यह सच ही कहा गया है कि समाज को मारना हो तो सबसे पहले उसमें आत्महीनता के बोध का विकास करें। जहां एक बार जनमानस में आत्महीनता हिलोरे मारेगी वैसे वैसे समाज मरता चला जाएगा।
उनमें स्वयं के प्रति, स्वयं की संस्कृति के प्रति इस हद तक हीनता की भावना भर दें कि बाहर की किसी भी बात पर वह उन्हें सराहने के स्थान पर स्वयं को कोसने लग जाएं। और चेतन समाज के रूप में बाहर कदम ही नहीं उठा पाएं।
कुछ लोग ऐसे हैं जो किसी भी स्थिति में यह नहीं चाहते कि भारतीय जनमानस भारतीयता के आधार पर चेतन भी हो पाए। दरअसल उन्हें भारत ही पसंद नहीं है, जो भारत को महज़ भूखंड के रूप में देखते हैं, वह इस राष्ट्र की आत्मा को नहीं समझ पाते हैं और हर घटना के बाद आत्महीनता के जाल में फंस जाते हैं।
हाल ही में, न्यू ज़ीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिडा अर्डन की तारीफें हो रही हैं। इमरान खान के बाद हमारे बुद्धिजीवियों की सबसे बड़ी नेता वह उभरी हैं। दरअसल उन्हें अपने देश और मिट्टी से जुड़े उन लोगों के अतिरिक्त हर कोई पसंद होता है, जो आत्मबोध को जागृत करता है।
जेसिंडा ने मस्जिद पर हुए हमले में मरने वालों के घर जाकर सहानुभूति प्रदर्शित की है और इस सहानुभूति प्रदर्शन में उन्होंने मुस्लिम समुदाय के हिसाब से वस्त्र पहने।
इसे भी इमरान खान की तरफ पीस जेस्चर कहा जा रहा है, अब यह ज़रा सोच कर बताइए कि क्या अक्षरधाम पर हुए आतंकी हमले में यदि हमारे प्रधानमंत्री तिलक लगाकर जाते तो?
यह इन लोगों का पीस जेस्चर हमेशा ही एक तरफ़ा होगा!
मेरा मुद्दा यहाँ पर दूसरा है।
कल से लोग अपने समाज को कोस रहे हैं कि क्या हमारा समाज ऐसी स्त्री को प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार करेगा जो बिनब्याही माँ बनी है!
अब यह अपने आप में ही इतना भ्रामक है कि क्या कहा जाए!
जेसिंडा बिनब्याही अवश्य हैं, परन्तु उनका साथी उनके ही साथ रहता है और वह अपनी बिटिया की देखभाल करता है।
वह टीवी कलाकार क्लार्क के साथ रिश्ते में हैं। ऐसा नहीं है कि हमारे समाज में ऐसे रिश्तों को स्वीकृति नहीं है।
हमारा समाज हमेशा से ही ऐसी दृष्टि रखने वाला रहा है जहां पर निजता और सार्वजनिकता में अंतर समझा जाए।
महाभारत में शांतनु की पत्नी सत्यवती भी विवाह से पूर्व माँ बन चुकी थीं और जब यह बात सामने आई तो क्या उस समय भी समाज ने उनका प्रतिकार किया?
नहीं!
महाभारत में ही हम नियोग की प्रथा सुनते हैं और उसमें ही कुंती के द्वारा पर-पुरुष के संसर्ग से संतान हम देखते हैं, क्या हम कुंती का आदर नहीं करते?
वहां से आगे आकर भी यदि हम इतिहास पर नज़र डालते हैं तो पाते हैं कि कश्मीर की रानी कोटा रानी ने भी अपने साम्राज्य की रक्षा के लिए ऐसे कदम उठाए थे जो कहीं से कथित दैहिक शुचिता के दायरे में नहीं आएँगे, परन्तु वह कदम थे तो थे! और आज भी कोटा रानी का सम्मान है!
समाज व्यक्तिगत नैतिकता और सामाजिक नैतिकता में अंतर करना जानता है। हमारे समाज पर असहिष्णु या पिछड़े होने का आरोप लगाने वाले यह भूल जाते हैं कि हमारे ही समाज से नीना गुप्ता हैं, जिनका अभिनय देखते समय हम उनके व्यक्तिगत जीवन को नहीं देखते! हमारे मन में उनके लिए वही सम्मान है!
समाज प्रतिभा या कुशलता का सम्मान करता है, हाँ सभी व्यक्तियों के जितना उन्हें भी संघर्ष करना होता है!
दरअसल सम्मान, विचारों एवं सामाजिक कृत्यों का होता है! जिस समाज में कामसूत्र जैसे विषय की रचना हुई हो, जिसके मंदिरों पर तमाम तरह की मुद्राओं की मूर्ति हो वह जड़ नहीं हो सकता! और है भी नहीं!
रही बात राजनीति में किसी ऐसी स्त्री के कदम रखने की, तो यकीन मानिए यदि कोई सक्षम स्त्री जो देश की जटिल राजनीति को सम्हालने में सक्षम होगी तो वह यकीनन ही प्रधानमंत्री बनेगी! यदि वह इतने दांव पेच झेल सके और मज़बूती से खुद को स्थापित कर सके।
हमारा समाज कतई भी जड़ नहीं है, हाँ यदि जेसिंडा का पार्टनर गुप्त होता, और वह अपने समाज के सामने इस तरह आतीं कि इस बेटी के पिता का नाम वह नहीं बता सकतीं, ऐसे में क्या कट्टर ईसाई समाज उन्हें स्वीकारता? यह भी एक काउंटर प्रश्न है!
मैं उनकी प्रशासनिक क्षमता को सलाम करती हूँ, परन्तु किसी भी क्षमता या कुछ ऐसा इतना बड़ा नहीं हो सकता कि आप एकदम से हमारे समाज पर ही उंगली उठाने लगें!
ऐसा कहकर आप खुद की यौनिक कुंठा व्यक्त करते हैं, भारत आप जैसे कुंठितों की सोच से कहीं ऊपर है! अपनी इस हीनभावना को हमारे ऊपर आरोपित न करें।
हर समाज की कुछ विशेषताएं होती हैं, कोई भी दो एक से नहीं होते।