बात नैरेटिव की थी कि किस तरह से इतिहास को पढ़ाया गया। बातें बहुत हैं, पर जरा गौर कर देखिए कि क्या जिन लोगों की रूमानी छवि पेश की गई वह वाकई इस रूमानी छवि के लायक थे या यह हमारे लिए एक जाल था कि हम अपनी पहचान के बारे में, अपने इतिहास के बारे में बात न कर सके।
आखिर क्या कारण है कि आप राम और कृष्ण के विषय में कुछ भी अनर्गल लिखकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हवाला देकर बच निकलते हैं?
इतना ही नहीं आप जितना राम को गाली देते हैं, कृष्ण को छिछोरा दिखाते हैं, जनभावनाओं का उपहास उडाते हुए दुर्गा को वेश्या कहते हैं, आप इस देश में उतने ही बड़े बुद्धिजीवी होते जाते हैं।
कल का लेख नैरेटिव को लेकर थी। और लोगों ने सबूत मांगे। (लेख का लिंक यह है)
यह लोग हर बात का सबूत मांगेगे, जिस देश का बुद्धिजीवी अयोध्या में राम होंगे या नहीं उस बात का सबूत मांग सकता है, वह हर बात का सबूत मांग सकता है।
यह इनका नैरेटिव है कि यदि कोई अपनी बात कहे तो उसे सबूतों की चक्की में पीसो। भई हमने लिखा है आप खंडन करें।
इतने बरसों से आपने जो हमें कहा, हमने तो सबूत नहीं मांगा। अब हम अपना लिख रहे हैं, और लिखना अभी तक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में आता है।
अनुवाद हो, पुनर्लेखन हो, इतिहास का पुनर्पाठ हो, दुर्गा को वैश्या कहने वाले जब पुनर्पाठ कर सकते हैं तो अपने अपने स्तर पर थोड़ा बहुत ही सही कुछ छवियों पर प्रश्न उठाने का अधिकार है।
हम यह पूछ सकते हैं कि यदि वह प्यार का पुजारी था, अर्थात जहांगीर, शहज़ादा सलीम, तो उसने सिक्खों के पांचवे गुरू अर्जुनदेव के साथ क्या किया। कितने प्रेमपूर्वक उनका कत्ल किया।
क्यों? क्योंकि अर्जुन देव ने शहजादा खुसरो के संग खास व्यवहार किया था और उसके माथे पर केसर का तिलक लगाया था।
नागरी प्रचारणी सभा काशी के द्वारा प्रकाशित जहांगीरनामा के हिंदी अनुवाद में यह लिखा गया है कि “गोविंदवाल में, जो व्यास नदी के तट पर है, अर्जुन नामक एक हिंदू रहता है, जिसने पवित्रता तथा सिद्धाई का वस्त्र पहिर रखा था। यहां तक कि सरल हृदय हिंदुओं तथा मूर्ख अशिक्षित मुसलमानों को भी अपनी चाल तथा व्यवहार से आकर्षित कर लिया था। तीन चार पीढ़ी से इस दुकान को गर्म कर रखा था। कई बार हमारा विचार हुआ कि इस व्यर्थ कार्य को रोक दें या उसे मुसलमान बना लें।”
आगे खुसरो के साथ अर्जुनदेव की मुलाकात होने पर वह जहांगीर लिखता है – “उसने खुसरू के साथ विशिष्ट व्यवहार किया व केसर का अंगुलि चिह्न लगाया जिसे हिंदू लोग टीका कहते हैं और शुभ समझते हैं। जब हमने यह सुना तो उसे अपने सामने उपस्थित करने की आज्ञा दी और उसकी कुल सम्पत्ति को जब्त कर उसे मार डालने का आदेश दिया।”
तो यह महान मुगल सुल्तानों की महान सहिष्णुता थी कि उन्हें यह पसंद नहीं था कि दूसरे धर्म का व्यक्ति उनके संतानों पर तिलक भी लगा दे।
सनद रहे कि यह वही शहज़ादा सलीम था जिसे आपके सामने कान्हा का भजन गाते हुए दिखाया गया है। यह वही शहज़ादा सलीम है जिसे सहिष्णुता के प्रतीक के रूप में स्थापित किया गया है।
समस्या झूठे नैरेटिव को गढकर परोसे जाने की है। जो दूसरे धर्म को बर्दाश्त नहीं कर सकते थे, जो अपने विरोधियों को जीने का अधिकार भी देने के लिए तैयार नहीं थे। उन्हें हम सबके सामने प्यार के मसीहा के रूप मे पेश किया गया और दिमाग में यह ज़हर भरा गया, समस्या यह है।
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