The Civilisational Challenge : पश्चिमी विश्व में एक यहूदी-प्रायोजित विचार ‘वामपंथ’

दुनिया में जितनी भी सभ्यताएँ और संस्कृतियाँ हैं, उनका मोटा-मोटा वर्गीकरण करने का प्रयास कर रहा हूँ, और उनमें से किसने बदलते समय के साथ अपने को कैसे समायोजित किया यह बताना चाहूँगा।

एशिया में एक सांस्कृतिक वर्ग है सुदूर पूर्व की संस्कृति, जो मूलतः चीनी सभ्यता से प्रस्फुटित हुआ। विभिन्न धार्मिक प्रभावों के बावजूद इस क्षेत्र का मूल सांस्कृतिक सूत्र चीनी सभ्यता की देन है। इसमें भी जापान की अपनी कुछ सांस्कृतिक विशेषताएँ रही हैं।

दूसरी ओर मध्य पूर्व में संस्कृतियों का एक उद्गम स्थल रहा है, यहूदी सभ्यता… जिससे निकल कर कालांतर में ईसाई धर्म पश्चिम की ओर गया और इस्लाम धर्म पूर्व में अरब में फैला। इस्लाम और ईसाइयत मूलतः यहूदी धर्म की पैरोडी रही है।

रोमन साम्राज्य और ईसाई धर्म ने मिल कर पूरे यूरोप और वर्तमान के पश्चिमी विश्व को एक विशिष्ट सामाजिक-राजनीतिक संस्कृति दी।

अफ्रीका और अमेरिकी महाद्वीप की तत्कालीन सभ्यताएँ कालांतर में इन दो प्रतिस्पर्धी सभ्यताओं द्वारा मिल बाँट कर निगल ली गईं।

और इन सबके बीच भारत एक सांस्कृतिक द्वीप की तरह दिखाई देता है। सभ्यता का प्राचीनतम केंद्र, जिसने अपनी भौतिक और आध्यात्मिक उपलब्धियाँ पूरी दुनिया से शेयर की, बिना किसी लाग लपेट, बिना किसी कॉपी राइट के।

हमारे उपनिषदों का ज्ञान बौद्ध धर्म बनकर उत्तर में चीन और मंगोलिया और सुदूर पूर्व तक फैला। पश्चिम में काबुल कंधार तो इसके घर ही थे।

पर बौद्ध धर्म के साथ जो सबसे महत्वपूर्ण चीज फैली वह सिर्फ इसका ज्ञान नहीं था। वह थी इसकी टेक्निक… यह विश्व का संभवतः पहला प्रोसेलिटाइज़िंग या प्रचार-केंद्रित धर्म था। यह पहला पंथ था जिसका सरल प्रवाह नहीं होकर सजग प्रचार हुआ।

और बौद्ध धर्म की सफलता से प्रभावित होकर जेरुशलम के एक विशिष्ट वर्ग ने यह टेक्निक उठा ली। उन्होंने ईसा मसीह की कहानियों में यहूदी धर्म की पैरोडी को पिरोकर बौद्ध मिशनरी तकनीक से रोमन साम्राज्य के राजनीतिक वर्ग को बेच दिया। और धर्म और राजनीति की खूबसूरत पार्टनरशिप के साथ ईसाई धर्म पूरे यूरोप और आधे एशिया में फैल गया जहाँ यह कुछ अन्य महत्वकांक्षी शक्तियों के संपर्क में आया।

अरब के एक कबीले में एक अन्य महत्वाकांक्षी व्यक्ति ने अपनी नई टेक्निक विकसित की। उसने उसी यहूदी धर्म की पैरोडी को उठाया और अपने बलबूते पर उसकी मार्केटिंग करने की ठानी। उस पैरोडी में कुछ ज़रूरी सुधार किए गए जिसने बौद्ध मिशनरी टेक्निक को गैर ज़रूरी बना दिया और रोमन साम्राज्य जैसी राजनीतिक शक्ति को स्वयं सृजित करने के लिए आवश्यक प्रावधान किए गए। चूँकि इस सभ्यता को यह आवश्यक राजनीतिक शक्ति खुद जुटानी थी, इसलिए इसकी संरचना एक सैनिक संगठन के जैसी है।

दो दो धार्मिक-राजनीतिक संस्कृतियों को जन्म देने के बावजूद राजनीतिक शक्ति से विहीन यहूदी सभ्यता ने खुद को हाशिये पर पड़ा पाया। उनके इसी फ्रस्ट्रेशन से निकला एक तीसरा विचार… बिना सैनिक संगठन के सत्ता पर कब्जा करने का विचार।

लोगों की कमज़ोरियों और विकृतियों को उन्हीं के विरुद्ध प्रयोग कर के उन्हें उनके ही द्वारा गुलाम बनाने का विचार। जीभ को दाँत से, हाथ को हाथ से लड़ाने का विचार। आज यही नया राजनीतिक विचार वामपंथ है जो पूरे विश्व से अपनी इस उपेक्षा का प्रतिशोध ले रहा है।

वामपंथ पश्चिमी विश्व में एक यहूदी-प्रायोजित विचार है। यह बिना पारंपरिक सैन्य शक्ति और बिना पारंपरिक मिशनरी सामाजिक संगठन के फैलती हुई संस्कृति है जिसने इन दोनों टेक्निक को अप्रासंगिक और अप्रभावी बना दिया है। और इसीलिए वामपंथियों के निशाने पर दो पारंपरिक संगठन हमेशा रहे हैं – सेना और धर्म। क्योंकि उन्होंने इन दोनों का प्रतियोगी प्रोडक्ट तैयार कर लिया है।

वामपंथ में आप एक धर्मांध अतार्किकता के साथ साथ एक मिलिटेंट क्रूरता भी देख सकते हैं। यह बिना सेना की सेना है, और बिना धर्म का धर्म है। आज जो संस्कृति दुनिया में ‘आधुनिक’ सभ्यता के नाम पर फैल रही है वह यही वामपंथ है।

और यह ज़रूरत के हिसाब से अपने आप को कहीं एक तो कहीं दूसरे के साथ खड़ा कर लेता है। यह जहाँ एक तरफ पश्चिमी ईसाई दुनिया को इस्लाम की तलवार से काटता है वहीं दूसरी ओर पूरब की सभ्यता को ईसाइयत के ज़हर से मारता है।

क्रमशः…

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