शताब्‍दियों में एक पैदा होती हैं जीजाबाई जैसी स्‍त्रियां

महापुरूष यूं ही नहीं बनते हैं। राष्‍ट्रपुरूष बनने के लिए तप व साधना की आवश्‍यकता होती है, लक्ष्‍य हेतु सर्वस्‍व अर्पित करने की आवश्‍यकता होती है, जैसे जीजाबाई ने किया।

जब एक तरफ यह नैरेटिव बहुत ही महीन धागों से बुना जा रहा था कि भारत में महिलाओं की स्‍थिति बहुत ही दयनीय है और महिलाओं को सती होना पड़ता है, उन्‍हें कैद में रखा जाता है आदि आदि, तब महिलाओं में एक मुखर चेतना स्‍पष्‍ट परिलक्षित हो रही थी।

यह सत्‍य है कि सती जैसी कुरीति हिंदू समाज का हिस्‍सा थी और जहांगीर नामा में भी इसका उल्‍लेख मिलता है, तथापि यह काफी सीमित प्रतीत होती है क्‍योंकि यह भी उल्‍लेख है कि जबरन सती नहीं किया जाता। जीजाबाई भी सती होना चाहती थीं पर उनके पुत्र ने उन्‍हें सती नहीं होने दिया।

इससे यह ज्ञात होता है कि यह अमानवीय प्रथा अनिवार्य नहीं थी और यह भी हर्ष की बात है कि हमारे समाज से ही इस कुरीति के खिलाफ आवाज उठी थी। सती जैसी अमानवीय कुप्रथा का महिमामंडन नहीं किया जा सकता, और स्‍वर्ग में भी पत्‍नी का साथ लेने की बीमा योजना कहीं से भी तार्किक नहीं थी। सती प्रथा 1857 तक भी आम लोगों में प्रचलित नहीं थी क्‍योंकि झांसी की रानी लक्ष्‍मी बाई भी विधवा थीं। और उनकी सास भी।

जीजाबाई जैसी स्‍त्रियां भी शताब्‍दियों में एक पैदा होती हैं, सिमोन के शब्‍दों में कहा जाए कि स्‍त्री पैदा नहीं होती वह बनाई जाती है, जीजाबाई पर एकदम सटीक बैठता है, क्‍योंकि जीजाबाई जैसी स्‍त्रियों का निर्माण परिस्‍थिति करती हैं।

जब जब वह देखती हैं कि उनके वीर सैनिक व सरदार कभी बीजापुर, कभी निज़ामशाही तो कभी मुगलों की चाकरी करते हैं तो वह अपनी भूमि को स्‍वतंत्र कराने का संकल्‍प लेती हैं।

क्‍या लगता है कि यह बहुत ही आसान कार्य रहा होगा? जिस स्‍त्री के पास एक टूटा हुआ दुर्ग था, सेना के नाम पर कुछ नहीं था, उसके लिए एक स्‍वतंत्र राज्‍य की स्‍थापना का सपना एक असंभव कार्य था। पर वह भारत की स्‍त्री थी जिसने न ही टूटना सीखा है और न ही झुकना।

जीजाबाई का दिल यह देख देखकर रोता था और शायद यही कारण था कि उनके हृदय में एक ऐसी संतान की चाह उठी जो उस भूमि को स्‍वतंत्र कराएगी जहां के लोग इतनी समृद्ध प्राकृतिक संपदा के होते हुए भी विद्रोही बने हुए हैं, क्‍यों उन्हें उनके ही खेतों पर अधिकार नहीं है, क्‍यों उन्‍हें अपनी दैनिक आवश्‍यकताओं के लिए लूटना होता है।

जीजाबाई जब शिवाजी के साथ शिवनेरी के दुर्ग में थीं तब वह निरंतर खतरे में थीं। शिवाजी के जन्‍म के समय उनके पिता अर्थात साह जी निरंतर युद्धरत थे और निज़ामशाही के आंतरिक व बाहरी षड्यंत्रों का सामना कर रहे थे। परंतु जीजाबाई क्रो यह पता था कि उन्‍हें एक दिन पुणे को विश्‍व के पटल पर एक नए रूप में सामने लाना है अर्थात भारतीय स्‍वराज्‍य के केन्‍द्र के रूप में।

क्‍या आपको पता है कि जब शिवाजी छह साल के थे तो जीजाबाई और शिवाजी को पकड़ने के लिए मुगलों ने जाल बिछाया था और जीजाबाई ने बहुत ही चतुराई से शिवाजी को सुरक्षित रूप से अपनी विश्‍वासपात्र दासी के हाथों कहीं सुरक्षित स्‍थान पर भिजवा दिया और खुद कैद में चली गईं।

यह उनकी प्रशासनिक दक्षता व व्‍यक्‍तिगत संबंधों का निर्वहन करने क्षमता ही थी कि दो-तीन वर्ष वह मुगलों की कैद में रहीं और शिवाजी अपनी धायमां के साथ एक ऐसे गुप्‍त स्‍थान पर रहे जहां पर उस समय की सबसे शक्‍तिशाली सेना भी एक नन्‍हे बच्‍चे को खोज नहीं पाई।

तीन साल बाद जीजाबाई मुगलों की कैद से भागने में सफल रहीं और संभवतया उन्होंने तीन वर्ष के उपरांत अपने शिवा को गले लगाया होगा तो उनके हर्ष का अनुमान लगाने में कोई भी सक्षम नहीं हो पाएगा। परंतु यह भी हो सकता है कि उन्होंने अपने पुत्र को अपने भाग निकलने के विषय में अवश्‍य ही बताया होगा तभी जब शिवाजी को आगरा में औरंगज़ेब ने छलपूर्वक कैद कर लिया था, तब भी शिवाजी ने हार नहीं मानी थी और कैद से छूटकर ही दम लिया था।

विश्‍व की सबसे शक्‍तिशाली सेना का दंभ तोड़ने वाली एक स्‍त्री ही थी जिसने उस समय के सबसे शक्‍तिशाली सिंहासन को चुनौती दी थी, एक बार जब खुद तीन साल कैद में रही, पर अपने छह साल के पुत्र का पता नहीं लगने दिया और दूसरी बार आगरा की कैद से शिवाजी के सुरक्षित रूप से निकलने में।

तभी जब शिवाजी आगरा में औरंगज़ेब की कैद में थे तब भी जीजाबाई को विश्‍वास था कि उनका पुत्र सुरक्षित आएगा, हंसते हुए कहती होंगी – “मां को न कैद कर पाया वह पुत्र को कैद करेगा!” और उपहास से हंसती होंगी – “यह धरती सिंहनियों को जन्‍म देती है और सिंहनियां कभी विलाप नहीं करती, सामना करती हैं।”

इन नैरैटिव से भी बाहर निकलिए कि स्‍त्रियां सदा ही प्रताड़ित रही हैं, कुरीतियों का सामना करते हुए हर परिस्थिति का सामना स्‍त्रियों ने डट कर किया है। और अपने लक्ष्‍यों को प्राप्‍त किया है, फिर चाहे वह जीजाबाई रही हों, मीरा या सावित्री बाई फुले।

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