जिन दिनों स्वर्गीय मनोहर पर्रीकर की तरबूज़ वाली पोस्ट वायरल हुई थी, उस पोस्ट से मैं इतनी प्रभावित हुए थी कि उनके जीवन की महत्वपूर्ण बातों पर एक लेख लिखने के विचार से मैंने उनके बारे में कई जानकारियां इकट्ठी कर ली थी.
परन्तु समयाभाव के चलते वह लेख लिखना टलता रह गया. तब सोचा भी नहीं था कि उनके जीवन पर कुछ लिखने का विचार आज उनकी मृत्यु पर आकर अपना स्वरूप पाएगा. और जीवन के बजाय मैं उनकी मृत्यु पर लिख रही होऊंगी.
उनकी तरबूज़ की कहानी जितनी अधिक प्रेरणादायी थी उससे अधिक उनका यह सन्देश था कि –
“मनुष्यों में नई पीढ़ी 25 साल में बदल जाती है और शायद हमें 200 साल लग जाये ये समझने में कि हमने अपने बच्चों को शिक्षा देने में कहाँ गलती कर दी.”
पर्रीकर साहब आज आपकी मृत्यु पर इतना अवश्य कहूंगी कि आपका जीवन हमारे लिए उसी बीज के समान है जो अपनी गुणवत्ता के साथ आनेवाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा बनेगा और हम आनेवाली पीढ़ी को और अधिक मूल्यवान और संस्कारवान बनाने के लिए आपके राष्ट्र के लिए जीवन पर्यंत किये गए कार्य और समर्पण के किस्से उन्हें पल्लवित करने के लिए उस जल की भाँति देंगे जिससे वे फल फूलकर आपके इस अफ़सोस को बदल दे.
हम शपथ लेते हैं कि आनेवाली पीढ़ी को हम बहुत जल्द बदल देंगे, हम शिक्षा पद्धति बदलने के लिए कृतसंकल्पित हैं, हम राजनीति को राष्ट्रनीति में बदलने को दृढ़ निश्चयी हैं.
हम आनेवाली पीढ़ी को विद्वान, ज्ञानवान और आपकी सादगी और कर्मठता युक्त मनोहर व्यक्तित्व बनाने का संकल्प लेते हैं.