मनोहर पर्रिकर, यानी वो नाम जो आज देश की ज़ुबान पर है। आज लोग उनकी ईमानदारी, सरलता और सादगी के कसीदे पढ़ रहे हैं।
बाहर निकलती हाफ शर्ट, पैरों में चप्पल, और मुस्कुराते हुए पर्रिकर साहब सब का मन मोह लेते थे।
लेकिन क्या आप जानते हैं वे इतने ईमानदार और सरल स्वभाव के कैसे थे? उनकी सादगी के पीछे क्या राज़ था? आइये आज आपको उनके राज़ के बारे में बताता हूँ।
दुनिया जिसे एक राजनेता, एक मुख्यमंत्री, एक रक्षा मंत्री के रूप में जानती हैं असल में वो संघ के एक अनुशासित स्वयंसेवक थे। चाहें Chief Minister रहे हों या Defence Minister, वे हमेशा बिना मीडिया की परवाह किये, बिना किसी डर या दबाव के बाकायदा संघ गणवेश (uniform) में शाखा जाते थे।
संघ में उन्हें एक बेहतरीन स्वयंसेवक के रूप में जाना जाता था। बेहद अनुशासित, बेहद ईमानदार, देश के लिए मर मिटने का जज़्बा और सरल व्यक्तित्व बिल्कुल एक प्रचारक के जैसा। क्या आप जानते हैं जीवित रहते हुए उन्होंने अपने व्यक्तित्व और अपनी सफलता का श्रेय हमेशा संघ (RSS) की विचारधारा, संघ शिक्षा, संघ संस्कारों को दिया था?
पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक के संबंध में जब पत्रकारों ने उन से पूछा कि इतनी हिम्मत कहाँ से आई? तब उन्होंने जवाब दिया था संघ शिक्षा और संघ संस्कारों की बदौलत हम सर्जिकल स्ट्राइक कर पाए।
वे निडर थे। उन्हें कभी पत्रकारों या किसी दबाव से डर नही लगा। वे खुल कर सबके सामने अपने आपको स्वयंसेवक बताने में गर्व महसूस करते थे। ये सबक है हर नेता के लिए।
संघ शिक्षा आपको सादगी सिखाती है, सीमित संसाधनों में काम करना सिखाती है।संघ संस्कार व्यक्तित्व निर्माण करते हैं, हर बुराई से दूर कर एक ईमानदार व्यक्ति बनाते हैं। संघ विचारधारा व्यक्ति को राष्ट्रीयता की भावना से भर देती है, जो सिर्फ देश के लिए सोचने और देश के लिए कार्य करने की ऊर्जा देती है। पर्रिकर साहब में ये सभी गुण थे, बल्कि इतने अधिक थे कि वे दूसरों को भी प्रेरित करते थे।
क्या आप इस देश मे मनोहर पर्रिकर जैसे और leaders चाहते हैं? अगर जवाब हाँ में है तो आज ही अपने बच्चों को संघ शिक्षा, संघ संस्कार दीजिये, हर घर से पर्रिकर निकलना चाहिए, यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी इस राष्ट्रनायक को।
मनोहर पर्रिकर जी आज हमारे बीच नहीं हैं। हर व्यक्ति दुखी है, लेकिन कुछ लोग उन्हें आज भी गाली देते नज़र आ रहे हैं! सिर्फ इसलिए क्योंकि वे एक स्वयंसेवक थे, गाली देने के लिए उन्हें उनके हाईकमान ने निर्देशित किया है। हमें पलट कर उन्हें जवाब नहीं देना है, उनके और हमारे भारतीय संस्कारों में यही फर्क है और ये फर्क बरकरार रहना चाहिए।
कुछ लोग उनकी मृत्यु का ऐसे आँखे गड़ा कर इंतज़ार कर रहे थे जिसे देख कर भूखे गिद्ध भी शर्मा जाएं। वहीं दूसरी तरफ पर्रिकर साहब अपनी आखिरी सांस तक देश के लिए काम करते रहे, यही फर्क है संस्कारों का।
आज कई मित्रों को लग रहा है जैसे उन्होंने किसी अपने को खो दिया हो, लेकिन संघ परिवार ने तो अपने परिवार के एक सदस्य, अपने सपूत को खोया है। ये क्षति अपूरणीय है, भारतीय राजनीति के लिए भी और भारतीय समाज के लिए भी। पर्रिकर जी को किसी संगठन किसी पार्टी में नही बाँधा जा सकता, वे सही मायने में एक सच्चे योद्धा थे, भारत के असली हीरो थे।
आप ही की तरह सरलता और सादगी से जीवन जीने का प्रयास करूंगा, आप ही की तरह पूरी ईमानदारी से आखिरी सांस तक देश की सेवा करने का प्रण लेता हूँ, आपको मेरी ओर से यही सच्ची श्रदांजलि होगी।
राष्ट्रनायक मनोहर पर्रिकर साहब को 130 करोड़ भारतीयों की तरफ से शत शत नमन करता हूँ, आपको अंतिम प्रणाम करता हूँ, Grand Salute to the real Hero of India.