कुछ दिन पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने वित्त मंत्री अरुण जेटली के ट्वीट का जवाब देते हुए कहा –
“आपके मुँह से जनतंत्र और cooperation की बातें अच्छी नहीं लगतीं।”
केजरीवाल भारतीय राजनीति की वो गन्दगी हैं जिसका सफाया होना अत्यंत जरूरी है। और इनके सफाये के लिए अरुण जेटली और नितिन गडकरी को हाथ में आई हुई इनकी गर्दन दबोच देनी चाहिए थी लेकिन उन्होंने इस धूर्त को माफ़ कर दिया।
अगर केजरीवाल को माफ़ ना किया होता तो आज ये ऐसी बकवास करने के काबिल ना होते।
किस बात का सहयोग चाहते हैं ये अब?
इन्हें याद नहीं कि आपराधिक मानहानि के केस में ये जेटली और गडकरी के चरणों में गिर गये थे और माफ़ी मांग ली थी!
इन्हें बस सहयोग चाहिए कि इनके चहेते पाकिस्तान पर मोदी मेहर करें।
केजरीवाल को पता था कि मानहानि केस में वे दोषी करार दे दिये जाएंगे, जिससे ये 6 वर्ष के लिए चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हो जाएंगे।
आज भी इनके खिलाफ भाजपा के राजीव बब्बर के दायर हुए केस में इन्हें अदालत से समन जारी हो रखे हैं। अब अगर ये माफी मांगते हैं तो कम से कम बब्बर तो इन्हें माफ़ी ना दें।
और हालात देख कर ये तो तय है कि ये माफी मांगेगे ज़रूर… क्यूंकि आदमी तो सर्टिफाइड बे-शर्म हैं ही… देश के टुकड़े करने वालों पर केस चलाने की अनुमति तो दे नहीं रहे।
अदालतों में नेताओं के आपराधिक मुकदमों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार 1 वर्ष में फैसले हो जाने चाहिये और उसके लिए विशेष अदालतें बनाई जानी चाहिये।
मगर ये आदेश बस जारी हो गए और सुप्रीम कोर्ट की जिम्मेदारी जैसे ख़तम हो गई! जब तक एक एक केस की निगरानी नहीं होगी तो ऐसे फैसले देने का कोई औचित्य नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के ये आदेश 2013 में जारी हुए थे और तब सुरेश कलमाड़ी के लिए विशेष अदालत का गठन हुआ था लेकिन आज 2019 आने के बाद भी अभी तक फैसला नहीं हुआ है।
एक एक केस में 3 महीने से पहले की तारीख ही नहीं पड़ती। और फिर अगर कलमाड़ी को सजा हो भी गई तो उसी दिन वो हॉस्पिटल में होंगे।
अभी संघ के स्वयंसेवक का राहुल गाँधी के खिलाफ दायर मानहानि का मुकदमा भी लंबित है। कुछ अता पता ही नहीं रहता मुकदमों का!
डॉ स्वामी के नेशनल हेराल्ड केस में भी अभी माँ बेटे पर कोई फैसला नहीं है। केजरीवाल की ही पार्टी के संजय सिंह भी सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ टिप्पणी करके बैठे हुए हैं… सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा अभी।
चारा घोटाले में सज़ायाफ्ता लालू यादव की एक अपील अभी झारखण्ड हाई कोर्ट में दिसम्बर 2013 से लंबित है और सुनवाई की कभी कोई खबर नहीं आती। सज़ा भी जिन मामलों में हुई है, उनमें वे जेल में ना हो कर हॉस्पिटल में पड़े हैं।
राजनीति की गन्दगी को साफ़ करने के लिए सुप्रीम कोर्ट को ट्रायल कोर्ट्स, हाई कोर्ट्स और खुद अपनी ही मॉनिटरिंग करनी पड़ेगी जिससे फैसले जल्द हो सकें, वरना ये भ्रष्ट लोग जनता के पैसे पर मौज करते रहेंगे।