थित जान मुस्तफा उर्फ़ अब्दुल्लाह जो कि लश्कर का आतंकी था, को मास्टरमाइंड नामज़द किया गया था जो कि आज तक नहीं पकड़ा गया।
हत्याकांड को अंजाम देने वाले आतंकी मुम्बई चले गए थे लेकिन ख़ुफ़िया रिपोर्ट पाने के बाद मुंबई पुलिस ने 2 को मार गिराया था।
इस काण्ड को मैं याद क्यों कर रहा हूँ?
ये है ताकत उस ISलामिC ग्रुप की जिसके पीछे कम्युनिस्ट गैंग दीवार बनके खड़ा है… इस हत्याकांड का लिंक खोजो तो बड़े बड़े पोर्टल पर नहीं मिलेगा… गूगल के पहले पेज पर कुछ छोटी छोटी खबर दिखेंगी…
अब आप गूगल पर खोजिए ‘हाशिमपुरा काण्ड’… लेख आर्टिकल की भरमार मिलेगी… सारे बड़े नामी खबरिया पोर्टल पर मिलेगी… यहाँ तक कि Firstpost जो कि इस काण्ड के वर्षों बाद पैदा हुआ वो भी हाशिमपुरा का follow up आर्टिकल निकाले बैठा है…
किसी को लेकिन नाड़ीमर्ग की नहीं पड़ी… हाशिमपुरा काण्ड के समय यूपी में कांग्रेस के वीर बहादुर सिंह की सरकार थी… केंद्र में राजीव गाँधी प्रधानमंत्री थे।
हाशिमपुरा काण्ड करके भी कांग्रेस सेक्युलर बनी रही… नाड़ीमर्ग में मारे जाने के बाद भी हिन्दू कम्युनल!
ये है ताकत ISलामिC-कम्युनिस्ट गठजोड़ की… और देख लीजिए कमज़ोरी हिन्दू की जिसके मारे जाने के बाद किसी को इसकी खबर तक नहीं…
आश्चर्य की बात है कि कल से आज दोपहर तक कुछ कश्मीरी हिन्दुओं से भी बात की लेकिन उन पर भी इस का कोई असर नहीं, भूले बैठे हैं… याद दिलाने पर भी बड़ी मुश्किल से याद आया उनको…
तो सैम पित्रोदा जैसे आदमी ने किसी अज्ञानतावश या गलती से जुबान नहीं चलाई है… उन्हें मालूम है कि कांग्रेस को मज़हब विशेष का वोट चाहिए… मज़हब विशेष को हिन्दू की बात करने वाली सरकार से मतलब नहीं, ‘सबका साथ सबका विकास’ गया उनके ठेंगे पर…
मीरवाइज़ उमर फारूख साफ़ बोला कि ये विकास हमें नहीं चाहिए… भले ही हमारी सड़कों को सोने की बना दो हमें नहीं चाहिए – हमें चाहिए क्या, निज़ामे मुस्तफा…
तो इनके लिए भले ही कोई राजीव गाँधी या वीर बहादुर जैसा आए और लाइन में खड़ा करके मार दे परन्तु उनको मोदी नहीं चाहिए क्योंकि उसको 1987 का हाशिमपुरा और गुजरात 2002 याद है… लेकिन हिन्दू 4 जनवरी 1990, 23 मार्च 2003 जैसे तारीख भुलाए बैठा है…
पाकिस्तान के सिंध से एक वीडियो आया है जिसमें एक बाप खुद को गोली मार दिए जाने को कह रहा है क्योंकि उसकी दो बच्चियों का अपहरण करके उनको धर्म से मज़हब में बदल दिया गया… एक बहन ने बलात्कार की बात भी कही है…
इस पर क्या किसी भारतीय मीडिया हाउस ने कुछ कहा है? किसी कम्युनिस्ट ने?… इमरान खान से सीख लेने को कहने वाले और इमरान को नोबल पुरस्कार दिलाने की मुहिम चलाने वालों के मुँह पर पक्के धागे से सिलाई की जा चुकी है…
आप तारीख भूलते रहिए… वो आपको तारीख से मिटाने को तैयार बैठे हैं…